Saturday 26 January 2019


लघुकथा

जब उन्होंने उसकी पहली अजन्मी बेटी की हत्या करनी चाही तो उसने हल्का सा विरोध किया था. वैसे तो वह स्वयं भी अभी माँ न बनना चाहती थी. उसकी आयु ही कितनी थी-दो माह बाद वह बीस की होने वाली थी. उन्होंने उसे समझाने का नाटक किया था और वह तुरंत समझ गयी थी.
लेकिन उसके विरोध ने उन्हें क्रोधित कर दिया था. किसी विरोध को सहन करने की आदत उन्हें नहीं थी.
जब उसकी दूसरी अजन्मी बेटी को उन्होंने मार डालने की बात कही थी तो उसने फिर विरोध किया था, और इस बार उसने प्रचंडता से विरोध किया था.
उन्हें इस विरोध की अपेक्षा थी, इसलिये वह पूरी तैयारी के साथ आये थे. उन्होंने कठोरता से जतला दिया था कि उसे तो उनका आभारी होना चाहिये; वह सिर्फ उसकी बेटी को मार रहे थे, वह चाहते तो उसे भी मार सकते थे.
उसके हाथ-पाँव बाँध दिए गये थे. बाकी कार्यवाही बड़ी दक्षता के साथ पूरी कर ली गई थी.
चार माह बाद वह फिर गर्भवती हुई. इस बार वह बहुत  भयभीत थी. उन्हें दबी आवाज़ में बातें करते उसने सुन लिया था. वह जानती थी कि वह नितांत अकेली और असुरक्षित थी. विरोध तो दूर, वह एक शब्द भी न बोल पाई.
उसकी दशा चालाक शिकारियों के बीच घिरे एक असहाय पशु समान थी. वह आये और उन्हें देखते ही वह समझ गयी कि इस बार उसके अजन्मे शिशु की नहीं, उसकी हत्या की जायेगी.

Friday 25 January 2019


निमंत्रण

‘क्या तुम्हें पूरा विश्वास है कि यह निमंत्रण इस ग्रह के निवासियों के लिये है? मुझे तो लगता है कि किसी भी ग्रह के वासी पृथ्वी-वासियों को अपने यहाँ नहीं बुलाना चाहेंगे!’
‘क्यों? क्या खराबी है इन जीवों में?’
‘तुम्हें पूछना चाहिए कि क्या खराबी नहीं है इनमें!’
एलियंस का अन्तरिक्ष-यान अभी भी पृथ्वी से कई लाख मील दूर था लेकिन यान की हर प्रणाली चेतावनी संकेत दे रही थी.
‘चेतावनी! चेतावनी! चेतावनी! इस ग्रह की हर वस्तु दूषित प्रतीत होती है, लोगों के मन और हृदय भी. हम लोगों से अवश्य ही कोई गलती हुई है. इस ग्रह के वासियों को हम अपने ग्रह पर नहीं आने दे सकते, कभी नहीं. यह निमंत्रण तो मैं वापस ले जाऊँगा.........चलो, लौट चलें.’
‘आप ठीक कह रहे हैं. हमें तो अपने अपराधियों को इस ग्रह पर भेज देना चाहिये.......’
‘सच में,  उनको नरक भेजने समान होगा ऐसा दंड.’ 

