Thursday 28 May 2015

सूट-बूट की सरकार
(एक टी वी चर्चा)
(यह व्यंग किसी भी चैनल या किसी भी एंकर से प्रेरित हो कर नहीं लिख गया. यह पूरी तरह काल्पनिक है)
एंकर – इस चैनल पर हम सिर्फ सच सुनना चाहते हैं. यह इकलौता चैनल जो हर पल सच की खोज में लगा रहता है. अगर आप लोग सच से डरते हैं तो आप किसी और चैनल पर चर्चा करने जायें. यहाँ सिर्फ सत्य उजागर किया जायेगा. तो क्या यह सरकार सूट-बूट वाली सरकार है?
राजनेता 1 – यह सरासर अन्याय है. यहाँ किसान आत्महत्या कर रहे हैं और आप सूट-बूट की चर्चा कर रहे हैं.  पिछले दस.........
राजनेता 2 और 3 (एक साथ) - नहीं.... बात यह नहीं है.... बिलकुल सही कहा आपने. सिर्फ इस चैनल पर सच की बात होती है..... यह साम्प्रदायिक ताकतों  की चाल है.... किसान पहले भी.....सूट-बूट पहनना.....आप एक मिनट चुप रहिये....आप मेरी बात....नहीं.....हां.....
एंकर – यही सच है. सूट पहना था बूट भी पहने थे. सबने देखा था. आप मान क्यों नहीं लेते.
राजनेता 1 – आप पूरी बात क्यों नहीं सुनते. अगर आप ने हमें बुलाया है तो हमें समय दें. पिछले दस वर्षों में.......
एंकर – नहीं-नहीं, हम आप की बात नहीं सुन सकते, आप स्वीकार करें की सूट-बूट पहना था. आप को देश से क्षमा मांगनी होगी. आप ने लोगों के विश्वास का मज़ाक उड़ाया. यही सच है.
बुद्धिजीवी 1 –हमें देखना होगा की सूट-बूट किस प्रकार की मानसिकता का परिचायक है, पूंजीवाद का या फिर संकीर्णतावाद का. क्या यह किसी कुंठा को छिपाने का आवरण है या सिर्फ फिर एक छ्द्मावेश अपनी महत्वाकांक्षा..........
एंकर – हमारे साथ एक विशेषज्ञ हैं. पहले उनकी बात सुनते हैं.
विशेषज्ञ- हमने जो सर्वेक्षण किया है उसके अनुसार 58.7645% लोग मानते हैं कि सूट-बूट पहना पूरी तरह गलत नहीं है परन्तु जिन लोगों ने आम आदमी को वोट दिए थे उनमें 65.8975% ने कहा है कि अभी वह कुछ कहना नहीं चाहते, यह एक गंभीर बात है......
राजनेता 3 – इसी कारण आज हमारी खिल्ली उड़ रही है. आप बताइये क्या जवाब है आपके.......
राजनेता 2 – बात साम्प्रदायिक ताकतों की हो रही थी. घर आने की, मेरा मतलब है वापसी की. घर वापसी की.
एंकर – हां, यही मुद्दा है, अगर आप अपना समय सूट-बूट पर न लगाते तो यह सब क्या होता? नहीं होता. बिलकुल नहीं होता. आपको  मानना होगा की ऐसा ही है. यह उन लोगों के साथ अन्याय है जिन लोगों ने वोट डाले, आपको चुना और अब आप सच से पीछे हट रहे हैं. ऐसा आप अन्य चैनल पर कर सकते हैं. इस चैनल पर नहीं.........   
बुद्धिजीवी 2- मैं इतने समय से चुप हूँ, आप हमें बोलने का अवसर ही नहीं दे रहे. मैं कह रहा था...... 
राजनेता 2 – आप सही कह रहे हैं. पर क्या राजनीतिक परिवार वालों को ही सूट-बूट पहनने का अधिकार है, किसी अन्य का नहीं.
राजनेता 3 – हमने तो सुना है की नेहरु जी के दादा जी के कपड़े धुलने के लिए विलायत जाते थे.
राजनेता 1, 2 और एंकर (तीनों एक साथ) – आप क्या अंटशंट बोल रहे हैं.... हाँ, यही बात है.... नहीं.... यही सच है..... नेहरु जी के पिता.....और सच हमारे ही चैनल पर सब के सामने आया.... मैं कह रहा था की राहुल जी...... साम्प्रदायिक ताकतों....किसान....सूट-बूट.....आत्महत्या .....
बुद्धिजीवी 2- आप सब मुद्दे से भटक रहे हैं. प्रश्न यह है कि सूट-बूट की बात शुरू क्यों हुई....और कैसे हुई....

