Saturday, 17 March 2018


संसद में गतिरोध
संसद में पिछले कई दिनों से गतिरोध चल रहा है. इस कारण बजट भी शोर-शराबे के बीच, बिना किसी चर्चा के, पास कर दिया गया. कई महत्वपूर्ण बिल अटके हुए हैं. कई गम्भीर समस्याएं देश के सामने हैं पर लगता नहीं कि इन बातों की किसी दल या सांसद को ख़ास चिंता है.
क्या कारण है कि संसद की कार्यवाही वैसे नहीं चलती जैसे चलनी चाहिए?
मेरी समझ में इसके कई कारण हैं.
पहला कारण है राजनीतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र की कमी. लगभग सभी दल किसी परिवार या व्यक्ति विशेष के नियन्त्रण में हैं. वह परिवार या व्यक्ति एक निरंकुश शासक की भांति अपने दल को अपने वश में रखता है. एक राजा या ज़मींदार की तरह ही “शासक” अपना उतराधिकारी तय करता है. उसके हर निर्णय को सब सदस्य बड़े विनम्र भाव से स्वीकार कर लेते हैं. सब पूरी आस्था के साथ इस व्यस्था का पालन करते हैं. ऐसे दलों के सदस्यों की संसदीय प्रणाली में कितनी आस्था होगी इसकी कल्पना की जा सकती है.
अगर आप ने कभी ससंद की कार्यवाही का सीधा प्रसारण देखा होगा तो आपने पाया होगा कि जब किसी विषय पर चर्चा हो भी रही होती है तो अकसर सदन में चालीस-पचास सांसदों से अधिक सदस्य उपस्थित नहीं होती. कई बार तो इससे भी कम उपस्थिति होती है.
किसी मुद्दे पर चर्चा करने के लिए एक व्यक्ति को थोड़ी-बहुत मेहनत करनी पड़ती है. तथ्यों को जानना पड़ता है, समझना पड़ता है. तर्क देने पड़ते है. और दूसरों की बात को सुनना पड़ता है.
लेकिन हो-हल्ला करना सरल है. नारेबाज़ी करना आसान है. संसद में गतिरोध का एक कारण यही भी है.
फिर टीवी भी नारेबाजी और हो-हल्ले को अधिक महत्व देता है. किसी सांसद के भाषण को, चाहे वह कितना ही दिलचस्प और प्रबुद्ध क्यों न हो, कौन टीवी चैनल दिखाता है? उस भाषण पर कितनी चर्चा होती है? आजकल तो ट्विटर पर दिए गए किसी नेता के सन्देश की जितनी चर्चा होती उतनी चर्चा तो सदन की पुरे दिन की कार्यवाही को नहीं होती.
छोटे दलों की अपनी अलग से भूमिका है. उनका ध्येय अपने दल तक ही सीमित होता है. अगर राष्ट्रीय दल, देश के हितों की अनदेखी, कर सदन की कार्यवाही में गतिरोध पैदा करते हैं हैं तो छोटे/क्षेत्रीय दलों से को अलग अपेक्षा करना गलत होगा.
और एक बात संसद में ऐसे कई सदस्य हैं जिनके विरुद्ध अपराधिक मामले हैं चल रहे है. ऐसे महानुभावों से किस प्रकार की अपेक्षा की जा सकती है? इन लोगों की संसदीय प्रणाली में कितनी और कैसी आस्था होगी यह सोचने की बात है.
संसद का सबसे महत्वपूर्ण कार्य होता है सरकार पर निगरानी रखना. वह तभी  सम्भव है जब सदन की कार्यवाही नियमों अनुसार चले. प्रश्नकाल में तीखे प्रश्न पूछे जाएँ, मुद्दों पर चर्चा हो, सरकार की गलतियों और विफलताओं को उजागर किया जाए.
ऐसे में हर सरकार मन ही मन यह चाहेगी कि संसद की कार्यवाही जितने समय तक बाधित रह सकती है बाधित रहे. अत: विपक्ष सदन में गतिरोध पैदा कर, सरकार की मन चाही  इच्छा पूरी कर देता है.
कई बार तो लगता है कहीं विपक्ष और सरकार आपस में सांठ-गांठ तो नहीं? आज एक दल राज करेगा और विपक्ष सरकार पर पैनी नज़र रखने के बजाये सदन में हो-हल्ला करता रहेगा, कल अगर विपक्षी दल सत्ता में आया तो उन्हें भी वैसे निरंकुश सरकार चलाने का अवसर दिया जायेगा?    


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