हिजाब आंदोलन-असली मुद्दा
हिजाब को लेकर शुरू हुआ आंदोलन एक जगह से दूसरी जगह फ़ैल रहा है. मेन
स्ट्रीम मीडिया और सोशल मीडिया दोनों जगह इस पर खूब चर्चा हो रही है. बड़ी-बड़ी
बातें कही जा रही हैं और कई प्रकार के तर्क दिए जा रहे हैं. लेकिन यह सब बातें और
तर्क लोगों को भ्रमित करने के लिए ही हैं. आंदोलन करने वाले और उनका समर्थन करने
वाले बुद्धिजीवी या पत्रकार या नेता असली मुद्दे की ओर संकेत भी नहीं कर रहे.
असली मुद्दा क्या है? मेरी समझ में जो लोग यह आंदोलन कर रहे हैं और जो
पत्रकार, नेता, बुद्धिजीवी इस आंदोलन के समर्थन में खड़े हो गए हैं उन सब का मानना
है कि पवित्र कुरान और हदीस भारत के संविधान के ऊपर हैं. सीधे-सीधे कहा जाए तो उनकी
मांग का अर्थ है कि संविधान और संविधान के अंतर्गत बनाए क़ानून और नियमों के
अनुसार चलती संस्थाओं को अपने नियम-कानून बदलने होंगे अगर वह नियम-कानून, उनकी
दृष्टि में, पवित्र कुरान और हदीस के विपरीत हैं.
ऐसी बात किसी भी हिजाब आंदोलन समर्थक ने स्पष्ट रूप से नहीं कही है और
ऐसा उन लोगों ने सोच समझ कर किया है. यह लोग दिखलाना चाहते हैं कि वह सब संविधान
का सम्मान करते हैं.
लेकिन जब यह लोग मांग करते हैं कि संस्थाओं को अपने नियम बदलने होंगे
ताकि जो हिदायतें उन लोगों को पवित्र कुरान और हदीस से मिली हैं, उन हिदायतों का
पालन वह उन संस्थाओं में रहते हुए भी कर पायें तो इसका तात्पर्य यही है कि कानून और विभिन्न संस्थाओं के नियम
दूसरे दर्जे पर आते हैं.
अगर ऐसा नहीं है तो जो नियम-कानून संवैधानिक हैं और जिन्हें किसी
कोर्ट ने अभी तक असंवैधानिक घोषित नहीं किया है, उनका पालन करने में किसी को क्या
कठिनाई हो सकती है?
आज नहीं तो कल इस मुद्दे को किसी न किसी प्रकार में सुलझा लिया
जाएगा. लेकिन विचार करने की बात यह भी है कि हिजाब की हिदायत के अतिरिक्त क्या और भी
हिदायतें हैं जो एक सच्चे मुसलमान के लिए धर्म-संकट खड़ा करती हैं?
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