Monday, 23 May 2016

जोकर
‘वह सर्कस में काम करते हैं, वह एक जोकर हैं.’
‘वो लापता क्यों हो गया है?’ पुलिस इंस्पेक्टर का वाणी उकताहट से भरी हुई थी.
‘मुझे नहीं पता, तीन दिन पहले वह, अपना काम पूरा कर, सर्कस से घर लौट रहे थे. लेकिन वह घर नहीं पहुंचे. हम सब बहुत चिंतित है. बच्चों ने तो कल से कुछ खाया भी नहीं, वह सब डरे हुए हैं.’
‘क्या तुम ने सर्कस वालों से बात की? उसके साथियों से या दोस्तों से कोई पूछताछ की?’
‘हाँ, पर इतना ही पता चला कि वह उस रात शो समाप्त होने के बाद घर चले गए थे. इसके अतिरिक्त कोई कुछ नहीं जानता.’
‘तुम जाओ, हम मामले की छानबीन करेंगे......जितना जल्दी हो सके,’ इतना कह इंस्पेक्टर किसी और से बात करने लगा. जोकर की पत्नी असमंजस में डूबी कुछ पल वहीं खड़ी रही. इंस्पेक्टर ने उसे उखड़ी हुई दृष्टि से देखा तो थोड़ी सहमी, थोड़ी घबराई वहां से चल दी. कई आशंकायें मन में उठ रहीं थीं. उसे भय था कि उसके पति को ढूँढने हेतु पुलिस कुछ भी न करेगी. उसे लग रहा था कि पति के साथ कोई अनहोनी घटना अवश्य घटी है.
उनके विवाह को अभी पाँच वर्ष ही हुए थे, पर वह दोनों तो बचपन से ही एक दूसरे के साथ थे. उसके बिना अकेले जीने की तो वह कल्पना भी न कर सकती थी.
पुलिस ने थोड़ी-बहुत जांच की. सर्कस के निकट स्थित एक दस- मंजिला इमारत की छत पर उन्हें जोकर के रंग-बिरंगे, भड़कीले जूते मिले. पुलिस को यह बात बहुत ही आश्चर्यजनक लगी, पर वह किसी निष्कर्ष पर न पहुँच पायी.
एक दिन सर्कस के एक असंतुष्ट कर्मचारी ने पुलिस इंस्पेक्टर के पास चुपके से आकर बताया कि जोकर एक ऐसा अकेला कर्मचारी न था जो लापता हुआ था, पिछले एक वर्ष में तीन अन्य कर्मचारी भी लापता हो गए थे. उन के परिवारों को शायद इस बात का पता भी नहीं चला, एक बेचारे का तो कोई परिवार था भी नहीं.
‘सर, अगर मेरा नाम किसी को न बताएं तो मैं आपको एक बात बता सकता हूँ. इस सर्कस के तीन पार्टनर हैं. इन में से एक पार्टनर बहुत ही बुरा आदमी है. कर्मचारियों के साथ बहुत गलत व्यवहार करता है. मर्दों के साथ, औरतों के साथ. आप समझ रहें हैं न कि मैं क्या कह रहा हूँ, बहुत ही कामुक आदमी है वह शैतान है.’
पुलिस इंस्पेक्टर ने इस सुराग की कोई ख़ास छानबीन न की. उसे तो संदिग्ध व्यक्ति से पैसे ऐंठनें के एक सुनहरा अवसर मिल गया था. वह इस अवसर को चुकने वाला न था.
छह माह बीत गए. उसे सूचना मिली कि उसका इकलौता बेटा सड़क  दुर्घटना में घायल हो गया था. उसे रात आठ बजे सूचना मिली और रात ग्यारह बजे की ट्रेन से वह घर की ओर चल दिया.
ट्रेन में उसे कब नींद आई उसे पता ही न चला. वह गहरी नींद में था कि अचानक गाड़ी रुक गयी. उसकी नींद टूट गयी. रात के दो बज रहे थे. उसने खिड़की से बाहर झांका. बाहर अँधेरा था, कोई सुनसान जगह थी. उसने अंदाज़ लगाया कि गाड़ी किसी स्टेशन पर न रुकी थी.
