Thursday, 4 August 2016

आज़म खान की आलोचना क्यों?
आश्चर्य है कि जब एक राजनेता सत्य बोलता है तो अन्य राजनेता उसकी आलोचना करना शुरू कर देते हैं. क्या उन्हें यह भय लगता है कि जनता उन सब का असली चेहरा पहचान जायेगी?
बुलंदशहर में घटी दुखद घटना के सन्दर्भ में आज़म खान ने  कहा कि इस देश में सत्ता पाने के लिए राजनेता किसी भी स्तर तक जा सकते हैं, वह हत्याएं करवा सकते हैं, दंगे करवा सकते हैं, निर्दोष लोगों को मरवा सकते हैं. इस कारण आज़म खान को लगता है कि बुलन्दशहर की घटना साज़िश हो सकती है.
बुलन्दशहर में जो घटा उस पर कोई टिप्पणी करना असभ्य और अनुचित होगा. लेकिन जो कुछ आज़म खान ने  कहा उसे पूरी तरह नकार देना गलत होगा. आज़म खान एक अनुभवी नेता हैं, राजनीति और राजनेताओं को अवश्य ही करीब से देखा है. उनके अपने व्यक्तिगत अनुभव भी रहे होंगे जो वह ऐसी बात कह रहे हैं. हालांकि अपने को  और सपा को वह साफ़ पाक ही मानते हैं और उनका इशारा विरोधियों की ओर है. ऐसी बात कह कर अपनी सरकार की खामियों से भी लोगों का ध्यान भटकाना चाहते हैं और कुछ हद तक सफल भी  हो गए हैं. पर उनकी बात काल्पनिक नहीं है.
A D R की रिपोर्ट के अनुसार २०१६ चुनावों के बाद केरल, पुदुचेर्री, पश्चिम बंगाल, तमिल नाडू और असम में जो विधायक चुने गए हैं उन में से ३६% ऐसे हैं जिनके विरुद्ध किसी न किसी तरह के अपराधिक मामले हैं. यह संख्या चौकाने वाली न लगती हो क्यों कि इससे पहले भी ऐसे लोग विधान सभाओं में आते रहे हैं. उत्तर प्रदेश में ही शायद यह संख्या ४६% थी, ऐसा कहीं पढ़ा था. कई वर्ष पूर्व एक समाचार पत्र की रिपोर्ट में लिखा था की आंध्र प्रदेश के एक मुख्य मंत्री लाशों का ढेर पार कर के मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे थे.

चीन और भारत की प्रगति के सम्बन्ध में लिखे अपने एक लेख में गुरुचरण दास ने कहा था की जहां एक ओर चीन की पार्लियामेंट में ४०% सदस्य technocrats वहां भारत की संसद में लगभग ४०% सदस्य ऐसे हैं जिनके खिलाफ किसी न किसी न किसी प्रकार के अपराधिक मामले हैं. अगर चीन भारत से आगे निकल गया है तो आश्चर्य क्यों.
ऐसे लोगों को राजनीतिक पार्टियां चुनाव क्यों खड़ा करती हैं? हो सकता कुछ ऐसे गिने-चुने लोग हों जिनके विरुद्ध दर्ज किये मामले झूठे हों, पर सभी के सभी लोग पाक-साफ़ होंगे ऐसा नहीं है. ऐसे अपराधियों को विधान सभा या संसद में चुनाव में खड़ा करने का कोई तो कारण होगा. मेरी समझ में तो इसका दो ही कारण हो सकते हैं. एक, ऐसे लोग पैसे के बल चुनाव में खड़े होते हैं, पैसे के बल पर पार्टियों से टिकट खरीदते हैं. दूसरा, यह लोग किसी न किसी रूप में पार्टियों को उपयोगी लगते हैं. शायद यह लोग वही काम करते हैं जिस की ओर आज़म खान ने इशारा किया है.
आज तक किसी भी सरकार ने राजनीति से अपराधियों को दूर करने का कोई प्रयास नहीं किया और न ही कोई कानून बनाया. अभी तक एक भी पार्टी ने स्वेच्छा से यह निर्णय नहीं लिया कि सिर्फ साफ़ छवि के व्यक्तियों को चुनाव में टिकट दिया जाएगा.
अब कोई सुधार आएगा तो उसके लिए आम आदमी (आप नहीं) को ही कोई पहल करनी होगी. ऐसे लोगों का बहिष्कार करना होगा जो अपराधिक प्रष्ठभूमि से हैं और उन लोगों को चुन कर विधान सभाओं और संसद में भेजना होगा जिनके विरुद्ध अपराधिक मामले न हों. अगर सभी उम्मीदवारों के विरुद्ध मामले हों तो ऐसे चुनाव का बहिष्कार करना ही उचित होगा.

आप के लिए यह जानना अनिवार्य है कि जिस व्यक्ति का पुलिस में कोई भी अपराधिक रिकॉर्ड होता है वह सरकारी चपरासी भी नहीं बन सकता. ऐसा व्यक्ति संसद या विधान सभा या पंचायत के लिए कैसे योग्य हो सकता है?

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