Wednesday, 27 October 2021

 

प्रतिशोध-एक कहानी

होटल में प्रवेश करते ही दिनेश को अमर दिखाई दिया. उनकी नज़रें मिलीं पर दोनों ने ऐसा व्यवहार किया कि जैसे वह एक दूसरे को जानते नहीं थे. परन्तु अधिक देर तक वह एक दूसरे की नकार नहीं पाये.

‘बहुत समय हो गया.’

‘हाँ, दस साल, पाँच महीने और बाईस दिन.’

‘तुम ने तो दिन भी गिन रखे हैं?’

‘क्यों? तुम ने नहीं गिन रखे?’

‘क्या कभी जय से भेंट हुई? या बि......’

‘कभी नहीं. तुम्हारी?’

‘कभी नहीं.’

लेकिन दोनों को ही पता न था कि जय और बिन्नी भी उसी होटल में रुके हुए थे. उन दोनों ने सुबह दस बजे उसी होटल में चेक-इन किया था. वैसे जय और बिन्नी की भी अभी तक आपस में भेंट न हुई थी.

दस वर्षों से चारों एक-दूसरे से न कभी मिले थे. किसी प्रकार को कोई संपर्क उनके बीच नहीं था. हर एक के लिए जैसे अन्य तीनों का कोई अस्तित्व ही नहीं था.

होटल के ‘बार’ में चारों इकट्ठे हुए. उनका लगभग एक साथ ‘बार’ में आना सुनियोजित नहीं था. ‘बार’ में थोड़ा समय बिताने के लिये चारों अलग-अलग ही आये थे और हर एक दूसरों को देख कर सकपका गया था.

अनचाहे ही वह एक साथ बैठ गये. अतीत की परछाइयों से घिरे हुए वह एक साथ बैठ तो गये थे, पर आपस में बातचीत करने के लिए कोई इच्छुक न था.

कितनी देर तक इस तरह एक-दूसरे को नकार कर वह एक साथ बैठ सकते थे? बातचीत शुरू हुई,  पर बेमतलब की, एक दूसरे से आँखें चुराते हुए. अतीत के विषय में किसी ने कोई बात न की. चारों में से किसी ने भी यह जानने का प्रयास न किया कि कौन कहाँ था, क्या कर रहा था और किस कारण उस होटल में रुका हुआ था.

अचानक अमर उठ खड़ा हुआ. उसने कहा कि वह बहुत थक गया था, रूम में जाकर वह विश्राम करना चाहता था. वह पलटा.

तभी पास से गुज़रती एक लड़की लड़खड़ा गई. इससे पहले कि वह गिरती उसने हाथ बढ़ा कर अमर का हाथ थाम लिया. अगर वह संभल न पाती तो शायद बुरी तरह उनकी मेज़ पर ही आ गिरती. शायद उसने थोड़ी अधिक शराब पी ली थी.    

‘धन्यवाद, आपने मेरी लाज रख ली. पर क्या आप सुंदर लड़कियों को गिरने से अकसर बचाते हैं?’ उसने अमर की आँखों में देखते हुए कहा. अमर हड़बड़ा गया, उस ने आँखें नीची कर लीं.

‘अगर यह कोई बैचलर पार्टी नहीं है तो क्या मैं आपके साथ बैठ जाऊं?’

‘यह तो हमारा सौभाग्य.......’ बिन्नी एकदम बोला पर फिर कुछ सोच कर ठिठक गया.

लड़की ने उनकी झिझक की बिलकुल परवाह नहीं की और बड़े विश्वास के साथ वेटर से उसके लिए कुर्सी लाने का संकेत किया. वह उनके साथ बैठ गई.

चारों ने चोरी-चोरी एक दूसरे को देखा. हर एक  के मन में संदेह की हल्की-हल्की लहरें उठने लगी थीं. हाँ एक बात शुरू करने में हिचकिचा रहा था. लेकिन उनकी रहस्यमय चुप्पी से बेखबर वह लड़की बातें किये जा रही थी. उनके निमंत्रण की प्रतीक्षा किये बिना ही उसने ड्रिंक मंगवा लिया था.