तभी उसकी नज़र सामने वाले बर्थ पर पड़ी. उस बर्थ पर एक व्यक्ति, बड़े अजीब से कपडे पहने बैठा था, सिर पर एक टोप पहन रखा था.  चेहरे पर कोई मुखौटा सा पहन रखा था. नाक पर लाल रंग लगा रखा था.
‘सर्कस का जोकर लगता है,’ पुलिस इंस्पेक्टर ने मन ही मन कहा.
‘आपको ऐसा नहीं करना चाहिए था,’ उस व्यक्ति ने कहा, उसकी आवाज़ बहुत धीमी और बर्फ की तरह ठंडी थी.
‘क्या कहा तुमने?’ पुलिस इंस्पेक्टर ने तेज़, झल्लाई हुई आवाज़ में कहा.
‘आप कितने नीच व्यक्ति हैं? आपने एक हत्यारे के साथ समझौता कर लिया, आपने ज़रा भी नहीं सोचा उन भाग्यहीनों के बारे में? इसका परिणाम अच्छा न होगा, इतना तो निश्चित है. जीवन भर आप पछतायेंगें, मेरी बात याद रखना.’
पुलिस इंस्पेक्टर अवाक हो गया. उसके दिल की धड़कन तेज़ हो गयी. उसने कुछ कहने का प्रयास क्या पर शब्दों ने उसका साथ न दिया. तभी ट्रेन चलने लगी. वह व्यक्ति उठ खड़ा हुआ. अचानक पुलिस इंस्पेक्टर ने देखा कि वह जोकर-सा दिखाई देने वाला व्यक्ति नगें पाँव था. वह चलती ट्रेन से बाहर निकल गया.
सुबह पाँच बजे ट्रेन पुलिस इंस्पेक्टर के नगर पहुंची. उसने घर जाने के बजाय अस्पताल जाना ही उचित समझा और सीधा अस्पताल चल दिया.
वहां पता चला कि उसका बेटा मौत के मुंह से लौट कर आया था. सड़क दुर्घटना बहुत ही भयानक थी. वह अपने मित्र के साथ उसके बाइक पर सवार था. मित्र की तो दुर्घटना-स्थल पर ही मृत्यु हो गयी थी.
उसने डॉक्टर का बार-बार धन्यवाद दिया.
‘धन्यवाद मुझे नहीं उस भले-मानस को दीजिये जो समय रहते आपके बेटे को अस्पताल ले आया. अगर थोड़ी भी देर हो जाती तो शायद हम चाह कर भी इसे बचा न पाते.’
‘इसे अस्पताल लेकर कौन आया था?’
‘कोई सर्कस वाला लग रहा था. वह तो सारी रात यहाँ रुका रहा. आपकी पत्नी की ऐसी दशा न थी कि बेटे की देखभाल कर पाती या भागदौड़ कर पाती. इस कारण वह बेचारा रात भर यहीं रुका रहा. अभी-अभी गया है. अगर आप पाँच मिनट पहले पहुँचते तो आप से मुलाकात हो जाती.’
‘कौन था वह?’ पुलिस इंस्पेक्टर ने सहमी सी आवाज़ में पूछा.
‘कोई जोकर-सा था......सर्कस का. सर पर टोप, नाक पर लाल रंग. पर एक बात थोड़ी अजीब लगी, उसने कोई जूते न पहन रखे थे. नंगे पाँव था.’
भौंच्च्का-सा खड़ा पुलिस इंस्पेक्टर फटी-फटी आँखों से डॉक्टर को देखने लगा. उसकी टाँगे हल्के से कांप रहीं थीं.
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© आइ बी अरोड़ा


2 comments:

  1. The good people are always good, even after death. A to Z is over,the ghosts are still haunting.

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