झंडा ऊँचा रहे हमारा
आज लगभग हर कोई अपने
को एक महान देशभक्त प्रमाणित करने पर तुला है. कुछ विरले लोग अपने को देशद्रोही
कहलवा कर गौरवान्वित हो रहे हैं. ऐसे भी अभिमानी लोग हैं जो अपने को कट्टर
‘देशद्रोही देशभक्त’ समझते हैं और अपने को ‘देशद्रोही देशभक्त’ सिद्ध करने के लिए
विभिन्न तर्क दे रहे है..
मीडिया वालों कि तो
जैसे लाटरी लग गई है. हर समाचारपत्र और हर
चैनल पर यही चर्चा हो रही कि कौन देशभक्त है और कौन नहीं. इस बात पर भी गहन चिंतन
हो रहा कि जो लोग देश के टुकड़े कर देने के सपने देख रहे हैं उन्हें देशभक्त माना
जाये यह नहीं. स्वतंत्रता के सत्तर वर्षों बाद कुछ लोगों को लगने लगा है कि देश का
कानून ही गलत है, देशद्रोह की परिभाषा ही बदलनी होगी.
हम भी इस चर्चा से
प्रेरित हुए और हमने सोचा कि क्यों न जनता से सीधे बात की जाये और उनसे जाना जाये
कि आखिर वह अपने को कहाँ खड़ा पाते हैं.
एक ट्रैफिक
कांस्टेबल दिखा. हमने पूछा, ‘आप अपने को देशभक्त मानते हैं?’
‘मानते हैं का क्या
मतलब? मुझसे बड़ा देशभक्त कौन है? जितनी सेवा मैं देश के लोगों की करता हूँ उतनी
सेवा कौन कर सकता है.’
‘ज़रा विस्तार से
बताइये.’
‘अभी-अभी एक लड़के को
पकड़ा था, कार चलाते-चलाते
फोन पर बात कर रहा था. सारे कागजों की जांच की. उसके पास पी यू सी भी न था. ड्राइविंग
लाइसेंस पर पुराना पता था. पूरे तीन हज़ार का चालान बनता था. मुझे लगा, बेचारा नौकरी
पेशे वाला लड़का है, कहाँ से इतना भरेगा. पाँच सौ लिए और उसे जाने दिया. ऐसा काम तो
देश और देशवासियों से प्यार करने वाला ही कर सकता है.’
एक दूध वाले से बात
की. वह बोला, ‘दस लिटर दूध में यूरिया वगेरह मिला कर तीस लिटर बना देता हूँ. इस
तरह दस की जगह पचीस-तीस घरों को दूध सप्लाई कर पाता हूँ. कोई देशभक्त ही इतना
जोखिम उठा कर ऐसा काम कर सकता है. हमने तो सोच रखा चाहे जेल जाना पड़े पर हम अपने
देशवासियों की दूध की डिमांड को हर सूरत में पूरा करेंगे. जवाहरलाल नेहरु भी तो
जेल गये थे देश के लिए, हम भी चले जायेंगे.’
हम आगे चले. कुछ
वकील दिखे. हमारा प्रश्न सुन, सब एक साथ बोले, ‘हम सब कट्टर देशभक्त है. देश के
लिए कुछ भी कर सकते हैं. आज सुबह ही इस अदालत के बाहर एक बलात्कारी के हाथ पाँव
तोड़े थे हम सब ने. पुलिस तो इतनी निकम्मी है कि कभी किसी को अपराधी साबित नहीं कर
पाती. अब ऐसे अपराधियों को समाज में खुले घूमने तो नहीं दिया जा सकता. उन्हें सज़ा
तो मिलनी चाहिये.’
जेल से बेल पर आते
एक राजनेता मिले, जबरन वसूली के अपराध में जेल गये थे. उनका सम्मान करने के लिए
लोगों की भीड़ इकट्ठी हो रखी थी. वह बोले, ‘देश भक्ति तो हमारे खून में है.’
‘यह केस..........’
‘षड्यंत्र है.’
हम बस इतने ही लोगों
की राय जान पाये. हमें पता न था कि नगर की परेड ग्राउंड में एक बड़ी सभा आयोजित हो
रखी थी. सभा में भाग लेने के लिए दूर-दूर से हज़ारों लोग आये हुए थे. कई लोग सभा
छोड़ कर बाजारों में यहाँ-वहां फ़ैल रहे थे. किसी के हाथ में तिरंगा था तो किसी के
हाथ में अपने दल का झंडा.
सब लोग मस्त हाथियों
सामान घूम रहे थे. कहीं किसी ढेले वाले को लूट रहे थे तो कहीं किसी शोरूम में घुस
कर उत्पात मचा रहे थे. कहीं किसी महिला के साथ बदसलूकी की थी तो कहीं स्कूल के
लड़कों को पीट डाला था. लौटते समय रेलवे स्टेशन और बस-अड्डे में भी तोड़-फोड़ की उन
लोगों ने.
पर इतना उत्पात
मचाते हुए भी उन्होंने तिरंगे का अपमान न होने दिया था, पूरे सम्मान के साथ हर समय
तिरंगा फहराते रहे थे.
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