Wednesday 3 June 2015


अविने जी का कुत्ता
अविने जी (अर्थात अति विशिष्ट नेता जी) के अति प्रिये कुत्ते को एक आदमी ने काट खाया, जिसने भी यह समाचार सुना स्तब्ध हो गया. मीडिया में तो जैसे एक भूकम्प आ गया.
पर इस मायावी संसार में कुछ भी अकारण नहीं घट जाता. इस कांड का आरंभ भी कई माह पहले हुआ था.
एक आदमी की बेटी और पत्नी को दिन-दिहाड़े कुछ लोग उनके घर से उठा कर ले गये. पचासों लोगों ने देखा और देखते ही रहे; चुपचाप, हाथ जेबों में डाले, जैसे वह सब कोई नुक्कड़ नाटक देखने आये थे.  
वह आदमी पागलों की तरह भागा, कभी इधर, कभी उधर. किसी ‘संवेदनशील’ व्यक्ति ने कहा कि यूँ यहाँ-वहां क्यों भाग रहे हो, सीधा पुलिस के पास जाओ, रिपोर्ट लिखाओ.
पुलिस इंस्पेक्टर ने धीरज से उस आदमी की बात सुनी, कई प्रश्न पूछे, हर प्रकार की जानकारी ली और कहा, “अरे, इतना परेशान होने वाली क्या बात है. एक–दो दिन में मौज मस्ती करके लौट आयेंगी. घर जाओ और चैन से सोये रहो.” फिर उसने ज़ोर का ठहाका लगाया और बोला, “मां-बेटी एक साथ, क्या ज़माना आ गया है.”
छह महीने बीत गये. इस बीच वह आदमी संतरी से लेकर मंत्री तक और फिर मंत्री से लेकर संतरी तक बदहवास भागता रहा. पर किसी ने उसकी गुहार न सुनी; बस किसी ने ठोकर मारी तो किसी ने कोई भद्दा मज़ाक किया.
जब कुछ न सुझाई दिया तो एक दिन अविने जी के बंगले के निकट, सुरक्षा परिधि से दूर, एक जगह वह बैठ गया. यह उसका सत्याग्रह था, न्याय के लिए, अपने परिवार के लिए.
परन्तु उसके सत्याग्रह पर भी किसी का ध्यान न गया. ऐसी फ़िज़ूल लोगों के लिए न अविने जी के पास समय था न सरकार के पास. जो लोग सरकार की सुबह से शाम तक आलोचना करके अपनी आजीविका चलाते हैं उनका भी ध्यान उस अभागे की ओर न गया. उनमें से कई लोग बाद में अपने को कोसने वाले थे क्योंकि ‘रोटियाँ’ सेंकने का एक सुनहरा अवसर उन्होंने लापरवाही से गवां दिया था.
समाचार पत्रों और टीवी के लिए वह अभी कोई मुद्दा न था. एक स्थानीय हिंदी समाचार पत्र में एक छोटी-सी खबर अवश्य छपी थी, पर उस खबर को उन गिने-चुने लोगों ने ही पढ़ा जो समाचार पत्रों का मन लगा कर पूरा अध्ययन करते हैं.  
उसका सत्याग्रह भी निरर्थक हो रहा था. तभी उसने एक दिन अविने जी के प्रिये कुत्ते को देखा. एक नौकरनुमा कार्यकर्ता उस कुत्ते को सैर करा रहा था. एक ढीला-ढाला सुरक्षाकर्मी, बंदूक लटकाए, उकताया-सा, पीछे-पीछे आ रहा था. हर दिन ऐसा ही होता था, परन्तु उस दिन से पहले उस आदमी ने उस कुत्ते की ओर कोई ध्यान न दिया था. एक पागलपन ने उसे दबोच लिया.
उसने नौकरनुमा कार्यकर्ता की ओर देखा और कुत्ते पर झपटा. इस से पहले कि किसी को कुछ समझ आता उसने कुत्ते को उसकी टाँग पर काट डाला.
एक घंटे की भीतर ही यह समाचार सभी टीवी चैनलों पर वैसे ही छा गया जैसे आकाश में मानसून के बादल छा जाते हैं. कई चैनलों ने प्रसारण रोक कर यह ब्रेकिंग न्यूज़ दी.
संसद का सत्र चाल रहा था. अविने जी के पार्टी के सांसदों ने इस मुद्दे को उठाया और आरोप लगाया कि सरकार ने जानबूझ कर अविने जी के कुत्ते को उचित सुरक्षा नहीं दी थी. उन्होंने धमकी दी की वह सदन की कारवाई तब तक न चलने देंगे जब तक सरकार क्षमा नहीं मांगती और इस लापरवाही के लिए जिम्मेवार अधिकारियों के विरुद्ध कार्यवाही नहीं करती. कुछ सांसदों ने तो गृह मंत्री के त्यागपत्र की मांग भी कर दी.
टीवी और समाचार पत्रों के लोग बदहवास से एक नेता से दूसरे नेता के पास भाग रहे हैं यह जानने को कि उनकी आगे की रणनीति क्या होगी. एक चैनल ने दर्शकों को विश्वास दिलाया है कि अगर उनका पत्रकार कुत्ते का इंटरव्यू न भी ले पाये तो कैसे भी करके कुत्ते का एक छायाचित्र तो लोगों को दिखा ही दिया जायेगा.
‘अखिल भारतीय कुत्ता संरक्षण समिति’ ने एक जन सभा कर के मांग की कि  अविनेजी के कुत्ते का इलाज करने के लिए अच्छे से अच्छे पशु-चिकित्सक बुलवाए जाएँ. अन्यथा उस कुत्ते को चिकित्सा के लिए विदेश भेजा जाये.  
एक युवा संघ ने तय किया है कि अविने जी के कुत्ते और उनके घर के नौकरों-चाकरों की सुरक्षा हेतु संघ अपने स्वयंसेवकों को नियुक्त करेगा.
गृह मंत्री चिंतित हैं कि प्रधान मंत्री से क्या कहें और प्रधान मंत्री उन्हें हटा अपने किसी चहेते को गृह मंत्री बनाने का अवसर खोज रहे हैं.
विश्वस्त सूत्रों से पता चला है कि जिस आदमी ने कुत्ते को काटा था उसे हिरासत में ले लिया गया है. पूछताछ की जा रही है. उसने अपने परिवार के सम्बन्ध में एक कहानी बताई है, अधिकारियों ने उस कहानी को मनगढ़ंत बता कर नकार दिया है. अधिकारी भटकने को तैयार नहीं हैं. उन को लग रहा है कि वह आदमी एक बहुत घिनौने षड्यंत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा है और षड्यंत्र के पीछे विदेशी ताकतों का हाथ होने की आशंका भी है. अधिकारियों को पूरा विश्वास है कि वह इस षड्यंत्र से शीघ्र ही पर्दा उठा देंगे.
इस बीच किसी ने भी यह जानने का प्रयास नहीं किया कि उस आदमी की पत्नी और बेटी के साथ क्या हुआ.


2 comments:

  1. Nice satire. Shows our misplace sense of priority.

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    1. धन्यवाद अभिजित

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