एंकर –पर हम ने सच को उजागर कर ही दिया. यही अंतर है हमारे चैनल में और अन्य चैनलों में. हम सत्य तक पहुँच ही जाते हैं. आप सब ने खुले मन से अपने विचार रखे. आप सब का बहुत-बहुत धन्यवाद. और अगली चर्चा बहुत ही महत्वपूर्ण विषय पर .... 

Monday 25 May 2015

यूँ चलती सरकार
(सच्ची घटना पर आधारित)

बॉस (मुझ से) - कुछ समय पहली मंत्रालय से एक फाइल आई थी. उस फाइल में कैबिनेट सचिव ने कुछ जांच के आदेश दिए थे. वह फाइल कहाँ है?
मैं – सर, मैंने तो ऐसे कोई फाइल नहीं देखी. किस विषय को लेकर थी वह फाइल, कुछ याद है आपको?
बॉस – तुम्हारे ज्वाइन करने से पहले आई होगी, पर एक फाइल आई तो थी और कैबिनेट सचिव के कुछ आदेश थे. ज़रा सभी बाबुओं से पूछो
मैंने सब बाबुओं से पूछताछ की. किसी बाबू को ऐसी किसी फाइल की जानकारी न थी. मैंने बॉस को सुचना दे दी. बॉस संतुष्ट न हुए. उन्हें विश्वास था कि कोई फाइल मंत्रालय से अवश्य आई थी. परन्तु किस विषय को लेकर थी, यह याद न होने के कारण कोई रास्ता भी न सुझा पाये.
तीन माह के बाद. एक बाबु एक फाइल लेकर आया.
क्लर्क – सर, कमांड से एक लैटर आ रखा है. इस का क्या करना है मुझे समझ नहीं आ रहा. जरा बता दें.
मैं – अभी मैं थोड़ा व्यस्त हूँ, तुम फाइल रख दो, मैं बाद में देख कर सब लिखा दूंगा.
जब मुझे समय मिला तो फाइल देखने लगा. एक फाइल न थी, छह-सात फाइलों का एक बंडल था. अभी नया-नया भर्ती हुआ था. कुछ करने को उत्सुक था, अतः बंडल में बंद हर फाइल को देखने लगा. एक पतली-सी फाइल देख कर मेरे होश उड़ गये. यह वही फाइल थी जिसकी चर्चा बॉस ने कुछ माह पहले की थी.
फाइल में बस एक पन्ना था, एक मामले को लेकर जांच के आदेश थे. हस्ताक्षर किये थे भारत सरकार के उच्चतम अधिकारी ने, स्वयं कैबिनेट सचिव ने.
बंडल में बंद सारी फाइलें देखने पर ज्ञात हुआ की किसी यूनिट में एक ग्रुप डी कर्मचारी (शायद मजदूर) की मृत्यु उसके कार्यकाल के दौरान ही हो गई थी. एक नियम के अनुसार उसके शोक संतप्त परिवार को भारत सरकार से कुछ  वित्तीय सहायता दी जा सकती थी.
स्वर्गवासी कर्मचारी की पत्नी की अर्जी पर एक केस बना था, जो यूनिट से कमांड, वहां से मुख्यालय फिर मंत्रालय पहुँचाना था. अंतत अर्जी कैबिनेट सचिवालय पहुंचनी थी, वहीं से आवेदन को मंजूरी मिलनी थी.
पर फाइल यूनिट, कमांड, मुख्यालय और मंत्रालय की बीच ही चक्कर लगाती रही, और वह भी कुछ सप्ताह नहीं, कुछ माह नहीं, कुछ वर्ष नहीं, पूरे ग्यारह वर्षों तक.
जब फाइल कैबिनेट सचिवालय पहुंची तो वहां किसी की आत्मा को चोट लगी. एक मज़दूर के परिवार को थोड़ी से मदद के लिये ग्यारह वर्षों तक प्रतीक्षा करनी पड़ी थी, स्वयं कैबनेट सचिव इस देरी का कारण जानना चाहते थे. उन्होंने आदेश दिया की मामले की तुरंत जांच हो और रिपोर्ट उन्हें दिखाई जाये.
इस आदेश पर किसी तरह की कोई भी कार्यवाही नहीं हुई.
फाइल लेकर मैं अपने बॉस के पास पहुंचा
बॉस – कैसे मिल गई यह फाइल?
मैं – फाइलों के एक बंडल में बंद थी. हमारे यहाँ आये छह माह से ऊपर हो गये हैं. अब क्या किया जाये?
बॉस – जरा सोचना होगा.
मैं – सर, एक बात समझ नहीं आई. कैबिनेट सचिव के इस आदेश की किसी ने भी निगरानी नहीं की. क्यों? उनके कार्यालय ने, या मंत्रालय ने, या फिर चीफ़ के कार्यालय ने, किसी ने भी अपने पास कोई रिकॉर्ड नहीं रखा यह देखने के लिए कि नीचे इस आदेश का कोई पालन करता भी है या नहीं?
बॉस – अभी तुम नये-नये आये हो, धीरे-धीरे सब समझ आने लगेगा.
मैं – सर, अब तो इस बात की भी जांच होनी चाहिये कि कैबिनेट सचिव के आदेश का पालन क्यों न हुआ.
बॉस –  क्या नौकरी छोड़ने का विचार है?
लेकर अपने कार्यालय लौट आया. कुछ-कुछ समझ आने लगा था कि कैसे चलती है सरकार.
कैबिनेट सचिव के आदेश का अंतत क्या हुआ वह बात रहने ही देते हैं.
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Wednesday 20 May 2015

