Thursday, 28 July 2016

विरासत
बनवारी लाल जी बहुत परेशान हैं.
कड़े संघर्ष के उपरान्त वह वहां पहुंचे हैं जहां देश के इक्का-दुक्का लोग ही अपने बल-बूते पर पहुँच पाते हैं. उन्होंने कितने कष्ट उठाये, कितना बलिदान दिया इसका अनुमान हर कोई नहीं लगा सकता; पर अंततः वह प्रदेश के मुख्यमंत्री बन ही गए थे. लेकिन आज नई समस्या खड़ी हो गयी है.
आप गलत सोच रहे हैं, प्रधान मंत्री ने उनके और उनके विश्वस्त लोगों को मरवाने की कोई साजिश अभी तक नहीं रची है. न ही उनकी पार्टी के किसी सदस्य को जेल भेजा गया है. वैसे बनवारी लाल जी ने मन ही मन कई बार ईश्वर से प्रार्थना की है कि किसी तरह उनका नाम भी प्रधान मंत्री के नाम के साथ जुड़ जाये और टीवी और समाचार पत्रों में उनकी भी उतनी ही चर्चा हो जितनी दिल्ली के मुख्यमंत्री की होती है. पर ऐसा सौभाग्य उन्हें अभी प्राप्त नहीं हुआ.
बनवारी लाल अपने इकलौते बेटे के कारण परेशान हैं. उसने कहा है कि वह राजनीति से दूर रहेगा.
उसकी बात सुन बनवारी लाल जोर से हंस पड़े थे. उन्हें लग रहा था कि बेटा मज़ाक कर रहा था. अगले ही पल उन्हें अहसास हुआ की वह गम्भीर था.
‘तुम जानते भी हो कि क्लर्क बनने के लिए भी व्यक्ति में कुछ योग्यता होनी चाहिये. पाँच रिक्तियां होती हैं और पचास हज़ार उम्मीदवार आ जाते है. परीक्षा, इंटरव्यू, मेडिकल टेस्ट और पता नहीं क्या-क्या. और सबसे महत्वपूर्ण बात, पुलिस में रिकॉर्ड साफ़ होना चाहिए. तब जाकर आदमी एक अदना सा क्लर्क बनता है. यहाँ तुम बैठे-बिठाये मुख्यमंत्री बन सकते हो’.
‘बन सकता हूँ, पर मुझे यह सब मंज़ूर नहीं.’
‘अरे ना-समझ, देखो अपने आसपास, ऐसे-ऐसे लोग मंत्री, मुख्यमंत्री बन गए हैं जो ढंग से दो लफ्ज़ भी नहीं बोले पाते. तुम तो इतने पढ़े-लिखे, सुलझे विचारों वाले लड़के हो. तुम जैसे लोगों की ही देश को आवश्यकता है.’
‘मैं प्रशासनिक सेवा में जाउंगा.’
‘सपने देखना अच्छा होता है, पर यथार्थ को समझना आवश्यक होता है.’
‘मैं प्रयास तो कर सकता हूँ.’
‘अरे, तुम मेरी समस्या नहीं समझ रहे, अगर तुम पीछे हट गए तो मुझे विवश हो कर इतवारी के बेटे को अपना उत्तराधिकारी बनाना पड़ेगा. आठवीं फेल है. पचासों ममाले दर्ज हैं.’ इतवारी उनकी पत्नी का लाड़ला भाई है. उनके हर विरोधी का उचित समाधान उसने ही किया था.
‘यह निर्णय तो लोग करेंगे.’
‘लोग ही तो चाहते हैं की मेरे परिश्रम का फल मेरा परिवार भोगे. सब कह रहे हैं कि अगले चुनाव से पहले तुम्हें पार्टी का अध्यक्ष बना दिया जाये. फिर चुनाव के बाद तुम मुख्यमंत्री का पद भी सम्भाल लो.’

‘आप किसी और को चुन लें'. इतना कह बेटा चल दिया था. अब बनवारी लाल परेशान हैं कि अपनी विरासत किसे सौंपे.

