Tuesday, 2 February 2016


मुक्ति
भीतर आते समय वो अपने में इतना उलझा हुआ था कि उसने ध्यान ही न दिया कि घर की सब बत्तियां बुझीं हुईं थीं. उसने कमरे की बत्ती तो जला दी पर अपने में खोया ही रहा.
‘कब मुझे इस नरक से मुक्ति मिलेगी? कुछ तो करना होगा? कोई तो निर्णय लेना होगा मुझे.’
जैसे ही उसने फ्रिज के अंदर से पानी की बोतल निकाली उसने फ़र्श पर फैले लहू को देखा. उसका हाथ कांप गया और पानी की बोतल हाथ से फिसल कर नीचे गिर गई.
कमरे में एक ओर उसकी पत्नी फ़र्श पर गिरी हुई थी. चाकू मार कर किसी ने उसकी हत्या कर दी थी. यह वही चाकू था जिस से उसने सुबह पत्नी को धमकाया था. चाकू हाथ में लेकर उसने चिल्ला कर पत्नी से कहा था कि वह उसकी जान ले लेगा.
सुबह वह दोनों फिर झगड़ पड़े थे. ऐसा कई बार हुआ था, पर आज वह अपना आपा खो बैठा. वह जानता था कि वह कभी भी पत्नी पर हाथ नहीं उठा सकता. पत्नी भी यह बात जानती थी. इसी कारण वह उसे उकसाया करती थी. आज पहली बार उसने चाकू दिखा कर पत्नी को धमकाया था.
उसने तुरंत पुलिस को सूचित का दिया, पर फोन रखते ही भय की एक लहर उसके मन में उठने लगी.
पुलिस तो उसी पर संदेह करेगी. आज दिन भर वह यूँही सड़कों पर भटकता रहा था. अपने ऑफिस भी न गया था. इतना ही नहीं, ग़ुस्से और कड़ुवाहट के कारण उसने अपने ऑफिस में किसी को सूचित भी न किया था कि वह छुट्टी पर रहेगा.
कोई भी ऐसा नहीं था जो इस बात का प्रमाण दे पाता कि वह दिन भर घर से बाहर रहा था और पत्नी की हत्या से उसका कुछ लेना-देना न था.
‘क्या पता इस चाक़ू पर मेरी ही अँगुलियों के निशान हों? अगर हत्यारे ने अपने हाथ पर दस्ताने पहने होंगे तो अवश्य ही मेरी अँगुलियों के निशान इस पर पुलिस को मिलेंगे. दरवाज़ा भीतर से बंद या खुला था? क्या मैंने अपनी चाबी से दरवाज़ा खोला था?’ कई प्रश्न उसको आंदोलित करने लगे.
अचानक उसके मन में आया कि पुलिस के आने से पहले ही चाक़ू पर लगे सब निशान उसे मिटा देने चाहिये.
वह चाक़ू उठाने वाला ही था कि दरवाज़े की घंटी बज उठी. एक घोर निराशा और घबराहट ने उसे घेर लिया.
दरवाज़े की ओर बढ़ते हुए एक ही प्रश्न उसके मन में था, ‘कब उसे नरक से मुक्ति मिलेगी?’

  

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