Saturday, 6 February 2016

पुल
‘इस नदी पर कोई पुल नहीं है, ऐसा क्यों है?’
‘बेटा, यहाँ एक पुल हुआ करता था. कई वर्ष पहले एक बार नदी में भयंकर बाढ़ आई. उस बाढ़ में पुल टूट कर बह गया. लेकिन पुल का बह जाना हम जंगल वासियों के लिए एक वरदान ही था.’
‘कितने वर्ष पहले यह सब हुआ?”
‘बहुत वर्ष पहले; तब मैं भी एक बच्चा था, जैसे आज तुम हो.’
‘लेकिन पुल का बह जाना हमारे लिए वरदान कैसे हो सकता है?’
‘हम सब विनाश से बच गये.’
नन्हा शावक कुछ समझा नहीं.
‘बेटा, नदी के उस ओर मनुष्य रहते हैं.  मनुष्य कमज़ोर और दब्बू होते हैं. भेड़िये के एक छोटे से बच्चे को देख कर भी मनुष्य भयभीत हो जाते हैं और भाग खड़े होते हैं. लेकिन उनके पास कुछ ऐसे साधन हैं जिनकी सहायता से वह किसी भी प्राणी को मार सकते हैं. किसी वन के प्राणी के निकट आये बिना ही मनुष्य उस प्राणी को मार डालते हैं. वह खाने के लिए नहीं मारते, उन्हें तो बस जानवरों को मारने में आनंद आता, बिना सोचे समझे पशुओं को मारते जाते हैं.’
‘ऐसा घिनौना काम तो कोई नीच प्राणी ही कर सकता है.’
‘तुम एक नन्हें शावक हो फिर भी तुम्हें यह बात समझ आती है, परन्तु मनुष्यों को यह बात समझ नहीं आती. आश्चर्य की बात तो यह है कि मनुष्य अपने-आप को सब से बुद्धिमान समझते हैं.’
‘मैं तो कभी भी मनुष्य न बनना चाहूँगा,’ शावक ने अपनी नाक सिकुड़ते हुए कहा. ‘अच्छा हुआ वह पुल टूट गया. अगर न टूटा होता तो अब तक इस वन के सारे प्राणियों को मनुष्यों ने मार डाला होता.’
शेर और उसका नन्हा शावक धीरे-धीरे घने वन के भीतर चले गये.



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