Tuesday, 22 March 2016

हमारे चरित्र की विशेषता
पिछले दिनों सुनी दो बातों ने मन को थोड़ा विचलित किया.
पहली बात थी संसद में दिया स्वास्थ्य मंत्री का बयान. मंत्री ने बताया की अड़सठ प्रतिशत दूध के नमूनों में विषैले पदार्थों की मिलावट पाई गई थी.
दूसरी बात थी एक राजनेता का कहना कि भगत सिंह अपने समय के कन्हैया कुमार थे. वैसे बयान सुन एक पल को समझ न आया कि वह किस को महिमा-मण्डित करने का प्रयास कर रहे थे, भगत सिंह को या कन्हैया को.
सरकारी आंकड़ों को लेकर एक बात समझ लेनी चाहिये कि वह सदा सही नहीं होते. विभिन्न सरकारी विभागों में लंबे समय तक काम करने के बाद मैं अपने अनुभव से कह सकता हूँ की सरकार में आंकड़ों का खेल चलता ही रहता है. फिर भी मान लिया जाये कि सिर्फ अड़सठ प्रतिशत दूध में ही मिलावट हो रही है तो भी स्थिति भयावह है क्योंकि अगर यह तथ्य सत्य है तो देश के लगभग नब्बे करोड़ लोग दूषित दूध का, किसी न किसी रूप में, सेवन कर रहे हैं. ऐसे दूध का सेवन कर लाखों लोगों को आज नहीं तो कल कोई न कोई रोग लगना ही है.
पर क्यों कुछ लोग देश के करोड़ों लोगों के जीवन के साथ ऐसा घिनौना खेल खेल रहे हैं?
बस धन का लोभ. अगर दस किलो दूध बेच कर कोई ढाई-तीन सौ कमा सकता है तो उसी दूध में सौ-पचास की मिलावट कर तीन-चार-पाँच  गुणा अधिक कमा सकता है तो फिर ऐसा करने में झिझक क्यों? सरकारी तंत्र में स्थापित लोगों के लिए भी आय का एक नया ज़रिया बन गया है.
लोभ ने लोगों को इतना ग्रसित कर लिया है कि उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि देश का बहुत बड़ा वर्ग रोगों से पीड़ित हो सकता है और सबसे अधिक हानि पहुँच सकती है नन्हें बच्चों को जो सिर्फ दूध पर निर्भर होते हैं. आश्चर्य की बात तो यह है कि जो व्यक्ति प्रदूषित दूध पिला रहा है वह स्वयं भी कभी न कभी नकली दवाइयों का या मिलावटी दालों का या केमिकल से रंगीं सब्जियों का उपयोग करता है.
अब दूसरी बात पर आते हैं. अचानक कई राजनेताओं को कन्हैया जैसे लोगों में क्रांतिकारी दिखाई देने लगे हैं. पर कन्हैया जैसे लोग शायद नहीं जानते कि इन्ही नेताओं ने उन जैसे क्रांतिकारियों के साथ साठ और सत्तर के दशक में कैसा व्यवहार किया था. उस समय उन्हें वह युवक भगत सिंह जैसे न लगे थे. आज सत्ता के लोभ ने उनका पूरा दृष्टिकोण ही बदल दिया है. पर उन एक राजनेता का ही क्या दोष, पंजाब में चुनाव सामने हैं तो बादल सरकार को पानी की समस्या याद आई. केजरीवाल को लगता है कि पंजाब में ‘आप’ की सरकार बन सकती है तो वह भी आग में घी डाल आये हैं. यू पी का चुनाव आ रहा है तो बी जे पी के कुछ नेता ध्रुवीकरण में जुट गये हैं. वैसी ही स्थिति असम और बंगाल की है.
‘भारत एक खोज’ में सम्राट अशोक पर जो एपिसोड था उस में राधागुप्त  राजकुमार तिस्सा से कहता है, ‘लोग तो एक दिन का सम्राट बनने के लिए हँसते-हंसते अपनी जान दे देते हैं.........’ सत्ता को लोभ अगर किसी व्यक्ति को इस हद तक ले जा सकता है तो जो कुछ आज हम देख रहे हैं उसे देख कर  आश्चर्यचकित होना गलत ही होगा.
पर जो बात उद्धेलित कर रही वह है हमारे समाज में लोभ की पराकाष्ठा, लोभ धन का, सत्ता का, सुर्ख़ियों में रहने का.

लगता है कि अब लोभ ही हमारे चरित्र की सबसे बड़ी विशेषता है. 

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