‘आप लोग क्या पहली बार मिल रहे हो? मुझे तो लगा था कि आप सब पुराने मित्र हो? शायद स्कूल-कॉलेज के सहपाठी? नहीं?’

किसी ने उसकी बात का उत्तर नहीं दिया. चुपचाप चारों अपने-अपने ड्रिंक में व्यस्त हो गये.

धीरे-धीरे तनाव कम होने लगा. उनके होंठो पर मुस्कान थिरकने लगी. उन्होंने देखा की लड़की जितनी सुंदर थी उतनी ही हंसमुख भी थी. लेकिन उसे देख कर दिनेश और अमर को कुछ घबराहट सी भी हो रही थी. न जाने क्यों वह लड़की उन्हें किसी की याद दिला रही थी.

या तो शराब का नशा था या फिर उस लड़की ने उन्हें इतना सम्मोहित कर दिया था कि वह चारों अनायास बीते दिनों की बात करने लगे थे.

‘लेकिन इन दस वर्षों में आप कभी आपस में नहीं मिले?’

‘नहीं, हमारी पिछली मुलाक़ात दस वर्ष पाँच महीने और बाईस दिन पहले हुई थी,’ दिनेश ने बिना सोचे ही कहा. अगले ही पल वह सहम गया.

‘उसी दिन न जिस दिन वह नीली आँखों वाली लड़की की मृत्यु हुई थी?’

उसके शब्दों ने उन्हें चौंका दिया.

‘या फिर तुम सब ने मिल कर उसे मार डाला था?’ लड़की के शब्द छुरी समान उनके सीने में चुभ गये

‘नहीं, वह तो एक दुर्घटना थी. एक दुर्घटना! वह....वह अपनी इच्छा से आई थी..... हम उसकी हत्या क्यों.......?’ दिनेश घबरा कर ज़रा ऊंची आवाज़ में बोला. लेकिन अगले ही पल उसे अहसास हुआ कि उसने अनचाहे ही बहुत कुछ कह डाला था. वह एक भयानक भूल कर बैठा था.

‘वह दुर्घटना नहीं थी और यह बात तुम सब अच्छी तरह जानते हो,’ लड़की की आँखें किसी शेरनी समान चमक रही थीं.

जय ने इधर-उधर देखा. ‘बार’ लगभग खाली था. उसने घड़ी देखी, बारह बजने वाले थे. इतना समय कैसे बीत गया. कहीं घड़ी खराब तो नहीं हो गयी? उसका भय उसकी आँखों से छलकने लगी.

‘तुम कौन हो? उस लड़की को कैसे जानती हो?’ जय ने लगभग धमकाते हुए पूछा.

‘तुम मुझे नहीं जानते? देखो मेरी ओर....ध्यान से देखो. मैं वही लड़की हूँ जिसे तुम ने उस दिन मार डाला था. पर मैं बच गई थी. मैं मरी नहीं थी. मैं बच गई थी, अपना प्रतिशोध लेने के लिए.’

उन्हें समझ न आया कि वह क्या कह रही थी. आश्चर्यचकित से वह उसे घूरने लगे. तभी उन्हें अहसास हुआ कि वह डर से कांपने लगे थे.

‘नहीं, ऐसा नहीं हो सकता! तुम हमें मूर्ख समझती हो!’

‘क्यों ऐसा नहीं हो सकता?’ लड़की की आँखें क्रोध से जलने लगी थीं.

‘क्योंकि हमने उसकी लाश को भट्टी में जला दिया था, और ...और.... और इस बात के लिए मैंने सदा अपने से घृणा की है,’ दिनेश ने बिना रुके कहा और अपने आप में सिमट कर बैठ गया. उसकी सहमी हुई सिसकियाँ पूरे ‘बार’ में गूँज रही थीं.

‘ऐसा भयानक काम तुम कैसे कर पाए?’ लड़की ने थरथराती हुई  हुई आवाज़ में कहा. उसकी आँखें भर आई थीं.

