Tuesday 29 September 2015

दामाद से माँ तक
एक समय था जब इस संसार में कई लोगों का दृढ़ विश्वास था की धरती ही इस सृष्टी का केंद्र है. सारे ग्रह, सूरज, तारे धरती के चारों ओर चक्कर लगाते हैं. अगर कोई यह कहने का साहस करता कि ऐसा नहीं है तो ऐसे अपधर्मी को या तो मृत्युदंड मिलता या काल-कोठरी.
आज कांग्रेस पार्टी की भी यही दशा है. उनके लिए देश की राजनीति का केंद्र गांधी परिवार है और उनका अटल विश्वास है कि सारी राजनीति और सारे राजनेता गांधी परिवार के चारों ओर चक्कर लगा रहे हैं.  
इस कारण जब मोदी ने सिलिकॉन वैली में भारतीय समुदाय के लोगों को संबोधित करते हुए अपने भाषण में दामाद शब्द का प्रयोग किया तो कांग्रेस के नेता आग-बबूला हो गये.
मोदी ने कहा था कि “........हमारे देश में राजनेताओं पर कुछ ही समय में आरोप लग जाते है इसने पचास करोड़ बनाया, उसने सौ करोड़ बनाया, बेटे ने ढाई सौ करोड़ बनाया, बेटी ने पाँच सौ बनाया, दामाद ने हज़ार करोड़ बनाया, चचेरे भाई ने कॉन्ट्रैक्ट ले लिया, मौसेरे भाई ने फ्लैट बनाया, यह सुनने को मिलता है या नहीं मिलता......”
पहली बात, मोदी ने किसी एक राजनेता या उसके परिवार पर आरोप नहीं लगाये. दूसरी बात, यह एक कटु सत्य है कि जीप कांड (जो १९४८ में घटा) से लेकर  कोल स्कैम (२०१२/१३)  तक राजनेताओं के विरुद्ध आरोप लगते रहे हैं. अगर हर आरोप की निष्पक्ष जांच हुई होती तो पता चलता कि किस राजनेता के कौन-कौन संबंधी भी आरोपों के घेरे में हैं, दुर्भाग्य है कि जैसी जांच जीप कांड की हुई ऐसी ही जांच अन्य आरोपों की हुई. अगर किसी मामले में जांच हुई भी तो सिर्फ कोर्ट के निर्देशों पर, फलस्वरूप आरोप तो कई लोगों के विरुद्ध लगे पर जेल में इक्का-दुक्का लोग ही गये.
एक बात जो समझ से परे है वह कांग्रेस का इस तरह तिलमिला जाना. ऐसा लगता है कि ‘भ्रष्टाचार’ शब्द उन्हें डरा देता है और सब के सब कांग्रेस नेताओं को लगता है कि गांधी परिवार पर ही आरोप लगाये जा रहें. ऐसा संदेह होता कि जैसे वह किसी असुरक्षा की भावना से ग्रस्त है. ऐसा क्यों है कहना कठिन है. क्या वह जानते हैं कि जिन आरोपों की लोग चर्चा करते हैं वह आरोप पुरी तरह निराधार नहीं हैं और वह यह भी जानते हैं कि मोदी को भी अब इस बात की जानकारी है.
मोदी की माँ के संबंध में जो शब्द कांग्रेस के नेताओं ने किये हैं वह दुर्भाग्य पूर्ण हैं, मोदी का अपमान करने के बजाये वह एक मां का अपमान कर रहे हैं, और अगर मोदी स्वयं झूठ बोल कर माँ का अपमान कर रहे हैं तो यह कांग्रेस की समस्या नहीं है, कांग्रेस के लोग क्यों गटर के लेवल तक पहुंचना चाहते हैं.

सत्ता को लोभ मनुष्य को कितना गिरा देता है आज की राजनीति इसका जीता जागता प्रमाण है. 

