लापरवाही
मुकंदी लाल उन गिने
चुने नागरिकों में से एक हैं जो देश के हर कानून का पूरा-पूरा पालन करते हैं, इस
लिए नहीं कि किसी क़ानून का उल्लंघन करने का उनका मन नहीं होता, मन तो उनका कई बार
किया है कि किसी ऊल-जलूल क़ानून का कम से कम एक बार तो उल्लंघन किया जाये, पर क़ानून
तोड़ने का साहस वो आज तक नहीं जुटा पाए. वह तो सुबह पाँच बजे भी लाल बत्ती पार करने
का साहस नहीं कर पाते, उस समय भी लाल बत्ती पर बाकायदा तब तक रुकते हैं जब तक की
वह हरी नहीं हो जाती, सड़क पर कोई ट्रैफिक हो या न हो इस बात से उन्हें कोई फर्क
नहीं पड़ता.
पर वही मुकंदी लाल
एक दिन क़ानून के शिकंजे में फंस गये.
हुआ यूँ कि अपने
छोटे बेटे के साथ अपने स्कूटर पर बैठ वह मार्किट तक गये. रास्ते में कई जगह कई
प्रकार के गड्डे थे. कई जगह बजरी बिखरी पड़ी थी. एक-आध जगह बड़े-बड़े पत्थर भी सड़क पर
पड़े थे. मुकन्दी लाल बड़े ध्यान से अपना स्कूटर चला रहे थे. गति तीस से भी कम थी.
रास्ता जाना पहचाना थे. गड्डे भी जाने-पहचाने थे, जगह-जगह बिखरी बजरी भी जानी पहचानी थी. हर बार बड़ी होशियारी के साथ इन
सब से बचते-बचाते हुए अपने स्कूटर पर वह घर से दफ्तर या मार्किट आया-जाया करते थे.
पर उस दिन थोड़ी चूक
हो गई. एक जगह उनका स्कूटर रास्ते में पड़ी बजरी पर आ चढ़ा. स्कूटर डोलने लगा. गति
बहुत कम थी पर फिर भी वह उसे संभाल न पाये. स्कूटर फिसल कर धरती पर लुढ़क गया.
बेटे को एक भी चोट न लगी पर मुकंदी लाल के पाँव की हड्डी टूट गई. जैसे-तैसे कर वह
घर पहुंचे. घर पहुँचते ही उन्हें चक्कर सा आया और अपने को संभाल न पाये. पत्नी ने
आग्रह किया कि तुरंत अस्पताल चल कर डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिये.
दोनों, अपने एक
पड़ोसी को साथ ले, अस्पताल पहुंचे. आपात कालीन सेवा का लाभ उठाया. मौके पर उपस्थित
डॉक्टर बोले कि हड्डी टूट गई लगती है, हड्डी वाले डॉक्टर को दिखाइये, तीनों वहां
से चल दिए हड्डी विभाग की ओर जो अस्पताल के दूसरे सिरे पर था. वह हड्डी वाले
डॉक्टर के पास पहुंचे ही थे कि दो पुलिस वालों ने उन्हें घेर लिया.
‘आपका एक्सिडेंट हुआ
है? स्कूटर कौन चला रहा था? किसने टक्कर मारी? आपने किसी को मारा? हुआ क्या था?
किस-किस को चोट लगी है?’ एक पुलिस वाले ने उन्हें देखते है कई सवाल दाग दिए.
मुकन्दी लाल ने धीरज
से हर सवाल का जवाब दिया और घटना की सारी जानकारी पूरे विस्तार से पुलिस को दी.
‘आप ठीक ही कह रहे
होंगे कि न आपने किसी को मारा और न ही किसी ने आपको मारा, पर फिर आप भी के खिलाफ
एक केस तो बनता ही है.’
‘कैसा केस?’
‘आप लापरवाही से
गाड़ी चलाते हैं.’
‘ऐसा नहीं है. मैं
तो बड़े ध्यान से गाड़ी चलाता हूँ, और आज भी न कोई दुर्घटना हुई है, न ही किसी को चोट
लगी है?’
‘क्यों? आप को चोट
नहीं लगी क्या? और बात इतनी सरल नहीं है, जो आदमी लापरवाही से सड़क पर गाड़ी चलाता
है वह किसी के लिए भी दुर्घटना का कारण बन सकता है. आप की लापरवाही के कारण किसी
की जान जा भी सकती है.’
‘.......’
मुकंदी लाल की बोलती
बंद हो गई.
‘इतना टाइम नहीं है
हमारे पास, रिपोर्ट लिखो और केस बनाओ,’ दूसरे पुलिस वाले ने पहले वाले से कहा, अब
तक वह चुपचाप सारी बात सुन रहा था.
मुकंदी लाल के खिलाफ
केस दर्ज कर पुलिस वाले उतनी ही मुस्तैदी से चल दिये जितनी मुस्तैदी से वह आये थे.
बेचारे मुकंदी लाल समझ ही न पाये कि उनका दोष क्या था.
(समाचार सुना कि
बंगलुरु में एक व्यक्ति के खिलाफ पुलिस न केस दर्ज किया है क्योंकि ‘उसकी लापरवाही
से’ सड़क दर्घटना में उसकी पत्नी की मृत्यु हो गई, जब की एक सड़क के बीच एक गड्डे
के कारण उसका बाइक गिर गया था. ऐसी ही एक घटना कई वर्ष पहले मेरे साथ हुई थी. मुझ
पर केस दर्ज तो न किया था. पर मुझ कहा गया था कि लापरवाही का केस दर्ज हो सकता है.
इससे प्रेरित हो कर यह व्यंग्य लिखा है)
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