‘हम सरकारी कर्मचारी हैं’
नौकरी में बहाल होने पर चंद्रप्रकाश जब
पहली बार कार्यालय आया तो सबसे पहले वह उस अधिकारी से मिला जिसकी रिपोर्ट के आधार
पर उसे सेवामुक्त किया गया था. बड़ी विनम्रता के साथ उसने कहा, “सर, मैं जीवनभर
आपका आभारी रहूँगा. आपके कारण ही मुझे इस बात का ज्ञान हुआ है कि सरकारी नौकरी से
किसी को अलग करना सरकार के लिए कठिन ही नहीं लगभग असंभव है...लगभग क्यों? नहीं सर,
पूरी तरह असंभव है. पहले मैं डरा रहता था कि कहीं कुछ हो गया तो मेरा क्या होगा.
अब आपकी अनुकंपा से मैं पूरी तरह निश्चिन्त हो गया हूँ. आपका बहुत-बहुत धन्यवाद.”
चंद्रप्रकाश को तीन वर्ष पहले हमारे विभाग
ने नौकरी से हटा दिया था. उस समय उसकी नौकरी तीन वर्ष की ही थी. उन तीन वर्षों में
उसके विरुद्ध बीसियों शिकायतें आई थीं. समय पर आने-जाने का वह आदि नहीं था. हर
दो-चार दिन बाद बिना अनुमति के गायब हो जाता था. अन्य कर्मचारियों और अधिकारियों
के साथ उसकी तू-तू मैं-मैं चलती ही रहती थी. एक बार किसी के साथ उसकी खूब हाथापाई
भी हुई थी. जो काम उसे सौंपा गया था उसे न तो उसने कभी समझा था और न ही कभी
निपटाया था. उसे कई बार समझाया और चेताया गया पर उसके व्यवहार में कोई सुधार न हुआ
था.
हार कर उसके उपनिदेशक ने अपनी रिपोर्ट में
लिख दिया था कि परिवीक्षा की अवधि समाप्त होने पर उसे सेवामुक्त कर दिया जाए. और
वैसा ही हुआ.
चंद्रप्रकाश इतनी जल्दी हार मानने वाला
न था. वह जानता था कि जीवन एक संघर्ष है. इसलिए हर प्रकार की लड़ाई लड़ने के लिए वह
तत्पर रहता था. उसने बहुत हाथ-पैर मारे, पर विभाग ने उसे बहाल न किया. तब उसने
अदालत का दरवाज़ा खटखटाया. दो-ढाई वर्ष केस अदालत के विचाराधीन रहा और अंत मैं वह
विजयी हुआ.
चंद्रप्रकाश ने अपनी कुर्सी पर विराजते
ही एक पाँव मेज़ के ऊपर रखा और दूसरा नीचे और अपना दांया कान खुजलाने लगा. उसने वहीं
से चिल्लाकर बड़े बाबू से पूछा, “बड़े बाबू, हमारा तीन साल का वेतन वगेरह कब दे रहे
हैं?”
उसकी आवाज़ में ऐसी खनक थी कि बड़े बाबू
सहम गये. फिर बड़े अदब से बोले, “चंद्रप्रकाश जी, आपने आज ही ज्वाइन किया है. अदालत
के आदेश अनुसार उचित का कार्यवाही आज ही शुरू कर दी जायेगी. आप पूरी तरह निश्चिन्त
रहें.”
“वह तो आपको करना ही है. कोई एहसान
नहीं कर रहे मुझे पर, अदालत की अवमानना करने से तो आप रहे. बस मेरा यह विनम्र
निवेदन हैं कि अगर शीघ्र भुगतान कर देंगे तो सब के लिए अच्छा होगा.”
बड़े बाबू मन ही मन झल्लाए और हौले से,
बिलकुल हौले से बुदबुदाये, “पहले ही आठ में से सिर्फ चार लोग ढंग से काम करते हैं.
लगता है इसको देखकर वह भी काम करना बंद कर देंगे.”
चंद्रप्रकाश ने रामखिलावन की ओर देखा
और बोला, “क्या रामखिलावन, तुम तो फाइलों में ऐसे घुसे हो जैसे शहतूत के पत्तों
में रेशम का कीड़ा.” फिर वह अपनी ही बात पर खिलखिलाकर हँस दिया.
एक-दो बाबुओं ने भी ज़ोर का ठहाका
लगाया. बड़े बाबू जलभुन कर रह गये.
रामखिलावन थोड़ा अचकचाया, “नहीं, ऐसी
कोई बात नहीं है. बस ज़रा यह रिपोर्ट तैयार करनी है. बड़े बाबू बार-बार कहते रहते
हैं.”
“आप जानते हैं यह रिपोर्ट कब जानी थी?”
बड़े बाबू अपने को रोक न पाए. “10 अप्रैल को, पिछले वर्ष की 10 अप्रैल को. इस वर्ष
की रिपोर्ट भेजने का भी समय जल्दी आ जाएगा और हमने अभी पिछले साल की रिपोर्ट नहीं
भेजी.”