Saturday 19 September 2015


लापरवाही
मुकंदी लाल उन गिने चुने नागरिकों में से एक हैं जो देश के हर कानून का पूरा-पूरा पालन करते हैं, इस लिए नहीं कि किसी क़ानून का उल्लंघन करने का उनका मन नहीं होता, मन तो उनका कई बार किया है कि किसी ऊल-जलूल क़ानून का कम से कम एक बार तो उल्लंघन किया जाये, पर क़ानून तोड़ने का साहस वो आज तक नहीं जुटा पाए. वह तो सुबह पाँच बजे भी लाल बत्ती पार करने का साहस नहीं कर पाते, उस समय भी लाल बत्ती पर बाकायदा तब तक रुकते हैं जब तक की वह हरी नहीं हो जाती, सड़क पर कोई ट्रैफिक हो या न हो इस बात से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता. 
पर वही मुकंदी लाल एक दिन क़ानून के शिकंजे में फंस गये.
हुआ यूँ कि अपने छोटे बेटे के साथ अपने स्कूटर पर बैठ वह मार्किट तक गये. रास्ते में कई जगह कई प्रकार के गड्डे थे. कई जगह बजरी बिखरी पड़ी थी. एक-आध जगह बड़े-बड़े पत्थर भी सड़क पर पड़े थे. मुकन्दी लाल बड़े ध्यान से अपना स्कूटर चला रहे थे. गति तीस से भी कम थी. रास्ता जाना पहचाना थे. गड्डे भी जाने-पहचाने थे, जगह-जगह बिखरी बजरी भी  जानी पहचानी थी. हर बार बड़ी होशियारी के साथ इन सब से बचते-बचाते हुए अपने स्कूटर पर वह घर से दफ्तर या मार्किट आया-जाया करते थे.
पर उस दिन थोड़ी चूक हो गई. एक जगह उनका स्कूटर रास्ते में पड़ी बजरी पर आ चढ़ा. स्कूटर डोलने लगा. गति बहुत कम थी पर फिर भी वह उसे संभाल न पाये. स्कूटर फिसल कर धरती पर लुढ़क गया. बेटे को एक भी चोट न लगी पर मुकंदी लाल के पाँव की हड्डी टूट गई. जैसे-तैसे कर वह घर पहुंचे. घर पहुँचते ही उन्हें चक्कर सा आया और अपने को संभाल न पाये. पत्नी ने आग्रह किया कि तुरंत अस्पताल चल कर डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिये.
दोनों, अपने एक पड़ोसी को साथ ले, अस्पताल पहुंचे. आपात कालीन सेवा का लाभ उठाया. मौके पर उपस्थित डॉक्टर बोले कि हड्डी टूट गई लगती है, हड्डी वाले डॉक्टर को दिखाइये, तीनों वहां से चल दिए हड्डी विभाग की ओर जो अस्पताल के दूसरे सिरे पर था. वह हड्डी वाले डॉक्टर के पास पहुंचे ही थे कि दो पुलिस वालों ने उन्हें घेर लिया.
‘आपका एक्सिडेंट हुआ है? स्कूटर कौन चला रहा था? किसने टक्कर मारी? आपने किसी को मारा? हुआ क्या था? किस-किस को चोट लगी है?’ एक पुलिस वाले ने उन्हें देखते है कई सवाल दाग दिए. 
मुकन्दी लाल ने धीरज से हर सवाल का जवाब दिया और घटना की सारी जानकारी पूरे विस्तार से पुलिस को दी.
‘आप ठीक ही कह रहे होंगे कि न आपने किसी को मारा और न ही किसी ने आपको मारा, पर फिर आप भी के खिलाफ एक केस तो बनता ही है.’
‘कैसा केस?’
‘आप लापरवाही से गाड़ी चलाते हैं.’
‘ऐसा नहीं है. मैं तो बड़े ध्यान से गाड़ी चलाता हूँ, और आज भी न कोई दुर्घटना हुई है, न ही किसी को चोट लगी है?’
‘क्यों? आप को चोट नहीं लगी क्या? और बात इतनी सरल नहीं है, जो आदमी लापरवाही से सड़क पर गाड़ी चलाता है वह किसी के लिए भी दुर्घटना का कारण बन सकता है. आप की लापरवाही के कारण किसी की जान जा भी सकती है.’
‘.......’
मुकंदी लाल की बोलती बंद हो गई.
‘इतना टाइम नहीं है हमारे पास, रिपोर्ट लिखो और केस बनाओ,’ दूसरे पुलिस वाले ने पहले वाले से कहा, अब तक वह चुपचाप सारी बात सुन रहा था.
मुकंदी लाल के खिलाफ केस दर्ज कर पुलिस वाले उतनी ही मुस्तैदी से चल दिये जितनी मुस्तैदी से वह आये थे. बेचारे मुकंदी लाल समझ ही न पाये कि उनका दोष क्या था.