Wednesday 23 January 2019


प्रतिशोध
होटल में प्रवेश करते ही दिनेश ने अमर को देख लिया. उनकी नज़रें मिलीं पर दोनों ने ऐसा व्यवहार किया कि जैसे वह एक दूसरे को पहचानते नहीं थे. परन्तु अधिक देर तक वह एक दूसरे की नकार नहीं पाये.
‘बहुत समय हो गया.’
‘हाँ, दस साल, पाँच महीने और बाईस दिन.’
‘तुम ने तो दिन भी गिन रखे हैं?’
‘क्यों? तुम ने नहीं गिन रखे?’
‘क्या कभी जय से भेंट हुई? या बि......’
‘कभी नहीं. तुम्हारी?’
‘कभी नहीं.’
लेकिन दोनों ही नहीं जानते थे कि जय और बिन्नी भी उसी होटल में रुके हुए थे. वह दोनों दुपहर के पहले आ गये थे. वैसे जय और बिन्नी की अभी तक आपस में भेंट न हुई थी.
किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि एक दिन चारों एक साथ एक ही होटल में रुकेंगे. इन दस वर्षों में वह कभी भी एक दूसरे से न मिले थे. किसी प्रकार को कोई संपर्क उनके बीच नहीं था. हरेक के लिए जैसे बाकी तीनों का कोई अस्तित्व ही नहीं था.
होटल के बार में चारों इकट्ठे हुए. यह कोई सुनियोजित मुलाक़ात नहीं थी. बार में थोड़ा समय बिताने के लिये चारों अलग-अलग ही आये थे और हरेक अन्य को देख कर सकपका गया था. अतीत की परछाइयों से घिरे हुए वह एक साथ बैठ तो गये, पर कोई किसी से बात करने को उतावला न था.
बातचीत शुरू हुई पर बेमतलब की, एक दूसरे से आँखें चुराते हुए. अतीत के विषय में किसी ने कोई बात न की. चारों ने यह भी जानने का प्रयास न किया कि कौन कहाँ था और किस कारण वहां उस होटल में रुका हुआ था.
अचानक अमर उठ खड़ा हुआ, वह अपने रूम में जाकर विश्राम करना चाहता था. वह पलटा. तभी पास से गुज़रती एक लड़की लड़खड़ा गई. इससे पहले कि वह गिरती उसने हाथ बढ़ा कर अमर का हाथ थाम लिया. अगर गिरती तो शायद बुरी तरह उनकी मेज़ पर ही गिरती.    
‘धन्यवाद, आपने मेरी लाज रख ली. पर क्या आप सुंदर लड़कियों को गिरने से अकसर बचाते हैं?’ उसने अमर की आँखों में एक अजीब अंदाज़ से देखा. अमर ने नज़रें मोड़ लीं.
‘अगर यह बैचलर पार्टी नहीं है तो क्या मैं आपके साथ बैठ जाऊं?’
‘यह तो हमारा सौभाग्य.......’ बिन्नी बोला पर फिर कुछ सोच कर ठिठक गया.
लड़की ने उनकी झिझक की बिलकुल परवाह नहीं की और बड़े विश्वास के साथ वहां बैठ गई.
चारों ने चोरी-चोरी एक दूसरे को देखा. हरेक के मन में संदेह की हल्की-हल्की लहरें उठने लगी थीं. हरेक बात शुरू करने में हिचकिचा रहा था. लेकिन उनकी रहस्यमय चुप्पी से बेखबर वह लड़की बातें किये जा रही थी. उनके निमंत्रण की प्रतीक्षा किये बिना ही उसने एक ड्रिंक मंगवा लिया था.
‘आप लोग क्या पहली बार मिल रहे हो? मुझे तो लगा था कि आप सब पुराने मित्र हो? शायद कॉलेज के सहपाठी? नहीं?’
किसी ने उसकी बात का उत्तर नहीं दिया और अपने-अपने ड्रिंक्स  में व्यस्त हो गये.
धीरे-धीरे तनाव कम होने लगा. उनके होंठो पर मुस्कान थिरकने लगी. उन्होंने देखा की लड़की जितनी सुंदर थी उतनी ही हंसमुख भी थी. लेकिन उसे देख कर दिनेश और अमर को कुछ घबराहट सी भी हो रही थी. न जाने क्यों वह लड़की उन्हें किसी और का याद दिला रही थी.