‘तुम कौन हो?’ जय की आवाज़ कांप रही थी, लेकिन उसकी आँखें भय और तिरस्कार से जल रही थीं.

‘मैं उस मृत लड़की की छोटी बहन हूँ. वर्षों से मैं तुम लोगों को ढूँढ़ रही थी. तुम सब मेरे कारण ही यहाँ आये हो. यह कोन्फेरेंस तो बस एक बहाना थी, तुम्हें एक साथ यहाँ इकट्ठा करने के लिए.’

वह चुप हो गयी और कई पलों तक कोई कुछ न बोला. लड़की ने घूरते हुए उनको देखा.

‘यह सब मैं तुम लोगों से सुनना चाहती थी......तुम सब को मारने से पहले.’

‘तुम ऐसा नहीं कर सकती!’ बिन्नी चिल्लाया.

‘क्या नहीं कर सकती?’

‘तुम हमें नहीं.....’

‘क्यों नहीं मार सकती? मैं तुम्हें मार सकती हूँ......सच तो यह मैं तुम्हें मार चुकी हूँ!’

चारों स्तब्ध रह गये.

‘यह शराब जो तुम चारों यहाँ बैठे कर पी रहे हो इसमें ज़हर मिला हुआ है....................’

चारों की आँखें पत्थरा सी गईं.

‘तुम सब मरोगे. अभी एकदम से नहीं, पर जल्दी ही.’

लड़की ने एक कोने में बैठे हुए एक लड़के की ओर देखा. बहुत धीरे से सिर हिला कर लड़के ने उसका अभिवादन किया.

Tuesday, 26 October 2021

 

सबहीं नचावत राम गोसाईं

भगवतीचरण वर्मा के एक उत्कृष्ट उपन्यास का शीर्षक है, सबहीं नचावत राम गोसाईं. पर मैं उस उपन्यास के विषय मैं कोई चर्चा नहीं करने वाला. मैं तो उन लोगों के विषय में बात करना चाहता हूँ जिन्हें आजकल राम गोसाई नचा रहे हैं.

अचानक पिछले कुछ वर्षो से देश में एक परिवर्तन आ गया है. कुछ लोग जन्युधारी हो गये हैं. कुछ लोग त्रिपुंडधारी हो गये हैं. गंगा स्नान कर रहे हैं.  मंदिर-मंदिर घूम रहे हैं. जो लोग वर्षों तक ६ दिसम्बर १९९२ की बरसी मानते रहे और वह जो कहते थे कि राम काल्पनिक हैं, वह सब भी आज राम का गुणगान कर रहे हैं.

और दिल्ली के मुख्यमंत्री  का भी हृदय परिवर्तन हो गया लगता है. उन्होंने एक बार एक जन सभा में बताया था कि उनकी नानी ने कहा था, उनका राम किसी मस्जिद को तोड़ कर बने मंदिर में नहीं बस सकता. फिर कभी मुख्यमंत्री जी ने किसी सभा में कहा कि आई आई टी खरगपुर बनाने के बजाए अगर मंदिर बनाया होता तो क्या देश तरक्की करता. ऐसे और भी वक्तव्य हैं उनके जो यू ट्यूब पर देखे जा सकते है.

पर अब वह भी अयोध्या गये. क्या चुनाव आने वाले हैं?

सच में, सबहीं नचावत राम गोसाईं. 

Wednesday, 20 October 2021

 

विधाता का अन्याय

“किस बात को लेकर आप विचारमग्न हैं?” मैंने मुकन्दी लाल जी से पूछा. वह आये तो दे गपशप करने पर बैठते ही किसी चिंता में खो गये.

“सोच रहा था, विधाता भी कुछ लोगों के साथ बहुत अन्याय करते हैं.”

“अब किस के साथ अन्याय कर दिया हमारे विधाता ने?”

“इन विरासत-जीवियों के साथ. विधाता इन ‘देवों के प्रिय’ लोगों को विरासत में सत्ता की कुर्सी तो देते हैं, पर न उन्हें समझदारी प्रदान करते हैं और न ही दूरदर्शिता. विधाता को इन देवानामप्रियाओं से ऐसा क्रूर खेला नहीं खेलना चाहिए. यह अन्याय है.”