मंत्री जी की बेटी का तोता
आई जी साहब नाश्ता करने बैठे ही थे कि सूचना मिली, बड़ा बाग़ में तीन बच्चों की निर्मम हत्या कर दी गई है. दो सप्ताहों में यह तीसरी घटना थी. पहली घटना में एक महिला की हत्या हुई थी, दूसरी में दो बच्चियों  की.
सारी बस्ती में तनाव था. कभी भी स्थिति बिगड़ सकती थी. नाश्ता छोड़, आई जी साहब ऑफिस चल दिये. तुरंत एक बैठक बुलाई.
“अभी तक कोई पकड़ा क्यों नहीं गया?” उन्होंने झल्ला कर पूछा.
“सर, कुछ सुराग मिले हैं....”
“यह मैं कई बार सुन चुका हूँ....”
बात बीच में ही रह गयी. दिल्ली से संचार मंत्री का फोन आ गया. पर उनसे भी बात हो न पाई, लाइन जो कट गई थी.
“सर, संचार मंत्री की लाइन कट जाती है तो हम लोगों का क्या होगा.” एक अधिकारी ने हँसते हुए कहा और अपनी वाक्पटुता दिखलाई. आई जी साहब ने घूर कर उसे देखा, उसका दिल बैठ गया.
“सर, बड़ा बाग़ की बस्ती उनके चुनाव क्षेत्र में आती है. इसी कारण फोन किया होगा,” किसी ने अपनी समझबूझ दिखलाई.
“हम जानते हैं, पर हम उनसे क्या कहें? यही की कुछ सुराग मिले हैं.” आई जी साहब का स्वर तीखा था, वह अपने-आप से खीजे हुए थे.
संचार मंत्री का फिर से फोन आया.
“आई जी साब, बड़ी गंभीर समस्या आ खड़ी हुई है.”
“मुझे इस बात का पूरा अहसास है. हम ....”
“अपने सबसे योग्य अफसरों को अभी दौड़ाओ और शाम तक बिंकू को खोज निकालो”
आई जी तो जैसे नींद से जागे.
“आप बड़ा बाग़ वाली घटना की बात कर रहे हैं.....”
“वहां क्या हुआ है? वह सब बाद में, अभी तो बस आप बिंकू को ढूंढ निकालो.”
“बिंकू....क्या है?.....कौन है?” आई जी ने बड़ी धीमी आवाज़ में पूछा.
“आप भी कमाल करते हैं. आई जी कैसे बन गये? बिंकू हमारी बेटी का तोता है. विदेश से लेकर आये थे हम. सब जानते हैं. अब समय नष्ट न करो और काम पर लग जाओ और मुझे अच्छी खबर चाहिये, तुरंत.”
एक अधिकारी ने सूचना दी कि बड़ा बाग़ में दंगा शुरू हो गया है. भीड़ ने कुछ दुकानें व घर जला डाले हैं. आती-जाती बसों पर पत्थर भी फैंके जा रहे हैं.
मुख्य मंत्री का फोन आया.
“क्या कह दिया आपने संचार मंत्री से? बहुत नाराज़ हैं?”
“अभी उनसे बात .........”
“वह सुबह से कोशिश कर रहे थे आपसे बात करने की. आप रहते कहाँ हैं? तोता मिला या नहीं?”
“सर, बड़ा बाग़ में स्थिति बड़ी विस्फोटक हो रही है. हम सब उसी को संभालने में...........”