या तो शराब का नशा था या फिर उस लड़की ने उन्हें इतना सम्मोहित कर दिया था वह चारों अचानक बीते दिनों की बात करने लगे थे.
‘लेकिन इन दस वर्षों में आप कभी आपस में नहीं मिले?’
‘नहीं, हमारी पिछली मुलाक़ात दस वर्ष पाँच महीने और बाईस दिन पहले हुई थी,’ दिनेश ने अनायास ही कहा.
‘उसी दिन न जिस दिन नीली आँखों वाली लड़की मरी थी या फिर तुम सब ने मिल कर उसे मार डाला था?’
उसके शब्दों ने उन्हें चौंका डाला.
‘नहीं, वह तो सिर्फ एक दुर्घटना थी. एक दुर्घटना! वह अपनी इच्छा से आई थी पर बाद में वह हमें धमकाने लगी. हम उसकी हत्या क्यों करते है?’ दिनेश हड़बड़ा कर ज़रा ऊंची आवाज़ में बोला. लेकिन अगले ही पल उसे अहसास हुआ कि उसने बिना सोचे-समझे ही बहुत कुछ कह डाला था. वह एक भयानक भूल कर बैठा था.
‘वह एक दुर्घटना नहीं थी और यह बात तुम सब अच्छी तरह जानते हो,’ लड़की के शब्द कोड़े समान लगे.
जय ने इधर-उधर देखा. बार लगभग खाली था. उसने घड़ी देखी, बारह बजने वाले थे. इतना समय कैसे बीत गया. कहीं घड़ी खराब तो नहीं हो गयी? उसकी घबराहट उसकी आँखों से छलकने लगी.
‘तुम कौन हो? तुम उस लड़की के विषय में कैसे जानती हो?’ जय ने लगभग धमकाते हुए पूछा.
‘तुम मुझे नहीं जानते? देखो मेरी ओर, ध्यान से. मैं वही लड़की हूँ जिसे तुम ने उस दिन मार डालना चाहा था.’
उन्हें समझ न आया कि वह क्या कह रही थी. आश्चर्यचकित से वह उसे घूरने लगे. अचानक वह भयभीत हो गये.
‘नहीं, ऐसा नहीं हो सकता! तुम हमें मूर्ख समझती हो!’
‘क्यों ऐसा नहीं हो सकता?’ लड़की की आँखें क्रोध से जलने लगी थीं.
‘क्योंकि हमने उसकी लाश को भट्टी में जला दिया था, हालाँकि वह एक बहुत घिनौना काम था जिसके लिए मैंने सदा अपने से घृणा की है,’ दिनेश ने बिना रुके कहा और अपने आप में सिमट कर बैठ गया. उसकी दबी हुई सिसकियाँ साफ़ सुनाई पड़ रही थीं.
‘ऐसा भयानक काम तुम कैसे कर पाए?’ लड़की ने कांपती हुई आवाज़ में कहा. उसकी आँखें भर आई थीं.
‘तुम कौन हो?’ जय की आवाज़ कांप रही थी लेकिन उसकी आँखें भय और तिरस्कार से जल रही थीं.
‘मैं उस मृत लड़की की छोटी बहन हूँ. वर्षों से मैं तुम लोगों को ढूँढ़ रही थी. तुम सब मेरे कारण ही यहाँ आये हो. कांफ्रेंस तो बस एक बहाना थी.’
वह चुप हो गयी और कई पलों तक कोई कुछ न बोला. लड़की ने घूरते हुए उनको देखा.
‘यह सब मैं तुम लोगों के मुख से सुनना चाहती थी...... तुम सब को मारने से पहले.’
‘तुम ऐसा नहीं कर सकती!’ बिन्नी चिल्लाया.
‘क्या नहीं कर सकती?’
‘तुम हमें.....’
‘क्यों नहीं मार सकती? मैं तुम्हें मार चुकी हूँ!’
चारों स्तब्ध रह गये.
‘यह शराब जो तुम चारों यहाँ बैठे कर पी रहे हो इसमें ज़हर मिला हुआ है....................’
चारों की आँखें पत्थर सी गईं.
‘तुम सब मरोगे. अभी एकदम से नहीं नहीं, पर जल्दी ही.’
लड़की ने दूर एक कोने में बैठे एक लड़के की ओर देखा और मुस्करा दी.

