मुफ्त,मुफ्त,मुफ्त......
अब दिल्ली में औरतें
मेट्रो और बसों में मुफ्त यात्रा कर पायेंगी.
कल टीवी में कुछ लोगों के उद्गार सुन समझ आया कि इस देश
में पढ़े-लिखे लोगों को भी सरलता से बहकाया
जा सकता है.
केजरीवाल जी स्वयं इनकम-टैक्स विभाग में काम कर चुके हैं
और भली-भांति जानते हैं कि सरकार अगर एक पैसा भी कहीं खर्च करती है तो अंततः वह
खर्च देश को लोगों को ही उठाना पड़ता है.
अब चूँकि मुफ्त यात्रा सच में मुफ्त नहीं होगी तो इस
व्यय का बोझ कौन उठाएगा? निश्चय ही केजरीवाल और उनके सहयोगी तो नहीं उठाएंगे. यह
बोझ देश की जनता को ही उठाना पडेगा. या तो टैक्स बढ़ाए जायेंगे या फिर कर्जा लिया
जायेगा. टैक्स हर व्यक्ति को देना पड़ेगा, उस गरीब को भी जो भीख मांग कर गुज़ारा
करता है. कर्जा आने वाली पीढ़ियाँ अदा करेंगी, निश्चय ही टैक्स भर कर.
यह बात तो सब राजनेता और टैक्स अधिकारी
जानते हैं कि धनी लोगों को टैक्स की मार
से कोई फर्क नहीं पड़ता. जितना टैक्स बढ़ता है उतना ही टैक्स चोरी करने में वह सब माहिर
हो जाते हैं.
अंततः बढ़े हुए टैक्स का बोझ तो मध्य वर्ग और गरीब लोगों
को ही झेलना पड़ता है. ऐसा अब भी होगा.
मुफ्त यात्रा का खर्च आम लोग ही उठाएंगे, वह लोग भी जो कभी मेट्रो में यात्रा नहीं
करेंगे. एक तरह से इस कानूनी प्रपंच द्वारा ग़रीबों का पैसा उनसे लेकर संपन्न वर्ग
को हस्तांतरित कर दिया जाता है.
जिस दिन हम लोग यह बात समझ जायेंगे, उस दिन राजनेता हमें
मुफ्त पानी, मुफ्त बिजली, मुफ्त मेट्रो यात्रा, मुफ्त, मुफ्त, मुफ्त............
का लालच देकर मूर्ख नहीं बना पायेंगे.
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