“यही बात आपने संचार मंत्री से कही होगी? वह चाहें तो आज ही मुझे हटा कर, मुख्य मंत्री बन सकते हैं, जानते भी हैं या नहीं? या आप भी यही चाहते हैं?”
मुख्य मंत्री की बात सुन आई जी हताश हो गये. मन ही मन बड़बड़ाये, इन सब को अपनी कुर्सी की चिंता हो रही है. एक बस्ती जल रही है और हमें एक तोता ढूँढने के लिए कहा जा रहा है.
“जी, हम तोता ढूंढ निकालेंगे.”
“आप स्वयं इस काम की निगरानी करें. उधर का सब एस पी देख लेगा. वह नींद से जाग गया या नहीं? देर रात तक शराब पीता रहेगा तो जल्दी कैसे उठेगा?”
फिर थोड़ा रुक कर मुख्य मंत्री ने कहा, “तीन माह बाद डी जी रिटायर हो रहे हैं. अगर हम इस कुर्सी पर रहे तो हो आप उस कुर्सी पर पहुँच पायेंगे. संचार मंत्री तो आप को आई जी भी न रहने दें. आप समझ रहे हैं न मेरी बात?”
आई जी साहब ने तुरंत अपने सबसे योग्य अधिकारियों को बुलवा भेजा. संचार मंत्री की बेटी का तोता ढूँढने की योजनायें बनने लगीं. आई जी साहब ने चेतावनी दे दी, “अगर शाम तक तोता न मिला तो सब पोस्टिंग के लिए तैयार रहना.”
करो या मरो की भावना से सब “मिशन बिंकू” में जुट गये. सब खबरियों को चेतवानी दे दी गई, जिसके पास जो भी खबर है तुरंत पहुंचाये, अगर कोई खबर नहीं है तो खबर ढूंढ कर लाये. खुफिया तन्त्र को पूरी तरह सजग कर दिया गया. सभी इन्स्पेक्टेरों, सब-इन्स्पेक्टेरों वगेरह को यहाँ से वहां और वहां से यहाँ दौड़ाया गया.
हर एक ने गज़ब की फुर्ती दिखलाई. शाम होने से पहले ही बिंकू को खोज निकाला गया. मिशन की सफलता का समाचार आई जी ने स्वयं मुख्य मंत्री को दिया. मुख्य मंत्री ने आई जी और उनकी पूरी टीम को बधाई दी और तुरंत संचार मंत्री को यह शुभ समाचार सुनाया.
इस बीच बड़ा बाग़ में तीन लोग मारे गये थे, बीस-पच्चीस लोग घायल हुए थे, पच्चीस-तीस दुकाने और घर आग की भेंट हो गये थे, कई बसों-गाड़ियों को क्षति पहुंची थी. जिस अधिकारी ने यह सूचना दी उसे आई जी साहब ने कहा कि मामले की पूरी रिपोर्ट बना कर भेजे.
“और स्थिति पर पूरी निगरानी रखो, मैं कोई चूक सहन नहीं करूंगा.” आई जी साहब ने कठोरता से आदेश दिया.
अचानक आई जी साहब को भूख का अहसास हुआ. उन्हें ध्यान आया कि उन्होंने सुबह से कुछ खाया नहीं था, “कुछ खाने का बंदोबस्त भी करो.”
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©आई बी अरोड़ा



