दो छात्रों की मौत
दिल्ली में कल फिर दो छात्र सड़क हादसे में अपनी जान गवां बैठे.
रिपोर्ट के अनुसार, शराब के नशे में, वह तेज़ गति से अपनी कार चला रहे थे कि
कार डिवाइडर को पार कर बिजली के एक खम्भे
से जा टकराई. इस समाचार को लाखों लोगों ने पढ़ा होगा. हज़ारों लोगों ने टीवी पर देखा होगा. पर शायद ही
किसी के मन पर खरोंच भी पड़ी होगी, शायद ही किसी के माथे पर शिकन उभरी होगी.
जो लोग उन युवकों के अंतिम संस्कार में भाग लेने गए होंगे वह सब भी इस घटना को बड़ी सरलता से भुला कर
धड़ल्ले से अपने-अपने वाहन चलाते हुए घरों को चल दिए होंगे.
जिस देश में हर घंटे में लगभग बीस लोग अपनी जान सड़क दुर्घटनाओं में गवां
देतें हैं वहां कौन किस की मृत्यु को लेकर व्यथित हो?
यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि 80% से भी अधिक दुर्घटनाएं वाहन-चालकों की गलती
के कारण होती हैं. अर्थात हम सब जानते हैं कि अधिकतर दुर्घटनाएं हमारी अपनी लापरवाही
के कारण ही हो रही हैं, बस हम सब सिर्फ अंजान
बनने का नाटक कर रहे हैं.
सत्य तो यही है कि हम वाहन चालक अगर सड़क पर अपना वाहन चलाते समय थोड़ी सी
सावधानी बरतने लगें तो हर वर्ष हज़ारों लोग अकाल मृत्यु से बच सकते हैं, हज़ारों
परिवार उजड़ने से बच सकते हैं.
हर सुबह में बीसियों लोगों को देखता हूँ जो अपने बच्चों को स्कूल छोड़ने
जाते हैं. उन में से कई लोग सड़क नियमों की अवहेलना करते हुए अपने वाहन चलाते हैं. देखने
में यह सब लोग मध्य या उच्च-मध्य वर्गों के पढ़े-लिखे लोग लगते हैं. अपने बच्चों को
शिक्षित करने के लिए हर माह हज़ारों रूपए खर्च करते हैं. पर उन्हें इस बात की तनिक
भी चिंता नहीं होती कि ट्रैफिक नियमों का उल्लघंन कर वह कैसे संस्कार अपने बच्चों को
दे रहे हैं.
जो बच्चा आज अपनी माँ या अपने पिता को ऐसे गाड़ी चलाते देखता है कल वही अपनी
कार को 130 की स्पीड पर दौड़ाता और किसी सड़क दुर्घटना का शिकार होता है.
बचपन से सुनते आये हैं कि ‘जाको राखे साईयाँ मार सके ना कोए’. यह कथन कितना
सत्य है इस बात का अहसास मुझे अपने देश की सड़कों पर अपना वाहन चलाते हुए अकसर होता
है. सड़क पर आप सुरक्षित हैं तो ईश्वर की अनुकम्पा कारण, अन्यथा आपकी सुरक्षा की फ़िक्र करने वाला कोई
विरला वाहन-चालाक ही मिलता है.
देश में सड़क दुर्घटनाओं में कोई कमी निकट भविष्य में आएगी? अपने आस-पास
लोगों को देख कर ऐसा लगता तो नहीं, अतः ऐसी दुखद दुर्घटनाओं की सूचनाएं हमें
बार-बार सुननी और पढ़नी पड़ेंगी.
What you said is absolutely true. How can we be so callous? We are perpetually in the mad race, expecting only others to mend ways. Often willy nilly even well meaning citizens are constrained to violate traffic rules. Situation is really dangerous.
ReplyDeleteThanks for stopping by.
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