Monday, 25 July 2016

आनंद मंत्रालय
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री की पहल से प्रेरित हो कर एक अन्य राज्य के मुख्यमंत्री ने भी अपनी सरकार में ‘आनंद मंत्रालय’ बनाने का विचार किया.
वह झटपट अपने बड़े भाई के पास दौड़े. बड़े भाई जेल में बंद होते हुए भी पार्टी के अध्यक्ष थे, उन्हीं के आदेश पर मुख्यमंत्री सब निर्णय लेते थे. बड़े भाई ने सोच-विचार कहा की पत्नी (अर्थात बड़े भाई की पत्नी) से बात करो. पत्नी भारत सरकार में एक मंत्री के पद पर भी थीं.  लेकिन हर निर्णय वह अपने मामा की सलाह पर लेती थीं.
मामा बोले, अच्छा विचार है. बनवारी लाल बहुत परेशान रहते हैं, उन्हें मंत्री जो न बनाया था. यह मंत्रालय उन्हें सौंप दो.
बनवारी लाल जी मामा के चहेते थे पर बड़े भाई को फूटी आँख न सुहाते थे. मामा राजनीति के पुराने खिलाड़ी थे, जानते थे कि कम से कम बीस चुनाव क्षेत्रों में बनवारी लाल की पकड़ थी. साल भर में चुनाव होने वाले थे. कई पार्टियाँ बनवारी लाल को अपनी ओर खींच रहीं थीं. मुख्यमंत्री को बात जंच गयी. बनवारी लाल जी ‘आनंद मंत्री’ बन गए.
बड़े भइया ने सुना तो आग-बबुला हो गए. उधर बनवारी लाल भी अप्रसन्न थे. चुनाव सिर पर थे, साल भर ही मंत्री रह सकते थे. उन्हें पी डब्लू डी जैसा विभाग चाहिए था.  ‘आनंद मंत्री’ बन कर वह ‘कुछ’ न कर पायेंगे, इस बात का उन्हें अहसास था.
शाम कुमार को ‘आनंद मंत्रालय’ का सचिव नियुक्त किया गया. वह तीन वर्षों से बिना किसी कार्यभार के अपना समय काट रहे थे. न्यायलय ने आदेश दे रखा था कि उन्हें तुरंत किसी पद पर नियुक्त किया जाए. उनके बारे में प्रसिद्ध था कि कानून की हर किताब उन्होंने रट रखी थी. जिस भी मंत्री के पास उन्हें भेजा जाता था वह मंत्री चार दिनों में ही उनसे छुटकारा पाने को आतुर हो जाता था.
मंत्री जी के हर प्रस्ताव पर शाम कुमार मंत्री जी को बीसियों कायदे-कानून समझा देते थे. शांत चित भाव से वही करते थे जो उन्हें न्याय-संगत, तर्क-संगत, विधि-संगत, नियम-संगत और लोकोपकारी लगता था. मंत्री अपने बाल नोच लेते थे पर  शाम कुमार बड़े शांत स्वभाव से अपने काम में जुटे रहते थे. कोई भी मंत्री उन्हें उत्तेजित या क्षुब्द न कर पाया था.
शाम कुमार को अपने समक्ष पा कर बनवारी लाल के हाथ अपने सिर की ओर उठे. बहुत प्रयास के बाद ही वह अपने को अपने बाल नोचने से रोक पाए.
‘नया विभाग है, तुरंत नये कायदे-कानून बनाने होंगे, तभी तो हम राज्य के इन पीड़ित लोगों को आनंदित कर पायेंगे,’ शाम कुमार ने शांत लहजे में कहा.
‘कायदे-कानूनों की क्या कोई कमी हैं इस देश में जो आप को नए कानून बनाने की सूझ रही है? अगर लोगों के कष्टों को दूर करना है तो कुछ कायदे-कानून हटाने की सोचें. मिनिमम गवर्नेंस की बात करें,’ मंत्री ने थोड़ा खीज कर कहा.
‘कानून तो दूसरे विभागों के हटेंगे, हमारे विभाग के कानून तो बनाने होंगे. पहली बार यह विभाग बना है, कानून तो बनाने ही होंगे.............’
‘क्यों न हम अलग-अलग देश जाकर पता लगाएं कि वहां उन देशों में ऐसे मंत्रालय किस भांति चलते हैं, किस तरह वहां की सरकारें लोगों को आनन्द पहुंचातीं हैं?’ बनवारी लाल ने टोक कर कहा. वह दो बार मंत्री रह चुके थे लेकिन एक बार भी वह किसी विदेशी दौरे पर न जा पाए थे. कई नये-नये मंत्री तो दस-बीस देश घूम आये थे, परिवारों सहित. यह बात उन्हें बहुत खलती थी.
‘कुछ नये लोगों की भर्ती भी करनी होगी विभाग में,’ शाम कुमार अपनी धुन में बोले.
भर्ती की बात सुनते ही मंत्री के कान खड़े हो गये. बोले, ‘मेरी अनुमति के बिना एक भी आदमी भर्ती न हो.’
‘आप निश्चिंत रहें, इस विभाग में हर काम पूरी तरह नियमों के अनुसार ही होगा. भर्ती नियमों के अनुसार...............’ शाम कुमार भर्ती नियमों की एक लम्बी व्याख्या करने लगे. अब बनवारी लाल अपने को रोक न पाये और अपने बाल नोचने लगे. मन ही मन वह मुख्यमंत्री को कोस रहे थे.