“अगर कुछ लोगों में अक्ल की कमी है तो इसमें विधाता का क्या दोष?”

“सच में यह विधाता का सरासर अन्याय है. जब विधाता ने स्वयं विधान में लिख दिया होता है कि किस महापुरुष (या किस महामहिला) के कैलाशवासी होने के पर उसकी सत्ता किस महापुरुष (या महामहिला) को विरासत में मिलेगी, तो ऐसे विरासत-जीवी को किसी योग्य बनाना भी तो विधाता का ही कर्तव्य है.”

“अरे, यह आप क्या कह रहे हैं? मेहनत.......”

“वह सब रहने दीजिये. वह सब किताबी बातें हैं.” मुकन्दी लाल जी ने मुझे बात पूरी न करने दी. “जब भाग्य में कुर्सी लिखी थी तभी बाकी गुण देने का भी प्रबंध कर देना चाहिए था.”

“................” मैं तर्कहीन हो गया.

“पर इसका परिणाम तो हम ग़रीबों को भोगना पड़ता है.”

“वह कैसे?”

“ऐसे-ऐसे नमूनों को झेलना पड़ता है कि समझ नहीं आता कि अपने भाग्य पर रोयें या हँसे.”

(यह सिर्फ एक व्यंग्य है. इसका किसी और रूप में विश्लेष्ण न करें) 

Wednesday, 13 October 2021

 

         लखिमपुर में घटी घटनाओं की अनकही कहानी

लखिमपुर में जो हिंसा की घटना कुछ दिन पहले घटी उसको लेकर आप ने हर टीवी चैनल पर बहुत कुछ सुना होगा. पर शायद ही किसी मीडिया विश्लेषक ने आपको उस कारण के विषय में कुछ बताया होगा जो लखिमपुर और उसके आसपास के इलाकों में बसे हुए किसानों की चिंता की असली वजह है. मुझे इस विषय की जानकारी प्रदीप सिंह जी के यू-ट्यूब चैनल ‘आपका अख़बार’ के विडियो सुनने पर मिली. आज की घटनाओं को समझने के लिए हमें थोड़ा इतिहास में जाना पड़ेगा.

पकिस्तान से आये कई सिखों को लखिमपुर और उसके आसपास के इलाकों में बसाया गया था. यह सत्य है कि इन लोगों ने कठिन चुनौतियों का सामना करते हुए अपने को इन नयी जगहों पर स्थापित किया था.

इन लोगों के आने से पहले इन इलाकों में जनजाति के लोग रहते थे, मुख्य जनजातियाँ थीं थारु और बुक्सा. एक समय पर इन लोगों के पास कोई 2.5 लाख एकड़ भूमि थी पर अब इनके पास सिर्फ 15,000 एकड़ भूमि ही बची है.

इन मूल निवासियों की ज़मीन का क्या हुआ? प्रदीप सिंह जी के अनुसार साठ और सत्तर के दशक में थारु और बुक्सा लोगों के बड़े पैमाने पर हत्याएं हुईं, खून बहा, हिंसा हुई और इन लोगों की भूमि पर कब्ज़ा किया. कई मूलनिवासियों से जबरदस्ती लिखवा लिया गया. परिणाम स्वरूप, जहाँ कानूनी तौर पर कोई फार्म 12.5 एकड़ से बड़ा न हो सकता था, वहाँ कुछ लोगों के पास 200, 400, 1000, 2000 एकड़ के फार्म है. यह फार्म इन जनजातियों की भूमि पर और वन विभाग की भूमि पर बने हैं.

यू पी सरकार ने 1981 में कानून बनाया कि कोई भी थारु और बुक्सा जनजाति के लोगों की ज़मीन नहीं खरीद सकता और जिसने भी सीलिंग से अधिक भूमि खरीदी है वह उससे वापस ली जायेगी. पर इस आदेश पर उस समय के हालात के कारण आगे कोई कारवाही नहीं हुई. बाद में कल्याण सिंह सरकार ने भी इस कानून को लागू करने का प्रयास किया पर कुछ कर न पाई.

