Friday, 27 April 2018


दुर्घटना बनाम नौटंकी
कुशीनगर में एक दुर्घटना में 13 बच्चे मारे गए. मुख्यमंत्री घटना स्थल पहुंचे. कुछ लोगों ने नारेबाज़ी की तो मुख्यमंत्री बोले कि नौटंकी बंद करो. स्वाभाविक है कि अब चर्चा का विषय दुर्घटना नहीं कुछ और ही है.
मेरा तो यह मानना है कि बच्चे किसी दुर्घटना में नहीं मारे गए, उनकी गैर-इरादतन हत्या हुई है.
दुर्घटना किसे कहना चाहिए? हम उसी घटना को दुर्घटना कह सकते हैं जिस घटना के लिए किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता, जो अप्रत्याशित होती है, अचानक घट जाती है, किसी को अनुमान भी नहीं होता कि ऐसा कुछ हो सकता है पर हो जाता है.
जब कोई सड़क पर 120 या 140 किलोमीटर की रफ़्तार से अपनी गाड़ी दौड़ाता है और दो-चार लोगों को कुचल डालता है तो यह घटना अप्रत्याशित नहीं है. जब कोई उलटी दिशा से अपना वाहन चलाता आता है या फिर ट्रैफिक लाइट की अवहेलना करता है या कानों में ईयर फोन लगाये संगीत सुनते या फोन पर किसी से बातें करते गाड़ी चलाता है तो ‘दुर्घटना’ अवश्यंभावी है. ऐसी ‘दुर्घटना’ अप्रत्याशित नहीं मानी जा सकती. इसलिए ऐसी घटना को ‘दुर्घटना’ कह देना हमारी पहली भूल है.
मेरा तो मानना है कि हमारी इसी सोच के कारण इतनी अधिक दुर्घटनाएं इस देश में घटती है. यह जान लेना आवश्यक है कि भारत में हर एक घंटे में कोई 17 लोग सड़क-दुर्घटनाओं में मारे जाते हैं.
एक भयानक सत्य से हम सब अपनी आँखें मूंदे बैठे हैं और जब तक हम इस सत्य को स्वीकारेंगे नहीं तब तक ऐसी दुखदाई ‘दुर्घटनाएं’ आये दिन घटती रहेंगी. वह भयानक सत्य यह है कि 70% से भी अधिक दुर्घटनाएं वाहन-चालकों की गलती के कारण घटती हैं. वर्ष 2015 के आंकड़ों के अनुसार लगभग 150000 लोग सड़क दुर्घटनाओं में मारे गए थे. इनमें से कोई 106000 लोग वाहन-चालकों की गलती के कारण मारे गए.
वह कौन लोग हैं जो इन मौतों के लिए ज़िम्मेवार है? क्या वह सब किसी और ग्रह पर रहते हैं? किसी और देश के निवासी हैं?
हम सब इसका उत्तर जानते और इसी कारण कभी भी ऐसा प्रश्न नहीं करते. इस प्रश्न का उत्तर हमें ही कटघरे में खड़ा कर देता है. सत्य यह है कि सड़क पर अपना वाहन चलाते समय न तो हम सावधानी बरतते हैं और न ही दूसरों की सुरक्षा का ध्यान रखते है. अकसर तो हम जानबूझ कर नियमों का उल्लघंन करते हैं. कोई आश्चर्य नहीं कि हर वर्ष हमारा ऐसा आचरण हज़ारों  लोगों की अकाल मृत्यु का कारण बनती है.
हमारे लिए सरल है समाज और व्यवस्था को गाली देना और धड़ल्ले से, बिना नियम-क़ानून की परवाह किये, अपने-अपने वाहन चलाना.
अंत में, एक रिपोर्ट के अनुसार 2015 में हर दिन 43 बच्चों की सड़क दुर्घटनाओं में मौत हुई थी. तब से स्तिथि सुधरी होगी ऐसा लगता नहीं. भविष्य में कोई सुधार होगा ऐसा प्रतीत नहीं होता. इस लिये “नौटंकी” पर चर्चा करना ही स्वाभाविक प्रतिक्रिया है.