अकेलो जाय रे
वाजिद के कुछ अमूल्य वचन फिर सांझा कर रहा हूँ.
टेढ़ी पगड़ी बाँध झरोखा झांकते
तांता तुरग पिलाण चहूँटे डाकते
लारे चढ़ती फौज नगारे बाजते
वाजिद ये नर गए विलाय सिंह ज्यूँ गाजते.
दो-दो दीपक जोए सु मंदिर पोढ़ते
नारी सेती नेह पलक नहीं छोड़ते
तेल फुलेल लगाय क काया चाम की
हरि हाँ, वाजिद मर्द गर्द मिल गये दुहाई राम
की.
सिर पर लंबा केस चले गज चाल सी
हाथ गह्यां समसेर ढलकती ढाल सी
एता यह अभिमान कहाँ ठहराहिंगे
हरि हाँ, वाजिद ज्यूँ तीतर कू बाज़ झपट ले
जाहिंगे.
कारीगर करतार क हूंदर हद किया
दस दरवाज़ा राख शहर पैदा किया
नखसिख महल बनायक दीपक जोड़िया
हरि हाँ वाजिद, भीतर भरी भंगार क ऊपर रंग दिया.
काल फिरत है हाल रैणदिन लोई रे
हणै राव अरु रंक गिने नहिं कोई रे
यह दुनिया वाजिद बाट की दूब है
हरि हाँ, पाणी पहिले पाल बंधे तो खूब है.
सुकिरत लीनो साथ पड़ी रहे मातरा
लांबा पाँव पसार बिछाया सांथरा
लेय चल्या बनवास लगाईं लाय रे
हरि हाँ, वाजिद देखे सब परिवार अकेलो जाय रे
भूखो दुर्बल देखि नाहिं मुहं मोड़िये
जो हरि सारी देय तो आधी तोड़िये
दे आधी की आध अरध का कौर रे
हरि हाँ, वाजिद अन्न सरीखा पुण्य नहिं कोई और
रे.
वाजिद कह रहे हैं कि इस संसार में ऐसे भी अभिमानी लोग आये जो सिंहों
के सामान गरजते थे और हाथियों के समान जिनकी चाल थी. पर राम जी की कृपा से सब एक
दिन मिट्टी में मिल गए. चाहे राजा हो या रंक, काल के लिए सब बराबर हैं. और जब अंत
आएगा तो अकेले ही जाना होगा. लेकिन कर्म साथ रहेंगे.