योगी जी ने उत्तर प्रदेश का मुख्य मंत्री बनने के बाद एक निर्णय लिया कि जिन लोगों ने सरकारी या दूसरों की भूमि पर अवैध कब्ज़ा कर रखा है उस भूमि को मुक्त कराने का अभियान चलाया जाएगा.

इस अभियान के चलते पिछले साढ़े चार सालों में 1,54,000 एकड़ भूमि अवैध कब्ज़े से मुक्त कर ली गयी है.

अब इस अभियान की आंच लखिमपुर में बसे हुए किसानों तक पहुँच रही है. चूँकि इन किसानों में कई लोग अकाली दल से और कुछ कांग्रेस के साथ जुड़े हैं इसलिए आजतक इन लोगों के विरुद्ध कोई कारवाही नहीं हो सकी.

लखिमपुर में बसे हुए किसान जानते हैं कि वह इस बात को लेकर आन्दोलन नहीं कर सकते. न ही वह इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट का दरवाज़ा खटखटा सकते हैं. कानूनन उत्तर प्रदेश में कोई भी व्यक्ति 12.5 एकड़ से अधिक भूमि का स्वामी नहीं हो सकता.

अब चूँकि अन्य रास्ते बंद हैं और योगी जी कोई ढिलाई बरतने को तैयार नहीं लगते, इसलिए किसान आन्दोलन की आढ़ में यहाँ के किसान यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि जो अभियान उत्तर प्रदेश सरकार ने चलाया उन्हें इससे बाहर रखा जाए.

जैसी की अपेक्षा थी, इस आन्दोलन को उत्तर प्रदेश के बजाय पंजाब के राजनेताओं का पूरा समर्थन मिल रहा है.

(इस मुद्दे पर श्री प्रदीप सिंह का विडिओ यू-ट्यूब पर अवश्य सुनें)

 

Monday, 11 October 2021

 

भूत-बँगला  

एक करोड़? इस घर के लिए? आप मज़ाक तो नहीं कर रहे? इस घर के लिए कोई पचास लाख भी न दे.’

क्यों? क्यों कोई इस घर के लिए पचास लाख भी देने को तैयार न होगा?’ उनकी वाणी से लग रहा था कि मेरी बात ने उन्हें आहत किया था. मैं थोड़ा सतर्क हो गया. मैंने उनके हाव-भाव समझने का प्रयास किया और उन्हें देख कर ठिठक कर रह गया.

उनका चेहरा कुछ अलग-सा दिख रहा था, अजीब सा. न जाने क्यों ऐसा लगा जैसे कि उनके चेहरे पर मोम की एक परत चढ़ी हुई थी. परन्तु ऐसा कैसे हो सकता था? क्या उन्होंने चेहरे पर कोई क्रीम लगा रखी थी? पर क्यों?  मैं कुछ समझ न पाया.

वो बात ऐसी है कि ...... शायद यह एक अफवाह ही हो...... पर लोग कहते हैं कि.........’मैं बात पूरी करने मैं झिझक रहा था.

जो कहना चाह रहे हो कह डालो. इस तरह शब्दों का जाल मत बुनो.’ उन्होंने थोड़ा गुस्से से कहा. देखा, उनकी आँखें भी निर्जीव सी लग रहीं थीं.

इस घर मैं भूतों का वास है......ऐसा लोग कहते हैं, मैंने दबी सी आवाज़ में कहा.

और तुम क्या कहते हो? तुम्हें भी लगता है कि यह एक भूत-बँगला है?’ उनके चेहरा बिलकुल भावहीन था.

मैं नहीं जानता कि......कि सच क्या है.’