Monday 18 May 2015

राजनीति और विवाह
गुलाबी दल के नेता के पुत्र का
लाल दल के नेता की पुत्री से
हुआ शुभ विवाह,
आयोजित हुआ एक अति भव्य समारोह,
नीले पीले/ श्याम श्वेत/ आड़े तिरछे
दलों के नेता
हुए आमंत्रित,
सभी विशिष्ट अतिथि आये
और सभी ने
भरपूर आनंद उठाया,
भूल कर
उन खंजरों को
जो कभी भोंके थे
एक-दूसरे की पीठ में उन्होंने, 
उन आन्दोलनों को
जो छेड़े दे कभी
एक-दूसरे की विरुद्ध उन्होंने,
उन कुर्सियों को
जो एक दूसरे से छीनी थी
(और कभी-कभार एक दूसरे पर
पटकी थी) उन्होंने,
उन गोलियों-लाठियों को
जो एक-दूसरे के समर्थकों पर
चलवाई थीं उन्होंने,
सब भूल कर
सब ने भरपूर आनंद उठाया,
वर-वधु को उपहारों से
और एक-दूसरे को
शुभ कामनाओं से रिझाया.

© आई बी अरोड़ा
यह व्यंग्य भी देखें

Saturday 16 May 2015


एक करप्ट नेता का नाम
“किसी एक करप्ट नेता का नाम लो?” चुन्नीलाल जी ने आते ही एक प्रश्न दाग दिया.
मुझे भी कुछ ठिठोली सूझी, कहा, “ आप यह क्यों नहीं कहते कि किसी एक भ्रष्ट नेता का नाम लो?”
“हम आपके प्रश्न का उत्तर दें या फिर अपनी पत्नी के प्रश्न का?” चुन्नीलाल  जी ने झल्ला कर कहा.
“अरे, क्या प्रश्न किया है भाभी जी ने, क्या किसी करप्ट नेता का नाम पूछा है?”
“उनका मानना है कि देश की दुर्गति के लिए नेता नहीं, देश की जनता ज़िम्मेवार हैं. उनके विचार में इस देश के सब लोग भ्रष्ट हैं.”
“अब ऐसा क्या कर दिया देश की बेचारी जनता ने जो भाभी जी इतनी नाराज़ हैं?”
“आज सुबह ठेलेवाले से एक किलो आलू लिए उन्होंने, बीस रूपये के भाव से. बाद में अख़बार में पढ़ा की मंडी में आलू का भाव दस रुपये है. बस, पत्नी जी का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया.”
“पर बात करप्ट नेताओं तक कैसे पहुंची?”
“आलू का भाव पढ़ कर वह लगीं सब को कोसने. बोलीं, सब लोग भ्रष्ट हैं, चोर हैं, लुटेरे हैं. हमनें वातावरण को थोड़ा हल्का करने के लिये कह दिया, ‘अजी, इतना भी क्या, जब देश के नेता ही करप्ट हैं तो गरीब जनता का क्या दोष.’ बस हमारा इतना ही कहना था कि उन्होंने एक चुनौती दे डाली. पूछा, ‘किसी एक करप्ट नेता का नाम लो’. हमारे तो होश उड़ गये. सीधे दौड़े आये आपके पास. अब आप ही हमारी सहायता कर सकते हैं अन्यथा आज हमारी गृहस्थी की नैया डोलती लगती है.”
“अरे, आप इतना क्यों घबराये हुए हैं. आप किसी भी नेता का नाम ले सकते थे.  आज कौन नेता है जो दूध का धुला है?”
“आप क्या कहते हैं? अगर उन्होंने जिरह शुरू कर दी तो हम कहीं के नहीं रहेंगे.”
“क्यों?”
“क्या कहते हैं आप? कोई ऐसा नेता है जिसके विरुद्ध एक भी भ्रष्टाचार का आरोप सिद्ध हुआ हो. बस सब एक दूसरे पर आरोप लगाते हैं पर आज तक किसी भी नेता को कोई भी सरकार दोषी सिद्ध कर पाई है. आपकी भाभी जी ऐसी मूढ़ नहीं हैं कि हम कोई भी नाम ले लें और वह मान जायेंगी. हर टीवी चैनल पर हर चर्चा की बड़े ध्यान से सुनती हैं. जितने भी घोटाले हुए हैं सब की जानकारी है उनके पास.”
“यह गंभीर समस्या है.”
“तभी तो आते ही आपसे पूछा, किसी एक करप्ट नेता का नाम लो.” 
हमने हाथ खड़े कर दिए. इस देश में घोटाले तो बहुत हुए पर कोई नेता करप्ट नहीं है क्योंकि किसी नेता के विरुद्ध कोई आरोप सिद्ध नहीं हुआ. यही अटल सत्य है.
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Friday 15 May 2015

