Tuesday 28 July 2015

राष्ट्र हित और राजनेता.
कल कहीं पढ़ा कि ‘राष्ट्र के हित में सांसदों को.....’
इसके आगे पढ़ने की इच्छा ही न हुई.
आज कोई व्यक्ति राजनीति में आता है तो सिर्फ सत्ता के लिए, यह बात हर नागरिक को समझ लेनी चाहिये. कई नेता हैं जो सुबह से शाम तक इस बात का ढ़िंढ़ोरा पीटते हैं कि वह देश और समाज कल्याण के लिए राजनीति में हैं. कहने को कोई कुछ भी कहे, पर खेल सत्ता का है. जीते-जागते उदाहरण हमारे आस-पास ही हैं.
पिछले पचास वर्षों में नानाजी देशमुख के अतिरिक्त किसी भी राजनेता ने अपनी इच्छा से राजनीति से संन्यास नहीं लिया. हर राजनेता जीवन के अंतिम क्षण तक सत्ता और राजनीति में रहना चाहता है, वह अलग बात है कि कभी-कभार जनता किसी नेता को हटा देती है या फिर नेता जी का स्वास्थ्य ही साथ छोड़ देता है. परन्तु स्वयं किसी ने भी राजनीति से संन्यास नहीं लिया. इतना ही नहीं, हर किसी का प्रयास होता है कि अपने जीते जी अपने बेटे, बेटी, बहु या दामाद को अपना उत्तराधिकारी बना दे. राजनीतिक परिवारों की बढती संख्या इस बात सीधा प्रमाण है.
हर राजनीतिक दल चुनाव में अपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों को अपना उम्मीदवार बनाता है. एक भी दल ऐसा नहीं है जिसने यह तय किया हो कि, कानून कुछ भी कहे, वह किसी भी अपराधिक छवि वाले व्यक्ति को अपने दल में स्थान न देंगे. हर एक के पास तर्क हैं, ऐसा न करने के. पर सारे तर्क लोगों को उलझाने के लिए हैं. कुछ वर्ष पहले एक लेख में पढ़ा था कि जहां चीन की पार्लियामेंट में लगभग चालीस प्रतिशत सदस्य टेक्नोक्रेट्स हैं वहां भारत की संसद में लगभग चालीस प्रतिशत सदस्य ऐसे हैं जिनके विरुद्ध छोटे-बड़े अपराधिक मामले दर्ज हैं. अपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोग क्या देश हित के लिए राजनीति में आते हैं?
राजनीति में संपन्न लोगों की संख्या भी बढ़ रही है,  जिस अनुपात में देश में गरीब लोग हैं क्या उस अनुपात में गरीब सांसद और विधायक हैं? कितने राजनीतिक दल हैं जो एक गरीब व्यक्ति को राजनीति में आने का अवसर देते हैं और चुनाव में उम्मीदवार बनाते हैं? व्योपार और उद्योग से जुड़े लोगों का राजनीति के प्रति लगाव क्या देश हित के कारण है? 
संसद वर्ष में लगभग नब्बे से सौ दिन कार्य करती है, परन्तु आप अगर टीवी पर संसद की कार्यवाही देखें तो पायेंगे की अधिकतर समय बहुत कम सांसद ही लोक सभा या राज्य सभा में विराजमान होते हैं. कई बार तो प्रश्न पूछने वाले सांसद भी उपस्थित नहीं होते. मुझे एक घटना का स्मरण हो रहा है, लाल किले को लेकर एक प्रश्न आया था. रक्षा मंत्रालय इस प्रश्न को लेकर थोड़ा चिंतित था, हम लोगों ने उत्तर बनाने में बहुत समय लगाया था. कई बैठकें हुईं थीं, अफसरों की एक टीम लाल किले का निरिक्षण भी करने गई थी, पर जब लोक सभा में उत्तर देने का समय आया तो जिन सांसद महोदय ने प्रश्न पूछा था, लोकसभा में आये ही नहीं.
कोई भी राजनेता इस बात को स्वीकार न करेगा पर सत्य तो यही है कि  आज अन्य व्यवसायों की भांति राजनीति भी एक व्यवसाय है, ऐसा व्यवसाय  जिसमें प्रवेश पाने के लिए योग्यता से अघिक वंशावली महत्वपूर्ण है, और अगर कोई भाग्यशाली बिना किसी वंशावली के इस व्यवसाय में प्रवेश पा भी जाता है तो वह एक नई वंशावली के बीज डाल देता है. उसके वंशजों का राजनीति में आना सुनिश्चित हो जाता है.


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