Tuesday 1 September 2015

इन्द्राणी मुखर्जी और मीडिया सर्कस
जिस देश में हर दिन चार सौ से अधिक लोगों की सड़क दुर्घटनाओं में मृत्यु ही जाती है और हर वर्ष इन दुर्घटनाओं के कारण हज़ारों परिवार विनाश के कगार तक पहुँच जाते हैं, जिस देश में हर दिन कोई आठ सौ महिलाओं और बच्चियों के साथ हत्या, बलात्कार, यौन उत्पीडन इत्यादि के अपराध घटित होते हैं, जिस देश में हज़ारों बच्चे लापता हो जाते हैं और इन लापता बच्चियों से कई को यौन व्यापार में धकेल दिया जाता है. जिस देश में लाखों लोग भुखमरी का शिकार हैं, किसान आत्म-हत्याएं कर रहे हैं, संसद के एक सदन पूरा स्तर हंगामें में खो देता है, आये दिन आतंकवादी इत्यादि लोगों और पुलिस पर हमला करते हैं उस देश में पिछले कई दिनों से मीडिया में एक ही चर्चा का विषय है, इंद्रानी मुखर्जी.
एक तरह से देखा जाये तो ठीक ही है. जब एंटरटेनमेंट चैनल लोगों का एंटरटेनमेंट नहीं कर पा रहे, कॉमेडी चैनल लोगों को हंसा नहीं पा रहे, न्यूज़ चैनल्स की विश्वसनीयता पर लोगों की  अधिक आस्था  नहीं है तो ऐसे में किसी न्यूज़ चैनल के लिए टी आर पी बढ़ाने का क्या उपाय हो सकता है. अब राधे माँ पर कितने दिन तक आप चर्चा कर सकते हैं? सिर्फ एक राधे माँ के कितने भेद खोज-खोज कर आप लोगों को बता सकते हैं?
 इंद्रानी मुखर्जी तो दैवीय वरदान है न्यूज़ चैनल्स के लिए. यहाँ तो हर पात्र अपने में एक सनसनी है, एक अनबुझी पहेली है. कितने भेद हैं जो उजागर होने के लिए तड़प रहे हैं. जितना रोमांच भारत-पाक एक दिवसीय क्रिकेट मैच में होता है उससे कई गुणा अधिक रोमांच इस ‘मैच’ में है, जो हर न्यूज़ चैनल दर्शकों के साथ खेल रहा है.

पर तरस आता ऐसे समाज पर जिसे ऐसे दुर्भाग्यपूर्ण घटना कर्म में न्यूज़ (एंटरटेनमेंट कहना ही उचित होगा) दिखाई देती है, ऐसी न्यूज़ जिस पर घंटों बहस हो सकती है.

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