सुप्रीम कोर्ट का आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के अतिरिक्त किसी भी राजनेता का छायाचित्र किसी भी सरकारी विज्ञापन में नहीं छपना चाहिये.
इस आदेश से सभी राजनेता विचलित और दुःखी हैं. सुप्रीम कोर्ट की अवमानना के भय से कोई भी खुल कर इस विषय पर बात नहीं करना चाहता. परन्तु हमने राजनेताओं से बात की. आश्वासन दिया कि किसी का नाम हम प्रकाशित न करेंगे, तभी वह अपने विचार हमें बताने को राज़ी हुए.
एक नेता ने कहा, “हमारा परिवार तीन पीढ़ियों से इस देश की सेवा कर रहा है. मैंने अपने बेटे और बहु को भी देश सेवा में अभी से ही झोंक दिया. दोनों संसद सदस्य हैं. अब अगर कल वह मंत्री बनते हैं और अपने विभाग के किसी विज्ञापन में मेरा या अपने दादा का छायाचित्र छपवा देतें हैं तो इसमें हर्ज ही क्या है? इस सत्य को तो आप नहीं नकार सकते कि देश सेवा हमारे लिए एक शब्द नहीं है, हमारी जीवन शक्ति है, हमारी आत्मा है.”
दूसरे नेता ने एक अन्य पहलु पर प्रकाश डाला, “लोगों का अधिकार है सारी जानकारी प्राप्त करना. अगर हम राजनेताओं की तस्वीरें नहीं छापेंगे तो क्या वह आवश्यक जानकारी से वंचित नहीं रह जायेंगे. लोग कैसे जान पायेंगे कि उनके नेता उनके लिए क्या-क्या कर रहे हैं.”
एक नेता ने कहा, “प्रजातंत्र की बात है, लोग हम से प्यार करते हैं, लोगों ने तो अपने प्रिये नेताओं के मन्दिर बना दिये हैं, प्रिये नेता की मूर्ति स्थापित कर उसकी पूजा करते हैं. अगर उनके प्रिये नेता के साथ कुछ भी घटता है तो लोग अपनी जान देने पर उतारू हो जाते हैं. तो विज्ञापन में फोटो छापना कैसे गलत है? मैं तो कहूँगा कि गरीब लोगों के साथ अन्याय है.”
एक अन्य नेता ने कहा, “सूट-बूट सरकार की चाल है. सुप्रीम कोर्ट को इस सरकार ने गुमराह किया है, बहकाया है. अन्यथा कोर्ट ऐसा क्यों कहता कि प्रधानमंत्री की तस्वीर छप सकती है और किसी की नहीं छप सकती. हम भी सूट-बूट पहनते तो हमारी तस्वीर की भी अनुमति दे देते, हम भी तो मुख्यमंत्री है. हमारा दोष बस इतना है कि धोती-कुर्ते में विश्वास रखते हैं.”
किसी और ने कहा, “इससे प्रजातंत्र की नींव कमज़ोर होगी. राजनेताओं और प्रजा के बीच एक खाई पैदा होगी. लोगों का राजनेताओं से विश्वास उठ जायेगा और तानाशाही को एक अवसर मिलेगा. पहले ही सारी ताकत एक व्यक्ति ने अपने हाथ में ले रखी है. अब इस देश का कुछ नहीं हो सकता.”

