Saturday 26 February 2022

 

अकेलो जाय रे

वाजिद के कुछ अमूल्य वचन फिर सांझा कर रहा हूँ.

टेढ़ी पगड़ी बाँध झरोखा झांकते

तांता तुरग पिलाण चहूँटे डाकते

लारे चढ़ती फौज नगारे बाजते

वाजिद ये नर गए विलाय सिंह ज्यूँ गाजते.

दो-दो दीपक जोए सु मंदिर पोढ़ते

नारी सेती नेह पलक नहीं छोड़ते

तेल फुलेल लगाय क काया चाम की

हरि हाँ, वाजिद मर्द गर्द मिल गये दुहाई राम की.

सिर पर लंबा केस चले गज चाल सी

हाथ गह्यां समसेर ढलकती ढाल सी

एता यह अभिमान कहाँ ठहराहिंगे

हरि हाँ, वाजिद ज्यूँ तीतर कू बाज़ झपट ले जाहिंगे.

कारीगर करतार क हूंदर हद किया

दस दरवाज़ा राख शहर पैदा किया

नखसिख महल बनायक दीपक जोड़िया

हरि हाँ वाजिद, भीतर भरी भंगार क ऊपर रंग दिया.

काल फिरत है हाल रैणदिन लोई रे

हणै राव अरु रंक गिने नहिं कोई रे

यह दुनिया वाजिद बाट की दूब है

हरि हाँ, पाणी पहिले पाल बंधे तो खूब है.

सुकिरत लीनो साथ पड़ी रहे मातरा

लांबा पाँव पसार बिछाया सांथरा

लेय चल्या बनवास लगाईं लाय रे

हरि हाँ, वाजिद देखे सब परिवार अकेलो जाय रे

भूखो दुर्बल देखि नाहिं मुहं मोड़िये

जो हरि सारी देय तो आधी तोड़िये

दे आधी की आध अरध का कौर रे

हरि हाँ, वाजिद अन्न सरीखा पुण्य नहिं कोई और रे.

वाजिद कह रहे हैं कि इस संसार में ऐसे भी अभिमानी लोग आये जो सिंहों के सामान गरजते थे और हाथियों के समान जिनकी चाल थी. पर राम जी की कृपा से सब एक दिन मिट्टी में मिल गए. चाहे राजा हो या रंक, काल के लिए सब बराबर हैं. और जब अंत आएगा तो अकेले ही जाना होगा. लेकिन कर्म साथ रहेंगे.

  

Saturday 12 February 2022

 

हिजाब आंदोलन-असली मुद्दा

हिजाब को लेकर शुरू हुआ आंदोलन एक जगह से दूसरी जगह फ़ैल रहा है. मेन स्ट्रीम मीडिया और सोशल मीडिया दोनों जगह इस पर खूब चर्चा हो रही है. बड़ी-बड़ी बातें कही जा रही हैं और कई प्रकार के तर्क दिए जा रहे हैं. लेकिन यह सब बातें और तर्क लोगों को भ्रमित करने के लिए ही हैं. आंदोलन करने वाले और उनका समर्थन करने वाले बुद्धिजीवी या पत्रकार या नेता असली मुद्दे की ओर संकेत भी नहीं कर रहे.

असली मुद्दा क्या है? मेरी समझ में जो लोग यह आंदोलन कर रहे हैं और जो पत्रकार, नेता, बुद्धिजीवी इस आंदोलन के समर्थन में खड़े हो गए हैं उन सब का मानना है कि पवित्र कुरान और हदीस भारत के संविधान के ऊपर हैं. सीधे-सीधे कहा जाए तो उनकी मांग का अर्थ है कि संविधान और संविधान के अंतर्गत बनाए क़ानून और नियमों के अनुसार चलती संस्थाओं को अपने नियम-कानून बदलने होंगे अगर वह नियम-कानून, उनकी दृष्टि में, पवित्र कुरान और हदीस के विपरीत हैं.

ऐसी बात किसी भी हिजाब आंदोलन समर्थक ने स्पष्ट रूप से नहीं कही है और ऐसा उन लोगों ने सोच समझ कर किया है. यह लोग दिखलाना चाहते हैं कि वह सब संविधान का सम्मान करते हैं.

लेकिन जब यह लोग मांग करते हैं कि संस्थाओं को अपने नियम बदलने होंगे ताकि जो हिदायतें उन लोगों को पवित्र कुरान और हदीस से मिली हैं, उन हिदायतों का पालन वह उन संस्थाओं में रहते हुए भी कर पायें तो इसका तात्पर्य  यही है कि कानून और विभिन्न संस्थाओं के नियम दूसरे दर्जे पर आते हैं.

अगर ऐसा नहीं है तो जो नियम-कानून संवैधानिक हैं और जिन्हें किसी कोर्ट ने अभी तक असंवैधानिक घोषित नहीं किया है, उनका पालन करने में किसी को क्या कठिनाई हो सकती है?

आज नहीं तो कल इस मुद्दे को किसी न किसी प्रकार में सुलझा लिया जाएगा. लेकिन विचार करने की बात यह भी है कि हिजाब की हिदायत के अतिरिक्त क्या और भी हिदायतें हैं जो एक सच्चे मुसलमान के लिए धर्म-संकट खड़ा करती हैं?


Thursday 10 February 2022

 

सीएए पार्ट 2

सरकार ने एक कानून बनाया था जिस के अंतर्गत पाकिस्तान वगैरह से आये हिन्दुओं, सिखों  वगैरह को भारत की नागरिकता दी जा सकती है. यह वह लोग हैं जो अपने देशों में अल्प-संख्यक थे और जो धार्मिक उत्पीड़न के कारण उन देशों से भाग  कर भारत आये हैं. इस कानून को मुस्लिम विरोधी बता कर एक आंदोलन शुरू हुआ. इसके समर्थन में लेफ्ट लिबरल लोग और कई राजनीतिक पार्टियाँ खुल कर सामने आईं. किस प्रकार के नारे लगे और किस प्रकार लोगों को भड़काया गया वह सब ने देखा.

अब हिजाब को लेकर एक आंदोलन शुरू हो गया जो एक नगर से शुरू हो कर कई नगरों में फ़ैल रहा है. हिजाब पहनने की हिदायत नई नहीं है, पर अपनी मर्ज़ी से हिजाब पहनने का मुद्दा २०२२ में बना. ऐसे में परदे के पीछे छिपे लोगों की नियत पर संदेह होना अनिवार्य है.

क्या इस आंदोलन  को सीएए पार्ट 2 आंदोलन नहीं कहा जा सकता?

इस बार भी, जैसा पिछली बार हुआ था, लेफ्ट-लिबरल लोग और राजनेता और देश-विदेश के बुद्धिजीवी इस आंदोलन में कूद पड़ेंगे.

आज नहीं तो कल यह आंदोलन समाप्त हो जाएगा. पर क्या अब इस बात की पूरी संभावना नहीं है कि निकट भविष्य में सीएए पार्ट 3, फिर सीएए पार्ट 4 भी हो? ऐसे आंदोलन शुरू करने के लिए क्या मुद्दों की कोई कमी है इस देश में?