Monday, 22 February 2016

ज़ख्म
जुझारू और खूंखार आतंकवादियों से लड़ते हुए भी सैनिक के उत्साह और जोश में रत्तीभर कमी न आई. वह तो कब से इस दिन की प्रतीक्षा कर रहा था, अपनी जन्मभूमि के लिए मर मिटने का जज्बा उसके भीतर उफान मार रहा था.
उसे छह गोलियां लगीं पर वह तब तक लड़ता रहा जब तक कि उसके साथी उसे जंग के मैदान से उठा कर नहीं ले गये. कई दिन जीवन और मृत्यु के बीच वह झूलता रहा. अंत में मृत्यु भी उसके अदम्य साहस के सामने हार गई और दरवाज़े से ही लौट गई.
उसके चेहरे पर एक मुस्कान थी. वह जानता था कि वह एक विजेता था.
अस्पताल में उसे अभी कुछ दिन और रुकना था. कई दिनों के बाद उसने टी वी देखा और चुपचाप देखता ही रहा.
किसी चैनल पर एक महानुभाव कह रहे थे, ‘अगर मैं कहूँ कि देश के टुकड़े हो जाने चाहिये तो इसे राजद्रोह कैसे माना जा सकता है. अगर आप मुझे ऐसा कहने से रोकते हैं तो यह मेरे अधिकारों का हनन होगा.’
‘किसी को अधिकार नहीं की मेरी देशभक्ति पर प्रश्नचिंह लगाये. इस देश में कई लोग समझते हैं कि अफजल गुरु एक शहीद है, यह उनकी धारणा हैं और ऐसा सोचने और कहने का अधिकार उनसे कोई नहीं छीन सकता. आप उन्हें देशद्रोही नहीं कह सकते.........’
सैनिक ने रिमोट का बटन दबाया.
‘आप किसी को भी तिरंगे का सम्मान करने के लिए मजबूर नहीं कर सकते. कुछ लोग तो तिरंगे का भी भगवाकरण कर रहे हैं. देशभक्ति का भगवाकरण कर रहे हैं. हमारे मन में देश प्रेम है पर तिरंगा फहराना या न फहराना हमारा अपना अधिकार है...............’
सैनिक ने फिर रिमोट का बटन दबा.
‘यह देश तो कभी एक राष्ट्र रहा नहीं. पूरे विश्व में राष्ट्रवाद की परिभाषा बदल रही. यहाँ कुछ लोग राष्ट्रवाद की नई परिभाषा लोगों पर लाद रहे हैं यह जानते हुए भी कि यहाँ हर एक लिए राष्ट्रवाद के अलग मायने हैं और ऐसा होना भी चाहिये.................’
बटन फिर दबा.
‘अभी-अभी सूचना मिली है कि आतंकवादियों से लड़ते हुए सेना का एक कप्तान शहीद हुआ है. वह अपने माता-पिता की इकलौती संतान .........’

सैनिक को लगा कि उसके ज़ख्म, जो लगभग भर चुके थे, फिर से हरे हो गये हैं.

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