क्यों पनाह दी जाए रोहिंग्या शरणार्थीयों को?
अचानक देश में कई नेताओं, बुद्धिजीवियों, पत्रकारों, और ह्यूमन-राइट्स
वालों के मन में रोहिंग्या शरणार्थीयों के प्रति प्रेम उमड़ आया है. उन्हें लगता है
कि आंतरिक सुरक्षा को लेकर सरकार की चिंता बेमानी है.
सबसे पहले यह बात समझने वाली है कि जो लोग आज रोहिंग्या शरणार्थीयों के लिए आंसूं बहा रहे हैं उन में से अधिकतर वह
लोग हैं जो साल के चार-छह महीने विदेशों में रहना पसंद करते हैं, नई दिल्ली के
आलिशान सरकारी बंगलों में या दिल्ली की
पॉश कॉलोनियों में रहते हैं, पाँच-सितारा होटलों में आयोजित सम्मेलनों में भाग
लेते हैं और अपने उद्गारों से देश और सरकार को अनुगृहित करते हैं. इनके घरों पर
अकसर एक पट्टी लगी रहती जिस पर लिखा होता है ‘कुत्तों से सावधान’ या ‘रोब्बेर्स
विल बी शॉट’ (डाकुओं को गोली मार दी जायेगी)
अगर हम मान भी लें कि आंतरिक सुरक्षा को लेकर सरकार की चिंता तथ्यों पर
आधारित नहीं है या सरकार इस खतरे को अधिक ही महत्व दे रही तब भी प्रश्न तो उठता है
कि क्यों हम अपने देश में इन शरणार्थीयों को बसने दें? क्या हमने देश से गरीबी,
भुखमरी, जहालत, बीमारी को पूरी तरह से हटा दिया है जो अब हम संसार के अन्य पीड़ित
लोगों को शरण दे, उनका भरण-पोषण करना चाहते हैं?
वर्ल्ड बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार २०१३ में भारत में गरीब लोगों के संख्या सबसे अधिक
थी. संसार का हर तीसरा गरीब आदमी भारत में रहता था. लगभग अस्सी करोड़ लोग ‘इंटरनेशनल पावर्टी लाइन’ के नीचे थे और दिन में 115
रूपए से कम पर निर्वाह करते थे. भारत सरकार के मापदंडों के अनुसार कोई बाईस
करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे थे.
गरीबी रेखा के नीचे यह सब लोग उतना ही जीएसटी देते हैं जितना वह लोग जो
अपनी छुट्टियां विदेश में मनाने जाते हैं और रोहिंग्या शरणार्थीयों को लेकर सरकार
की आलोचना करते हैं. यह श्रेष्ठजन चाहे कुछ भी कहें पर कठोर सत्य तो यही है कि सरकार
का पहला कर्तव्य अपने देश के लोगों के प्रति होना चाहिए न कि उन लोगों के प्रति जो
अपने-अपने देशों में वहां के लोगों के साथ घुलमिल कर रह नहीं पा रहे? गरीब जनता से
वसूला टैक्स गरीबों के कल्याण के लिए ही खर्च होना चाहिए. अगर श्रेष्ठजन परोपकार
करना चाहते हैं तो उन्हें स्वेच्छा से कहना चाहिए कि रोहिंग्या शरणार्थीयों पर
होने वाला खर्च पूरा करने के लिए वह सब श्रेष्ठजन अधिक इनकम/ अन्य टैक्स भरने को
तैयार हैं.
आंतरिक सुरक्षा की जब बात आती है तो एक बात ध्यान देने योग्य है. कुछ
रोहिंग्या शरणार्थी म्यांमार से हज़ारों मील दूर जम्मू व लद्धाक में जा बसें हैं. परन्तु
कोई भी रोहिंग्या शरणार्थी कश्मीर घाटी में जाकर नहीं बसा. क्या ऐसा बस यूँही हो
रहा है या इसके पीछे किसी की कोई सोची समझी चाल है. मीडिया में इस बात को ज़रा भी
चर्चित नहीं किया गया
यह बात भी जान लेनी चाहिए कि म्यांमार ही एक अकेला देश नहीं है जहां से लोग
आंतरिक युद्ध या संघर्ष के कारण पलायन कर रहे हैं? अगर हमें ऐसे पीड़ित लोगों को
अपने देश में शरण देनी है तो हमें अपने दरवाज़े उन सब लोगों के लिए खोल देने चाहिए
जो अपने-अपने देशों में अत्याचार का शिकार हो रहे हैं, चाहे वह लोग सूडान में रहते
हों या इराक में.
पोस्ट-स्क्रिप्ट
नई दिल्ली में जो लोग रोहिंग्या शरणार्थीयों के समर्थन में खड़े हुए हैं, उन
श्रेष्ठजनों के घरों (महलों?) के आसपास गरीब लोगों का आना भी सम्भव नहीं है. न
आपको वहां झुग्गी-झोपड़ियां दिखेंगी, न ही साइकिल-रिक्शा चलते या फेरी लगते गरीब
लोग.
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