Wednesday, 11 May 2016

मेट्रिक का सर्टिफ़िकेट
मुकंदी लाल थोड़ा घबराये से थे. हाथ में एक पर्चा लिए पत्नी से बोले, ‘तुम्हारे प्रमाण पत्र कहाँ हैं? आर टी आई के अंतर्गत किसी ने तुम्हारा मेट्रिक का सर्टिफिकेट माँगा है. दफ्तर वालों ने कहा है कि दो दिन में मुझे सब कागज़ात जमा कराने होंगे.’
‘मेरे सर्टिफ़िकेट से तुम्हारे दफ्तर वालों का क्या लेना देना?’ पत्नी ने झुंझला कर कहा.
‘तुम समझती नहीं हो. ऐसी बात तो मोदी जी भी नहीं पूछ सकते, हमारी क्या बिसात. आर टी आई कानून के बारे में कुछ जानती भी हो? हर नागरिक के पास अधिकार है कि वह कोई भी जानकारी प्राप्त कर सकता है. अब तुम झमेला मत करो, बस यह बताओ कि तुम्हारा मेट्रिक का सर्टिफ़िकेट कहाँ है.’
‘तुम से किसने कहा कि मैंने मेट्रिक पास किया था?’
‘क्यों? तुम्हारे बाबूजी ने ही कहा था. मैं भी वहीं था जब बात हुई थी.’
‘नहीं, तुम लोग गलत समझे, हम तो चौथी में ही स्कूल छोड़ दिए थे.’
‘तुम ने मेट्रिक पास नहीं किया. आज तक हमें धोखे में रखा. उस दिन तो तुम बिन्नू से कह रही थी कि लिख दो की तुम बी ए पास हो. अब कह रही हो कि तुम मेट्रिक भी नहीं हो, सिर्फ चौथी..........  और बिन्नू...........’
‘तुम अपनी बात करो. तुम्हारे अपने प्रमाण पत्र कौन से ठीक हैं. तुम्हारे मेट्रिक के सर्टिफ़िकेट में क्या नाम लिखा है, कुछ याद भी है.’
अचानक मुकंदी लाल पचीस साल पीछे पहुँच गए. भर्ती हुए दो साल से ऊपर हो गए थे और उन्हें एक भी इन्क्रीमेंट न मिला था. साहस कर एक दिन अकाउंटेंट से पूछा, उसने कहा, ‘क्या सर्विस बुक बन गयी है.’ ‘वह क्या होता है?’ ‘तुम यह भी नहीं जानते की हर कर्मचारी की सर्विस बुक होती है. सर्विस बुक बनने के बाद ही इन्क्रीमेंट मिलती है. कल अपने सारे सर्टिफिकेट ले आना. सर्विस बुक बना दूँगा.’
अगले दिन अकाउंटेंट ने सर्टिफ़िकेट देख कर कहा, ‘गड़बड़ है. तुम ने भर्ती के समय फॉर्म में अपना नाम लिखा था, मुकंदी लाल. लेकिन तुम्हारे मेट्रिक के सर्टिफ़िकेट में नाम लिखा है, मुकंदी लाल घसीटा. यह तुम्हारा सर्टिफ़िकेट ही है?’
‘सर्टिफ़िकेट तो मेरा ही है. बस वह घसीटा शब्द कुछ अच्छा न लगता था. इस कारण भर्ती के समय फॉर्म में नहीं लिखा........’
‘पर यह तो गलत है. सर्विस बुक में तो वही नाम आयेगा जो सर्टिफ़िकेट में दर्ज है. पर वह नाम रिकॉर्ड में नहीं है.’
‘अब आप ही कोई तरीका ढूंढो. न मैं अपना सर्टिफ़िकेट बदल सकता हूँ, न दफ्तर का रिकॉर्ड.’
अकाउंटेंट भले-मानस थे, किसी तरह सर्विस बुक बना दी. नाम भी वही लिखा जो उन्हें पसंद था, मुकंदी लाल. अनुभाग अधिकारी ने हस्ताक्षर भी कर दिये. एक-आध महीने के बाद इन्क्रीमेंट भी मिल गया. और मुकंदी लाल भूल गए कि सर्टिफ़िकेट में क्या नाम लिखा था.  
‘यह बात तो मुझे ध्यान में ही न रही. अगर किसी ने आर टी आई का सहारा ले कर मेरा सर्टिफ़िकेट मांग लिया तो मेरी तो नौकरी छूट जाएगी.’
‘यही बात मैं समझाने की कोशिश कर रही हूँ. तुम हो की मेरे बाबू जी को ही कोस रहे हो, वह सच कहे थे. तुम लोग ही समझ न सके तो उनका क्या दोष.’

मुकंदी लाल कुछ सुन-समझ न रहे थे. वह तो इस चिंता में थे कि कहीं किसी ने उनके मेट्रिक के सर्टिफ़िकेट की कापी मांग ली तो फिर क्या होगा.    

1 comment:

  1. Lol! Who can know the perils more than you and me who have worked in Govt. Though we never did anything wrong, still we always feared this domacles' sword called RTI.

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