फिर हुई एक और दुर्घटना
कुछ दिन पहले की घटना है. हैदराबाद में एक बच्ची स्कूल बस से नीचे सड़क पर आ
गिरी और बस के टायरों के नीचे आ कुचली गयी.
इस दुखद घटना पर अलग-अलग टीवी चैनलों पर गरमागरम बहस होना स्वाभाविक ही था.
टीवी चर्चाएँ देखने से मैं बचने का पूरा प्रयास करता हूँ. मुझे आज तक यह बात समझ
नहीं आई है कि टीवी चर्चाओं में जो लोग भाग लेते हैं वह अपने स्वभाव व संस्कारों
के कारण चर्चाओं के दौरान असभ्य व्यवहार करते हैं या फिर यह टीवी कैमरे का जादू है
जो शालीनता की सारी सीमायें लांगने पर उन्हें बाध्य करता है.
अपने प्रयास के बावजूद मैंने एक चर्चा कुछ समय तक देखी. चर्चा में भाग लेने
वाले सभी लोग इस दुर्घटना के लिए व्यवस्था को दोष दे रहे थे, स्कूल प्रबंधन को
दोषी मान रहे थे.
देश की व्यवस्था की जो स्थिती है हम सब भलीभांति जानते ही हैं. बच्चों को
स्कूल पहुंचाने या स्कूल से घर लाने वाली बसें वगेरह कैसे चलती हैं वह भी हम जानते
हैं. पर यह समस्या वहीं तक सीमित नहीं है.
मुझे लगता है की सड़क दुर्घटनाओं को लेकर हम सब जितने बेफिक्र हैं वह अपनेआप
में बहुत ही गंभीर और डराने वाली बात है.
सड़क मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार 2016 में 150000 से अधिक लोग सड़क दुर्घटनाओं में मारे गये.
उससे पहले वर्ष यह आंकड़ा 146000 से थोड़ा अधिक था. और चौंकाने वाली बात यह है
कि लगभग 84% दुर्घटनाओं के लिए वाहन चालक ज़िम्मेवार थे. अर्थात कोई 400000 दुर्घटनाएं हम सब की गलतियों के कारण घटीं.
इतना ही नहीं, मरने वालों में लगभग 69% लोग 18 से 45 वर्ष की आयु-सीमा में थे.
इन आंकड़ों से साफ़ दिखता है की हमारे देश में उन वाहन चालकों की संख्या बहुत
बड़ी है जो अपनी और दूसरों की सुरक्षा की चिंता रत्तीभर भी नहीं करते. ऐसी स्थिति
में व्यवस्था को दोषी ठहरा देना हम सब के
लिए अनिवार्य हो जाता है, अन्यथा हमें अपनी भीतर भी झांकना पड़ सकता है.पर अगर कोई
और दोषी है तो हमें क्या आत्म-चिंतन करना?
हर सुबह मैं बीसियों लोगों को अपने अपने वाहनों पर, बच्चों को साथ लिये,
स्कूलों की ओर जाते देखता हूँ. इन में से अधिकतर लोग धड़ल्ले से ट्रैफिक नियमों की
अवहेलना करते हुए अपने वाहन चलाते हैं. यह लोग न सिर्फ अपने बच्चों के जीवन को
दावं पर लगाते हैं बल्कि अपने बच्चों को ऐसे संस्कार दे रहे हैं जिनके प्रभाव में आगे
चल कर यह बच्चे अपनी और औरों की सुरक्षा को लेकर पूरी तरह लापरवाह रहेंगे.
व्यवस्था कैसी भी हो, परन्तु ट्रैफिक नियमों की अवहेलना करते हुए, अपनी और
औरों की जान को खतरे में डाल कर हम अपनी विक्षिप्त मानसिकता का ही प्रदर्शन करते
हैं. ऐसा मुझे लगता है.
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