Thursday 17 January 2019


मृत्युदंड
वह एक निर्मम हत्या करने का दोषी था. पुलिस ने उसके विरुद्ध पक्के सबूत भी इकट्ठे कर लिए थे.
पहले दिन ही जज साहब को इस बात का आभास हो गया था कि अपराधी को मृत्यदंड देने के अतिरिक्त उनके पास कोई दूसरा विकल्प न होगा. लेकिन जिस दिन उन्हें दंड की घोषणा करनी थी वह थोड़ा विचलित हो गये थे. उन्होंने आज तक किसी अपराधी को मृत्युदंड नहीं दिया था. इतने दिन मन ही मन वह कामना कर रहे थे कि मामले में अचानक कोई नया मोड़ आ जाएगा और स्थिति पलट जायेगी. लेकिन ऐसा हुआ. हर नया सबूत उनके विकल्पों को सीमित कर उन्हें उस विकल्प तक ले जा रहा था जिसकी कल्पना भी वह नहीं करना चाहते थे. वह अच्छी तरह समझते थे कि अपराधी को मृत्युदंड दे कर ही इस मामले में उचित न्याय हो पायेगा.
मृत्युदंड की घोषणा करते समय जज भावावेश से कांप रहे थे.
आजतक कभी भी अदालत से एकाएक उठ कर वह नहीं गये थे. लेकिन आज वह इतने उद्वेलित हो गये थे कि कोई और केस सुनने का साहस उन में नहीं रहा था. घर पहुंचे तो वह बिलकुल दयनीय, विकल और निस्तेज दिख रहे थे.
हत्यारे को पुलिस अदालत से बाहर ले आई. उसकी चाल में ज़रा सी भी हिचकिचाहट न थी और उसकी निर्मम आँखें बिलकुल भावनाशून्य थीं.
*************
(सलीम अली की आत्मकथा, ‘दि  फॉल ऑफ़ ए स्पैरो’ में  लिखी एक घटना से प्रेरित.)

Saturday 12 January 2019


लघुकथा-सात
1 जनवरी 20..
आतंकवादियों ने सेना की एक बस पर अचानक हमला कर दिया. बस में एक भी सैनिक नहीं था. बस में स्कूल के कुछ बच्चे पिकनिक से लौट रहे थे. एक बच्चा मारा गया, पाँच घायल हुए.
सारा नगर आक्रोश और उत्तेजना से उबल पड़ा. लोग सड़कों पर उतर आये; पहले एक नगर में, फिर कई नगरों में. हर कोई सरकार को कोस रहा था. हर समाचार पत्र और हर न्यूज़ चैनल भड़का हुआ था.
1 फरवरी 20..
उसी नगर में एक स्कूल बस बहुत तेज़ गति से चल रही थी. ट्रैफिक सिग्नल लाल हो गया. पर ड्राईवर ने बस को ज़रा भी धीमे नहीं किया और ट्रैफिक सिग्नल की अनदेखी कर बस चलाता रहा. बस दुर्घटनाग्रस्त हो गई. छह बच्चे मारे गये, पन्द्रह घायल हुए.
न लोग उत्तेजित हुए, न भड़के. समाचार पत्रों और न्यूज़ चैनलों के लिए तो यह कोई समाचार ही न था.
ऐसा कुछ होता भी क्यों? जिस देश में चार सौ से अधिक लोग हर दिन सड़कों पर मरते हैं, वहां सड़क-दुर्घटना में मरे छह बच्चों के लिये कौन रोये?
(एक रिपोर्ट के अनुसार अधिकतर सड़क दुर्घटनाएं वाहन-चालकों की गलती के कारण होती हैं)

Friday 4 January 2019


लघुकथा-छह
‘बच्चे, उस बाड़ से दूर रहना, उसे छूना नहीं. उसमें बिजली चल रही है.’
‘लेकिन यह बाड़ यहाँ क्यों है? इसमें बिजली क्यों चल रही है.’
‘यह सब हमारी सुरक्षा के लिये है.’
‘हमारी सुरक्षा? किस से?’
वृद्ध एकदम कोई उत्तर ने दे पाए. कुछ सोच कर बोले, ‘बच्चे, यह बात तो मैं भी समझ नहीं पाया.’
‘वह हमें मूर्ख बना रहे हैं.’
‘शायद तुम सही कह रहे हो.’
तभी तीन आदमी आ पहुंचे. तीनों एक जैसे दिख रहे थे.
‘दादाजी, रोबोट आ गये!’
‘आपने कर देने में फिर देरी कर दी?’ एक आदमी बोला.
‘मुझे थोड़ा समय और चाहिये.’
‘आपका समय तो कब का समाप्त हो चुका है,’ दूसरे ने कहा.
तीसरे ने वृद्ध को उठा कर बाड़ की ओर धकेलना शुरू कर दिया.