सड़क दुर्घटनाएं और हम
सरकारी आंकड़ों के अनुसार 2015 में लगभग 150000 लोगों की अलग-अलग सड़क दुर्घटनाओं में मृत्यु
हुई. दस वर्ष पहले, 2005 में, 94000 लोगों की सड़क दुर्घटनाओं में मृत्यु हुई थी.
यह आंकडें चौंकाने वालें हैं. पर अपने चारों ओर देख कर ऐसा लगता नहीं है कि
किसी को ज़रा सी भी चिंता या घबराहट हुई है.
हर दिन चार सौ लोगों का सड़क हादसों में मर जाना किसी भी सभ्य देश में एक अति
गंभीर समस्या मानी जाती और इस समस्या को लेकर सभी विचार-विमर्श कर रहे होते.
लेकिन इस देश में तो यह बात चर्चा का विषय भी नहीं है. और लगता नहीं है की
निकट भविष्य में स्थिति में कोई सुधार होगा. सबसे डराने वाली बात यह है कि आम
नागरिक भी सड़क पर अपनी-अपनी गाड़ियां चलाते
समय अपनी और अपने प्रियजनों की सुरक्षा को कोई ख़ास महत्व देते हैं.
सुबह की सैर करते समय मैंने कई बार लोगों को लाल-बत्ती की अवहेलना करते
देखा है, उलटी दिशा से गाड़ियों को चलते देखा है, स्कूल बसों और वैनों को अति तेज़
गति से चलते देखा है.
सबसे डराने वाला दृश्य तो तब होता है जब अपने स्कूटर या बाइक पर एक या दो
(और कभी-कभी तो तीन) बच्चों को बिठा कर एक पिता धड़ल्ले से, लाल-बत्ती की परवाह किये
बिना, अपनी गाड़ी को सड़क पर, कभी सही और कभी गलत दिशा में, दौड़ाता है.
ऐसा दृश्य मैंने एक बार नहीं, बीसियों बार देखा है. और आश्चर्य तो तब होता
है जब महिलाओं को भी, बच्चों को साथ लिए, ऐसे ही लापरवाह अंदाज़ में कार या स्कूटर
चलाते देखता हूँ. समझ में नहीं पाता कि यह लोग अपने बच्चों के जीवन के साथ ऐसा
खिलवाड़ कैसे कर लेते हैं.
ऐसे माता-पिता अपने बच्चों को क्या संस्कार दे रहे हैं, यह भी सोचने की बात
है. ऐसे ही लोगों के बच्चे अकसर सड़कों पर अपनी गाड़ियां सडकों पर लापरवाही से चलाते
हैं और आये दिन किसी न किसी को दुर्घटना में आहत कर देते हैं या मार डालते हैं.
दुर्घटनाएं तो चौबीसों घंटे घटती रहती हैं पर मैंने सुबह के समय की बात
इसलिये की क्योंकि सुबह के समय हज़ारों माता-पिता और लाखों बच्चे घरों से स्कूल
जाने के लिए निकलते हैं और एक सभ्य समाज से अपेक्षा की जा सकती है कि उस समय लोग कम
से कम बच्चों की सुरक्षा को लेकर सचेत होंगे.
गाड़ियों की संख्या हर दिन बढ़ती जा रही है. गाड़ियां चलाने के शिष्टाचार को
हम हर दिन भूलते जा रहे है, नियम कानून के प्रति हमारा सम्मान हर दिन घटता जा रहा
है. अगर इस वर्ष सड़क पर मरने वालों की संख्या दो लाख तक भी पहुँच जाती है तो मुझे
कोई आश्चर्य न होगा.
वाहन चलाने का कोई शिष्टाचार भी होता है, ऐसा सोचना भी हिंदुस्तान में पाप है..और जो नियम-क़ायदे की बात करे उससे बड़ा बेवक़ूफ़ तो पुलिस वालों तक को कोई नहीं लगता:(
ReplyDeletethanks
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