(समाचार सुना कि बंगलुरु में एक व्यक्ति के खिलाफ पुलिस न केस दर्ज किया है क्योंकि ‘उसकी लापरवाही से’ सड़क दर्घटना में उसकी पत्नी की मृत्यु हो गई, जब की एक सड़क के बीच एक गड्डे के कारण उसका बाइक गिर गया था. ऐसी ही एक घटना कई वर्ष पहले मेरे साथ हुई थी. मुझ पर केस दर्ज तो न किया था. पर मुझ कहा गया था कि लापरवाही का केस दर्ज हो सकता है. इससे प्रेरित हो कर यह व्यंग्य लिखा है) 

Tuesday 1 September 2015

इन्द्राणी मुखर्जी और मीडिया सर्कस
जिस देश में हर दिन चार सौ से अधिक लोगों की सड़क दुर्घटनाओं में मृत्यु ही जाती है और हर वर्ष इन दुर्घटनाओं के कारण हज़ारों परिवार विनाश के कगार तक पहुँच जाते हैं, जिस देश में हर दिन कोई आठ सौ महिलाओं और बच्चियों के साथ हत्या, बलात्कार, यौन उत्पीडन इत्यादि के अपराध घटित होते हैं, जिस देश में हज़ारों बच्चे लापता हो जाते हैं और इन लापता बच्चियों से कई को यौन व्यापार में धकेल दिया जाता है. जिस देश में लाखों लोग भुखमरी का शिकार हैं, किसान आत्म-हत्याएं कर रहे हैं, संसद के एक सदन पूरा स्तर हंगामें में खो देता है, आये दिन आतंकवादी इत्यादि लोगों और पुलिस पर हमला करते हैं उस देश में पिछले कई दिनों से मीडिया में एक ही चर्चा का विषय है, इंद्रानी मुखर्जी.
एक तरह से देखा जाये तो ठीक ही है. जब एंटरटेनमेंट चैनल लोगों का एंटरटेनमेंट नहीं कर पा रहे, कॉमेडी चैनल लोगों को हंसा नहीं पा रहे, न्यूज़ चैनल्स की विश्वसनीयता पर लोगों की  अधिक आस्था  नहीं है तो ऐसे में किसी न्यूज़ चैनल के लिए टी आर पी बढ़ाने का क्या उपाय हो सकता है. अब राधे माँ पर कितने दिन तक आप चर्चा कर सकते हैं? सिर्फ एक राधे माँ के कितने भेद खोज-खोज कर आप लोगों को बता सकते हैं?
 इंद्रानी मुखर्जी तो दैवीय वरदान है न्यूज़ चैनल्स के लिए. यहाँ तो हर पात्र अपने में एक सनसनी है, एक अनबुझी पहेली है. कितने भेद हैं जो उजागर होने के लिए तड़प रहे हैं. जितना रोमांच भारत-पाक एक दिवसीय क्रिकेट मैच में होता है उससे कई गुणा अधिक रोमांच इस ‘मैच’ में है, जो हर न्यूज़ चैनल दर्शकों के साथ खेल रहा है.

पर तरस आता ऐसे समाज पर जिसे ऐसे दुर्भाग्यपूर्ण घटना कर्म में न्यूज़ (एंटरटेनमेंट कहना ही उचित होगा) दिखाई देती है, ऐसी न्यूज़ जिस पर घंटों बहस हो सकती है.