भूत-बँगला
‘एक
करोड़? इस घर
के लिए? आप
मज़ाक तो नहीं कर रहे? इस घर के लिए कोई पचास लाख भी न दे.’
‘क्यों? क्यों
कोई इस घर के लिए पचास लाख भी देने को तैयार न होगा?’ उनकी
वाणी से लग रहा था कि मेरी बात ने उन्हें आहत किया था. मैं
थोड़ा सतर्क हो गया. मैंने उनके हाव-भाव समझने
का प्रयास किया और उन्हें देख कर ठिठक कर रह गया.
उनका
चेहरा कुछ अलग-सा दिख रहा था, अजीब
सा. न जाने क्यों ऐसा लगा जैसे कि उनके चेहरे पर मोम की एक परत चढ़ी हुई थी. परन्तु
ऐसा कैसे हो सकता था? क्या उन्होंने चेहरे पर कोई क्रीम लगा रखी थी? पर क्यों? मैं कुछ समझ न पाया.
‘वो
बात ऐसी है कि ...... शायद यह एक अफवाह ही हो...... पर लोग
कहते हैं कि.........’मैं बात पूरी करने मैं झिझक रहा था.
‘जो
कहना चाह रहे हो कह डालो. इस तरह शब्दों का जाल मत बुनो.’ उन्होंने
थोड़ा गुस्से से कहा. देखा, उनकी आँखें भी निर्जीव सी लग रहीं थीं.
‘इस घर
मैं भूतों का वास है......ऐसा लोग कहते हैं,’
मैंने दबी सी आवाज़ में कहा.
‘और
तुम क्या कहते हो? तुम्हें भी लगता है कि यह एक भूत-बँगला
है?’
उनके
चेहरा बिलकुल भावहीन था.
‘मैं
नहीं जानता कि......कि सच क्या है.’
‘सच यह
है कि मैं एक पुलिस अधिकारी हूँ और कई शक्तिशाली लोग मेरे शत्रु बन गये हैं. मेरा इकलौता बेटा विदेश चला
गया है. पाँच
सालों से वहाँ है, वहीं बस गया है. अब मैंने भी,
नौकरी छोड़, विदेश जाने का निर्णय लिया है. इसीलिए
यह घर बेचना चाहता हूँ. पर कुछ लोग नहीं चाहते कि मुझे उचित दाम मिले. शायद
इसलिए उन्होंने यह अफवाह फैला दी है कि इस घर में भूतों का ठेरा है.’
‘आप जो
मांग रहे हैं वह कोई उचित मूल्य तो नहीं.’ घर मुझे अच्छा लगा था और मैं
इसे लेना चाहता था. मुझे भूत-प्रेतों
में कोई विश्वास नहीं है, इस कारण मैं अफ़वाहों से डरने वाला न था.
‘आप
कहें, क्या मूल्य देंगे?.’
‘अगर मैंने
यह घर ले लिया तो शायद आपके शत्रुओं को अच्छा न लगे, वह लोग मेरे शत्रु बन सकते
हैं?’
‘ऐसा
कुछ न होगा. उनकी शत्रुता मुझ से है. वह
मेरे पीछे आयेंगे. पर मैं उन्हें मिलूंगा नहीं.
‘मैं
सिर्फ साठ लाख ही दे पाऊँगा,’ मुझे लगा कि मैं उनकी
मजबूरी का थोड़ा लाभ उठा सकता हूँ.
‘मुझे
मंज़ूर है. घर आपका हुआ. कुछ
बयाना देंगे अभी?’
वह
इतनी तत्परता से मेरा प्रस्ताव मान लेंगे, मैंने सोचा भी न था. मैं थोड़ा
हतप्रभ रह गया. लेक सिटी में ऐसा घर साठ लाख में मिलना असम्भव
था. अगर
वह मेरा प्रस्ताव न मानते तो मैं अस्सी लाख भी दे देता.
मैं
तय न कर पाया कि मुझे प्रसन्न होना चाहिए या चिंतित. एक
अनजानी आशंका ने मुझे घेर लिया.
“नहीं,
अभी तो मैं कुछ साथ नहीं लाया. लेकिन पहली क़िस्त अगले सप्ताह दे दूंगा.”
दो दिन
बाद एक मित्र का फोन आया. वह जानता था कि मैं एक घर लेना चाहता हूँ. उसने
बताया कि लेक सिटी में एक घर बिकाऊ था. जो घर उसने बताया वह वही घर था जिसका सौदा
मैं पहले ही तय कर चूका था.
‘पर
मैंने तो पहले ही उस घर के लिए बात पक्की कर लिया है. अगले
सप्ताह पहली किस्त भी दे आऊंगा.’
मेरी
बात सुन मित्र आश्चर्यचकित हो गया. उसने पूछा, ‘किस
के साथ बात की तुमने? उस घर का मालिक तो यहाँ था ही नहीं, कल ही
विदेश से आया है.’
‘विदेश
से आया है? कल? यह कैसे हो सकता है?’
‘वह पाँच-सात
वर्षों से अमरीका में रह रहा है. अपने पिता की मृत्यु के बाद. वहीं
बस गया था. कल ही भारत आया है. वह भी
सिर्फ घर को बेचने के लिए.’
उसकी
बात सुन मुझे झटका सा लगा. मुझे लगा कि मेरे हाथ कांप
रहे थे. मैंने
सहमी आवाज़ में पूछा, ‘उसके पिता की मृत्यु कैसे हुई? कोई
जानकारी है तुम्हारे पास?’
‘उसके
पिता पुलिस अधिकारी थे, कुछ शक्तिशाली लोगों से उनकी शत्रुता हो गयी थी. उन्हीं
लोगों ने उनकी हत्या कर दी. बहुत
ही निर्मम हत्या थी, उन्हें पिघली हुई मोम में डुबा कर मार डाला था. अखबारों
में इस घटना की बहुत चर्चा हुई थी. तुम्हें याद नहीं, पर शायद तुम तब यहाँ आये
नहीं थे...........’
मैं
कुछ सुन-समझ न पा रहा था. मेरी
आँखों के सामने एक चेहरा था जिस पर मोम की परत चढ़ी हुई थी.
© आइ बी
अरोड़ा
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