बड़े बाबू की पूरी तरह अवहेलना करते हुए
चंद्रप्रकाश बोला, “अरे भाई, चाय-वाय पीने नहीं चलना. बाद में गरमागरम समोसे नहीं
मिलेंगे. इतना काम करके कुछ न मिलेगा. हमें देखो, काम में सिर खपाते रहे और मिला
क्या? तीन साल अदालतों के चक्कर काटने पड़े. इससे तो अच्छा है हाथ पर हाथ धरे बैठे
रहो, न कोई गलती होगी, न मुसीबत झेलनी पड़ेगी.”
इस बीच उसने कान खुजलाना बंद न किया
था. उसकी बातों का रामखिलावन पर इतना प्रभाव पड़ा कि सारी फाइलें वैसे ही मेज़ पर
छोड़ कर चंद्रप्रकाश के साथ कैंटीन चल दिया.
उसी ने चाय-समोसे का आर्डर दिया और फिर
धीरे से बोला, “भाई, प्रमोशन नहीं हो रही, दो बार केस डीपीसी के सामने गया था और
दोनों बार ही अयोग्य कह दिया.”
“मेरी मानो तो सीधा कोर्ट में जाओ. वहीं
न्याय मिलेगा. यहाँ बैठ कर अर्जियां लिखने से कुछ न होगा.”
“पर मुझे तो कोई जानकारी नहीं है
कि.....”
चंद्रप्रकाश ने उसे बात पूरी न करने
दी, “मैं किस लिए बैठा हूँ, मैं सहायता करूँगा. तुम ऐसा करो, विभाग में सब को बता
दो. जिसका भी कोई भी मामला फँसा हुआ है, मैं मदद करूँगा. कोर्ट के इतने धक्के
खायें है तो किसी को तो मेरे अनुभव का लाभ मिलना चाहिए. क्यों गलत कर रहा हूँ
क्या?”
उस दिन से चंद्रप्रकाश कई कर्मचारियों
के कानूनी सलाहकार बन गया है. किसी की प्रमोशन रुका है, किसी का वरिष्ठता का केस
है, किसी के वेतन में कटोती का मामला है और किसी का कुछ और. चंद्रप्रकाश सब को
सलाह देने लगा है. और बहुत व्यस्त रहता है.
जब से चंद्रप्रकाश नौकरी में बहाल हुआ
है, बड़े बाबू चिंतित रहते हैं. पिछले बारह वर्षों से वह एक ही पद पर अटके हुए हैं.
अब तीन-चार वर्षों में रिटायर हो जायेंगे. अभी अगर प्रमोशन न हुआ तो इसी पद से
रिटायर हो जाना पड़ेगा. फिर मरते दम तक मलाल रहेगा कि पैंतीस साल नौकरी करने के बाद
भी ‘क्लास वॅन’ अफसर नहीं बन पाए.
बेचारे बहुत मेहनत करते हैं, फिर भी भाग्य
है कि अनुभाग का कार्य उनसे सही ढंग से संभल नहीं पाते. उनके अनुभाग का कोई भी
बाबू मन लगा कर काम करने को तैयार नहीं है. कोई निठ्ठला बैठा रहता है, कोई अपने
अभिवेदन या कोर्ट केस में व्यस्त रहता है, अधिकाँश को चंद्रप्रकाश की तरह कान
खुजलाने के लत लग गई है. इसी कारण बड़े बाबू सदा खिन्न रहते हैं.
चंद्रप्रकाश को बड़े बाबू पर दया आई. एक
दिन उन्हें समझाने लगा, “बड़े बाबू, आपको अधिक चिंता नहीं करनी चाहिए. हम सरकारी
कर्मचारी हैं, किसी के व्यक्तिगत चाकर नहीं. और इस सरकारी नौकरी में रखा ही क्या
है जो इतना सिर मार रहे हैं? ठीक से दो टैम की रोटी भी नहीं मिलती. बस एक ही बात
है जो सही है, कोई हाथ नहीं लगा सकता. इसलिए कहता हूँ इतनी चिंता करने की ज़रुरत
नहीं है. और रही प्रमोशन की बात, उसके लिए काम करना अनिवार्य नहीं है. बस रिकॉर्ड
ठीक होना चाहिए. अब इतना काम करेंगे तो कोई न कोई गलती हो जायेगी और रिकॉर्ड खराब
हो जाएगा.”
इतना कह कर चंद्रप्रकाश ने एक पाँव मेज़
पर रखा और आँख मूंद कर बड़ी तन्मयता से कान खुजलाने लगा. उसका हावभाव देखकर ही
अनुमान लगाया जा सकता है कि उसे परम आनन्द की अनुभूति हो रही है.
बड़े बाबू चंद्रप्रकाश का प्रवचन सुन कर
असमंजस की स्थिति में हैं. वह तय नहीं कर पा रहे कि क्या करें, क्या न करें.
उपलेख: यह लेख एक सत्य घटना से प्रेरित
होकर कई वर्ष पहले लिखा था. शायद इस बीच स्थिति बदल गई हो, पर मुझे नहीं लगता कि
कोई सुधार हुआ होगा.