रेवत
भगवान् बुद्ध के एक
शिष्य के सम्बंध में एक सुंदर गाथा है.
बुद्ध के शिष्य थे
महाकश्यप. महाकश्यप का छोटा भाई था रेवत. रेवत के माता-पिता ने उसका विवाह निश्चित
किया. विवाह के कुछ दिन पहले रेवत के मन में आया कि उसके भाई ने बुद्ध की शरण में
जाकर अपना जीवन सार्थक कर लिया, उन्हें बोद्ध प्राप्त हुआ. पर वह स्वयं तो विवाह
के बंधन में बंध कर अपना जीवन व्यर्थ गंवाने जा रहा था.
रेवत विवाह से पहले ही घर छोड़ कर चला गया. घर छोड़ते समय मन में आया कि
बुद्ध के दर्शन करूं. फिर सोचा कि पहले अपने आप को योग्य बना लूँ, बुद्ध के दर्शन
करने की पात्रता प्राप्त कर लूँ. तभी उनके दर्शन करूं.
वह एक वन में चला गया. वन में उसे बुद्ध के कुछ भिक्षु मिले. उन्हीं से
उसने दीक्षा ली और भिक्षु बन गया. सात वर्षों तक रेवत ने उस वन में तपस्या की. उसे
परम ज्ञान प्राप्त हुआ. अब सब इच्छाएँ मिट गयीं, बुद्ध के दर्शन करने की इच्छा भी
मन में न रही.
उधर बुद्ध ने जाना कि उनके एक शिष्य को बोद्ध प्राप्त हुआ था. वह स्वयं ही रेवत
से मिलने आये. उनके साथ उनके कई शिष्य भी थे. रेवत ने भी जान लिया कि भगवान् बुद्ध
स्वयं आ रहे थे. उनका सम्मान करने के लिए
उसने एक आसन बना कर तैयार कर लिया.
बुद्ध के भिक्षुओं ने देखा कि जिस वन में रेवत रहता था वह वन बहुत ही सुंदर
था, ऐसा सुंदर वन उन्होंने आजतक न देखा था. रेवत कि कुटिया भी बहुत सुंदर थी,
स्वर्ग लोक की किसी कुटिया समान लग रही थी. जिस आसन पर बुद्ध विराजमान हुए थे वह
आसन भी भव्य था और इन्द्रदेव के आसन जैसा लग रहा था.
बुद्ध अपने शिष्यों के साथ कुछ दिन रेवत की कुटिया में रुके. फिर रेवत को
साथ ले, वह वापस चल दिए. जैसे ही सब वन से बाहर आये तो दो भिक्षुओं को ध्यान आया
कि उनका कुछ सामान रेवत की कुटिया में ही छुट गया था. वह दोनों अपना सामान लेने
कुटिया की ओर चल दिए. अन्य सब बुद्ध के साथ आगे चले गए.
वन के भीतर आकर दोनों भिक्षुओं आश्चर्यचकित हो गये. उन्होंने देखा कि जिस वन में रेवत रहता था वह वन तो बहुत भयानक
जंगल था. रेवत कि कुटिया बहुत ही जीर्ण-शीर्ण अवस्था में थी. जिस आसन पर बुद्ध विराजे थे वह तो काँटों से बना
था.
उत्सुक लोगों ने बुदध के भिक्षुओं से पूछा कि रेवत का आश्रम कैसा था. कुछ
भिक्षुओं ने कहा कि रेवत का आश्रम तो स्वर्ग लोक के समान सुंदर था. जिस वन में
रेवत रहते थे वह वन संसार का सबसे सुंदर वन था.
पर दो भिक्षुओं ने कहा कि वह वन तो बहुत ही डरावना वन था और जिस कुटिया में
रेवत रहते थे वह बिलकुल टूटी-फूटी, खंडहर समान थी. जिस आसन पर बुद्ध को बिठलाया था
वह काँटों का बना हुआ था.
ऐसी बातें सुन लोग असमंजस में पड़ गए. एक ही स्थान को कुछ भिक्षुओं ने स्वर्ग
समान बताया था और कुछ ने नर्क समान. लोगों ने भगवान् से जानना चाहा कि सत्य क्या
था.
बुद्ध ने कहा कि जिस जगह रेवत जैसे लोग रहते हैं वह जगह स्वर्ग समान होती है.
अर्थात जहां भी ज्ञानी लोग विराजते हैं वहीं स्वर्ग होता है.
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