बनवारी लाल और शाम कुमार को देख कर तो नहीं लगता कि यह मंत्रालय लोगों को कभी को भी आनंदित कर पायेगा. फिर भी मुख्यमंत्री और उनके बड़े भाई की पत्नी के मामा आनंदित हैं, शायद आने वाले तूफ़ान का उन्हें अभी आभास नहीं.

Friday, 22 July 2016

ऊना चलो
नगर निगम के तीन चुनाव जीते पर पिछला चुनाव हारे इतवारी लाल बहुत परेशान हैं.
उनकी पत्नी ने ऊना जाने की रट लगा रखी है, ‘किसी हिल-स्टेशन जाने के लिए नहीं कह रही. देश की सेवा करने के लिए कह रही हूँ. देश सेवा से तो तुम इतना कतराते हो. इसी लिये चुनाव नहीं जीत पाये. राहुल गांधी और केजरीवाल ऊना गए कि नहीं गए? अभी देखना बीसियों और नेता भी जा पहुंचेंगे वहां. सब का नाम होगा, टीवी में चर्चा होगी, समाचार पत्रों में उन सब के फोटो छपेंगे. अत्याचार से पीड़ित लोग भी समझेंगे कि कोई है जो उनकी परवाह करता है. यही अवसर होता है जब आप लोगों को दिखा सकते हो कि आप को उनकी कितनी फ़िक्र है, आप उनको लेकर कितने चिंतित हो; और तुम हो कि बस यहीं टिके हो.’
इसके पहले कि इतवारी लाल कुछ कहते उनके बड़े बेटे ने कहा, ‘आप अगर गए तो हम भी साथ जायेंगे. इतने दिनों से हमें कहीं घुमाने नहीं ले गए. बनवारी लाल जी तो अपने बेटों को स्विट्ज़रलैंड भी घुमा लाये हैं.’
‘अरे मैं चुनाव जीता था क्योंकि मैंने लोगों के लिए कुछ कर के दिखाया था,’
‘तो पिछला चुनाव हारे क्यों? रामकली को उसके शराबी पति ने कितना मारा था, चुनाव के बीस दिन पहले की बात थी. मैंने तब भी तुम से कहा था कि ज़रा दस-बीस लोगों को लेकर उसके घर जाओ. थोड़ा हंगामा करो. सुनहरा अवसर था........’
‘कौन रामकली?’
‘हमारी बाई. अब तुम्हे इतना भी पता नहीं तो ....’
‘यह तुम क्या बोलती रहती हो, राजनीति में ......’
‘राजनीति तुम्हें आती होती तो यह हालत न होती तुम्हारी. ढाई कमरे के फ्लैट में कितने राजनेता रहते हैं? तुम तो तीन बार नगर निगम के सदस्य रह चुके हो. बनवारी लाल अभी पहली बार चुनाव जीता है, मॉडल टाउन में हजार गज़ का तीन मंज़िल्ला मकान बना लिया है. चार कारें हैं, हर एक के लिए अलग. पत्नी को अभी से राजनीति में जोड़ लिया है.’
तभी बेटे ने चिल्ला कर कहा, ‘पापा, आप सोचते रहिये, कुछ करिये मत. यहाँ टीवी पर देखें, बनवारी लाल ऊना पहुँच भी गये, उनकी पत्नी और दोनों बेटे भी साथ में हैं, हर चैनल पर उनकी ही चर्चा हो रही है. नगरनिगम का अगला चुनाव भी हाथ से गया लगता है. अब ऐसी घटना दुबारा कब हो, पता भी नहीं. आप तो शायद तब भी न जाएँ.’
इतवारी लाल जी असमंजस में हैं. पत्नी और बेटे ने ‘ऊना चलो’ को ऐसा राग छेड़ा था कि वह कुछ समझ ही न पा रहे हैं कि क्या करें.  


