भूत-बँगला (एक कहानी)
‘एक करोड़? इस घर के
लिए? आप मज़ाक तो नहीं कर रहे? इस घर के लिए कोई पचास लाख भी न दे.’
‘ऐसा क्यों? क्यों
कोई इस घर के लिए पचास लाख भी देने को तैयार न होगा?’ उनकी वाणी से लग रहा था कि
मेरी बात ने उन्हें आहत किया था. मैं थोड़ा सतर्क हो गया. मैंने उनके हाव-भाव जानने
का प्रयास क्या और ठिठक कर रह गया.
मैंने देखा कि उनका
चेहरा कुछ अलग-सा दिख रहा था, जैसे कि उनके चेहरे पर मोम की एक परत चढ़ी हुई हो. पर
ऐसा कैसे हो सकता था, मैं समझ न पा रहा था.
‘वो बात ऐसी है कि ......
शायद यह एक अफवाह ही हो...... पर लोग कहते हैं कि.........’मैं बात पूरी करने मैं
झिझक रहा था.
‘जो कहना चाह रहे हो
कह डालो. इस तरह शब्दों का जाल मत बुनो.’ उन्होंने थोड़ा गुस्से से कहा. उनकी आँखें
निर्जीव सी लग रहीं थीं.
‘इस घर मैं भूतों का
वास है......ऐसा लोग कहते हैं.’
‘और तुम क्या कहते
हो? तुम्हें भी लगता है कि यह एक भूत-बँगला है?’
‘मैं नहीं जानता
कि......कि सच क्या है.’
‘सच यह है कि मैं एक
पुलिस अधिकारी हूँ और मैंने कई शक्तिशाली लोगों की शत्रुता मोल ले ली है. मेरा
इकलौता बेटा विदेश चला गया है. वह वहीं बस
गया है. अब मैंने भी, नौकरी छोड़, विदेश जाने का निर्णय लिया है. इसीलिए यह घर
बेचना चाहता हूँ. पर यह लोग नहीं चाहते कि मुझे उचित दाम मिले. यह मुझे दंड देना
चाहते हैं.’
‘आप जो मांग रहे हैं
वह कोई उचित मूल्य तो नहीं.’ घर मुझे अच्छा लगा था और मैं इसे लेना चाहता था. मुझे
भूत-प्रेतों में कोई विश्वास नहीं है, इस कारण मैं अफ़वाहों से डरने वाला न था.
‘हम मोल-तोल भी कर सकते
हैं.’
‘अगर इन शक्तिशाली
लोगों को मेरा यह घर लेना अच्छा न लगा तो वह लोग मेरे भी शत्रु बन सकते हैं?’
‘ऐसा कुछ न होगा.
उनकी शत्रुता मुझ से है. वह मेरे पीछे आयेंगे. पर मैं उन्हें मिलूंगा नहीं.
‘मैं सिर्फ साठ लाख
दे पाउँगा.’
‘मुझे मंज़ूर है. यह
घर तुम्हारा हुआ.’
वह इतनी तत्परता से
मेरा प्रस्ताव मान लेंगे, मैंने सोचा न था. मैं थोडा हतप्रभ रह गया. लेक सिटी में
ऐसा घर साठ लाख में मिलना असम्भव था. वह अड़ जाते तो मैं अस्सी लाख भी दे देता.
मैं तय न कर पाया कि
मुझे प्रसन्न होना चाहिए या चिंतित. एक अनजानी आशंका ने मुझे घेर लिया. कुछ था जो मुझे
अपनी समझ के परे लग रहा था.
दस-एक दिन के बाद एक
मित्र का फोन आया. वह जानता था कि मैं एक घर लेना चाहता हूँ. उसने बताया कि लेक
सिटी में एक घर बिकाऊ था, अगर मैं चाहूँ तो घर देख कर निर्णय ले सकता हूँ.
‘पर मैंने तो पहले
ही उसी घर के लिए सौदा पक्का कर लिया है. दो-चार दिनों में पहली किस्त भी दे
आऊंगा.’
मेरी बात सुन मित्र
आश्चर्यचकित हो गया. उसने पूछा, ‘किस के साथ सौदा पक्का किया तुमने? उस घर का
मालिक तो यहाँ था ही नहीं, दो दिन पहले ही वह विदेश से लौटा है.’
‘विदेश से लौटा है?
दो दिन पहले? यह कैसे हो सकता है?’
‘वह दो वर्ष भारत से
चला गया था, अपने पिता की मृत्यु के बाद. वहीं बस गया. अब लौटा है. वह भी सिर्फ घर
को बेचने के लिए.’
उसकी बात सुन मुझे थक्का
लगा. मुझे लगा कि मेरे हाथ कांप रहे थे. मैंने सहमी आवाज़ में पूछा, ‘उसके पिता की
मृत्यु कैसे हुई? कोई जानकारी है तुम्हारे पास?’
‘उसके पिता पुलिस
अधिकारी थे, कुछ शक्तिशाली लोगों से उनकी शत्रुता हो गयी थी. उन्हीं लोगों ने उनकी
हत्या कर दी. बहुत ही निर्मम हत्या थी,
उन्हें पिघली हुई मोम में डुबा कर मार डाला. आज तक कोई भी हत्यारा...........’
मैं कुछ सुन-समझ न
पा रहा था. मेरी आँखों के सामने एक चेहरा था जिस पर मोम की परत चढ़ी हुई थी.
© आइ बी अरोड़ा
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