सच यह है कि मैं एक पुलिस अधिकारी हूँ और कई शक्तिशाली लोग मेरे शत्रु बन गये हैं.  मेरा इकलौता बेटा विदेश चला गया है. पाँच सालों से वहाँ है, वहीं बस गया है. अब मैंने भी, नौकरी छोड़, विदेश जाने का निर्णय लिया है. इसीलिए यह घर बेचना चाहता हूँ. पर कुछ लोग नहीं चाहते कि मुझे उचित दाम मिले. शायद इसलिए उन्होंने यह अफवाह फैला दी है कि इस घर में भूतों का ठेरा है.’

आप जो मांग रहे हैं वह कोई उचित मूल्य तो नहीं.’ घर मुझे अच्छा लगा था और मैं इसे लेना चाहता था. मुझे भूत-प्रेतों में कोई विश्वास नहीं है, इस कारण मैं अफ़वाहों से डरने वाला न था.

आप कहें, क्या मूल्य देंगे?.’

अगर मैंने यह घर ले लिया तो शायद आपके शत्रुओं को अच्छा न लगे, वह लोग मेरे शत्रु बन सकते हैं?’

ऐसा कुछ न होगा. उनकी शत्रुता मुझ से है. वह मेरे पीछे आयेंगे. पर मैं उन्हें मिलूंगा नहीं.

मैं सिर्फ साठ लाख ही दे पाऊँगा, मुझे लगा कि मैं उनकी मजबूरी का थोड़ा लाभ उठा सकता हूँ.

मुझे मंज़ूर है. घर आपका हुआ. कुछ बयाना देंगे अभी?

वह इतनी तत्परता से मेरा प्रस्ताव मान लेंगे, मैंने सोचा भी न था. मैं थोड़ा हतप्रभ रह गया. लेक सिटी में ऐसा घर साठ लाख में मिलना असम्भव था. अगर वह मेरा प्रस्ताव न मानते तो मैं अस्सी लाख भी दे देता.

मैं तय न कर पाया कि मुझे प्रसन्न होना चाहिए या चिंतित. एक अनजानी आशंका ने मुझे घेर लिया.

“नहीं, अभी तो मैं कुछ साथ नहीं लाया. लेकिन पहली क़िस्त अगले सप्ताह दे दूंगा.”

दो दिन बाद एक मित्र का फोन आया. वह जानता था कि मैं एक घर लेना चाहता हूँ. उसने बताया कि लेक सिटी में एक घर बिकाऊ था. जो घर उसने बताया वह वही घर था जिसका सौदा मैं पहले ही तय कर चूका था.

पर मैंने तो पहले ही उस घर के लिए बात पक्की कर लिया है. अगले सप्ताह पहली किस्त भी दे आऊंगा.’

मेरी बात सुन मित्र आश्चर्यचकित हो गया. उसने पूछा, ‘किस के साथ बात की तुमने? उस घर का मालिक तो यहाँ था ही नहीं, कल ही विदेश से आया है.’

विदेश से आया है? कल? यह कैसे हो सकता है?’

वह पाँच-सात वर्षों से अमरीका में रह रहा है. अपने पिता की मृत्यु के बाद. वहीं बस गया था. कल ही भारत आया है. वह भी सिर्फ घर को बेचने के लिए.’

उसकी बात सुन मुझे झटका सा लगा. मुझे लगा कि मेरे हाथ कांप रहे थे. मैंने सहमी आवाज़ में पूछा, ‘उसके पिता की मृत्यु कैसे हुई? कोई जानकारी है तुम्हारे पास?’

उसके पिता पुलिस अधिकारी थे, कुछ शक्तिशाली लोगों से उनकी शत्रुता हो गयी थी. उन्हीं लोगों ने उनकी हत्या कर दी.  बहुत ही निर्मम हत्या थी, उन्हें पिघली हुई मोम में डुबा कर मार डाला था. अखबारों में इस घटना की बहुत चर्चा हुई थी. तुम्हें याद नहीं, पर शायद तुम तब यहाँ आये नहीं थे...........’

मैं कुछ सुन-समझ न पा रहा था. मेरी आँखों के सामने एक चेहरा था जिस पर मोम की परत चढ़ी हुई थी.

© आइ बी अरोड़ा