हर नेता अशांत था. हम भी चिंतित हैं, अब देश की गरीब जनता कैसे जान पाएगी कि उनके नेता उनके सुख-चैन के लिए किस तरह रात-दिन एक कर रहे हैं.

Wednesday 13 May 2015

हम सब चोर हैं
रात के दस बजे थे. अचानक हो-हल्ला सुन कर हम सब चौंक पड़े.
मुख्य फाटक के निकट कुछ लोग के एक चौकीदार से लड़ रहे थे. दूसरे चौकीदार ने झट से अवैतनिक सचिव महोदय को फोन किया. वह एक-दो लोगों को साथ ले मुख्य फाटक की ओर दौड़े. पर उनके गेट पर पहुँचने से पहले ही वह लोग भाग गये. पर जाने से पहले उन्होंने एक चौकीदार को बुरी तरह पीट डाला था.
तुरंत पुलिस को सूचना दी गई. पुलिस आनन-फ़ानन में आ पहुंची. पूछ-ताछ शुरू हुई.
“कौन लोग थे? झगड़ा किस बात पर हुआ था?”
“साहब, एक कार में तीन-चार लोग आये. कोई फ्लैट देखने आये थे. मैंने कहा की गाड़ी अंदर लाने की अनुमति नहीं है, गाड़ी बाहर खड़ी करो, तो मुझे गाली देने लगे. मैंने कह कि गाली मत दो, सचिव साहब से बात करो तो मुझे थप्पड़ मार दिया.”
“कौन सा फ्लैट देखने आये थे?”
“वह नहीं बताया. पार्किंग को लेकर ही झगड़ा शुरू हो गया.”
“कौन लोग थे? कुछ नाम, पता तो पूछा होगा तुमने? क्यों? बोलो.”
“वह तो आते ही गाली-गलोच पर उतर आये, मारपीट शुरू कर दी. नाम-पता पूछ ही न पाया.”
“कार का नंबर तो देखा होगा? क्या नंबर था?” पुलिसवाला थोड़ा झुंझला रहा था.
“लाल रंग की कार थी, नई, शायद होंडा सिटी, पर नंबर नहीं देख पाये.”
“तुम क्या कर रहे थे? तुमने क्या देखा?” पुलिस वाले ने दूसरे चौकीदार से पूछा.
“मैंने तो सर झटपट सेक्रेटरी साहब को फोन कर दिया.”
“और क्या जानते हो उनके बारे में?” पुलिसवाले ने निराशा से पूछा.
“सर, वह सब चोर थे, पक्के चोर. गारंटी से कह सकता हूँ,” दूसरे चौकीदार ने बड़े आत्मविश्वास के साथ कहा.
“अरे, यह तुमने कैसे जान लिया कि वह सब चोर थे? तुम जानते हो उन लोगों को? तुम्हारा मेलजोल है उनके साथ?” पुलिस वाले ने आश्चर्य से पूछा.  
अवैतनिक सचिव महोदय और अन्य लोग, जो वहां एकत्र थे और यह वार्तालाप सुन रहे थे, चौकीदार की बात समझ न पाये. सब के सब चकरा गये.
“नहीं सर, मैं उनको बिल्कुल नहीं जानता. मेरा उनके साथ कोई लेनदेन नहीं है.” चौकीदार थोड़ा घबरा गया.
“फिर कैसे जाना तुमने कि वह लोग चोर थे? कौन थे वह? बोलो,” पुलिस वाला थोड़ा गुस्से से बोला.
“सर, सूट-बूट पहने थे, सब के सब सूट-बूट पहने थे.”
“क्या कह रहे हो तुम?” पुलिसवाले ने खीज कर पूछा.
“सर, न्यूज़ में बता रहे थे आज.   चोर सूट-बूट पहनते हैं.....”
तभी सोसाइटी के प्रेसिडेंट, सूट-बूट पहने, अपने परिवार के साथ बाहर से आये.
उन्हें देख कर किसी ने चुटकी ली, “सूट-बूट पहनना जी का जंजाल  होने वाला है.”
“यहाँ तो सभी सूट-बूट पहनते ही हैं, कभी न कभी,” किसी दूसरे ने कहा.
“सभी चोर हैं.” किसी तीसरे ने कहा.
सब एक दूसरे का मूहं ताकने लगे.

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