Monday, 4 July 2016

रेवत 
भगवान् बुद्ध के एक शिष्य के सम्बंध में एक सुंदर गाथा है.
बुद्ध के शिष्य थे महाकश्यप. महाकश्यप का छोटा भाई था रेवत. रेवत के माता-पिता ने उसका विवाह निश्चित किया. विवाह के कुछ दिन पहले रेवत के मन में आया कि उसके भाई ने बुद्ध की शरण में जाकर अपना जीवन सार्थक कर लिया, उन्हें बोद्ध प्राप्त हुआ. पर वह स्वयं तो विवाह के बंधन में बंध कर अपना जीवन व्यर्थ गंवाने जा रहा था.
रेवत विवाह से पहले ही घर छोड़ कर चला गया. घर छोड़ते समय मन में आया कि बुद्ध के दर्शन करूं. फिर सोचा कि पहले अपने आप को योग्य बना लूँ, बुद्ध के दर्शन करने की पात्रता प्राप्त कर लूँ. तभी उनके दर्शन करूं.
वह एक वन में चला गया. वन में उसे बुद्ध के कुछ भिक्षु मिले. उन्हीं से उसने दीक्षा ली और भिक्षु बन गया. सात वर्षों तक रेवत ने उस वन में तपस्या की. उसे परम ज्ञान प्राप्त हुआ. अब सब इच्छाएँ मिट गयीं, बुद्ध के दर्शन करने की इच्छा भी मन में न रही.
उधर बुद्ध ने जाना कि उनके एक शिष्य को बोद्ध प्राप्त हुआ था. वह स्वयं ही रेवत से मिलने आये. उनके साथ उनके कई शिष्य भी थे. रेवत ने भी जान लिया कि भगवान् बुद्ध स्वयं आ रहे थे. उनका सम्मान  करने के लिए उसने एक आसन बना कर तैयार कर लिया.
बुद्ध के भिक्षुओं ने देखा कि जिस वन में रेवत रहता था वह वन बहुत ही सुंदर था, ऐसा सुंदर वन उन्होंने आजतक न देखा था. रेवत कि कुटिया भी बहुत सुंदर थी, स्वर्ग लोक की किसी कुटिया समान लग रही थी. जिस आसन पर बुद्ध विराजमान हुए थे वह आसन भी भव्य था और इन्द्रदेव के आसन जैसा लग रहा था.
बुद्ध अपने शिष्यों के साथ कुछ दिन रेवत की कुटिया में रुके. फिर रेवत को साथ ले, वह वापस चल दिए. जैसे ही सब वन से बाहर आये तो दो भिक्षुओं को ध्यान आया कि उनका कुछ सामान रेवत की कुटिया में ही छुट गया था. वह दोनों अपना सामान लेने कुटिया की ओर चल दिए. अन्य सब बुद्ध के साथ आगे चले गए.
वन के भीतर आकर दोनों भिक्षुओं आश्चर्यचकित हो गये. उन्होंने  देखा कि जिस वन में रेवत रहता था वह वन तो बहुत भयानक जंगल था. रेवत कि कुटिया बहुत ही जीर्ण-शीर्ण अवस्था में थी.  जिस आसन पर बुद्ध विराजे थे वह तो काँटों से बना था.
उत्सुक लोगों ने बुदध के भिक्षुओं से पूछा कि रेवत का आश्रम कैसा था. कुछ भिक्षुओं ने कहा कि रेवत का आश्रम तो स्वर्ग लोक के समान सुंदर था. जिस वन में रेवत रहते थे वह वन संसार का सबसे सुंदर वन था.
पर दो भिक्षुओं ने कहा कि वह वन तो बहुत ही डरावना वन था और जिस कुटिया में रेवत रहते थे वह बिलकुल टूटी-फूटी, खंडहर समान थी. जिस आसन पर बुद्ध को बिठलाया था वह काँटों का बना हुआ था.
ऐसी बातें सुन लोग असमंजस में पड़ गए. एक ही स्थान को कुछ भिक्षुओं ने स्वर्ग समान बताया था और कुछ ने नर्क समान. लोगों ने भगवान् से जानना चाहा कि सत्य क्या था.

बुद्ध ने कहा कि जिस जगह रेवत जैसे लोग रहते हैं वह जगह स्वर्ग समान होती है. अर्थात जहां भी ज्ञानी लोग विराजते हैं वहीं स्वर्ग होता है.