Monday 10 August 2015

संसद में गतिरोध – एक तिरछा विचार
कुछ वर्ष पुरानी बात है. मैं टीवी पर संसद की कार्यवाही देख रहा था. लोक सभा में किसी मुद्दे पर चर्चा हो रही थी. डॉक्टर मुरली मनोहर जोशी जी बोल रहे थे. लोक सभा में बैठे सभी सदस्य व मंत्री बड़े ध्यान से श्रीमान जोशी जी को सुन रहे थे.
सब सदस्यों का इतने ध्यान से उनका भाषण सुनने का एक कारण था. डॉक्टर जोशी जी के सामने कई दस्तावेज़ और कागज़ात रखे थे. अपनी बात कहते हुए, जिस तरह वह उन दस्तावेजों वगेरह का उल्लेख कर रहे थे उस से साफ़ दिखता था कि उन सब दस्तावेज़ों का वह पूरा अध्ययन कर के आये थे. उनका हर तर्क तथ्यों पर आधारित था और हर तर्क का उसे मुद्दे से सीधा संबंध था जिस पर वह अपने विचार रख रहे थे. कोई आश्चर्य की बात न थी कि सत्ता पक्ष के सदस्य भी, बिना रोक-टोक किये, पूरी तन्मयता से उनकी बात सुन रहे थे.
आज कितने ऐसे सांसद हैं जो इतना परिश्रम करने को तैयार हैं. उससे भी महत्वपूर्ण बात है कि कितने ऐसे सदस्य हैं जिनमें ऐसी योग्यता है की वह अलग-अलग दस्तावेज़ों का अध्ययन कर, तथ्यों पर आधारित एक तर्कसंगत भाषण तैयार कर पायें; एक ऐसा भाषण जो चर्चा को एक दिशा दे पाये; एक ऐसा भाषण जिसे अन्य सदस्य और मंत्री सुनने को आतुर हों.
अब अगर कोई सम्मानित सदस्य संसद में हो रही किसी चर्चा में उस क्षमता से भाग नहीं ले सकता जिस तरह डॉक्टर मुरली मनोहर जोशी सरीखे सांसद चर्चा में भाग लेते हैं तो ऐसे सम्मानित सदस्य के लिए संसद में गतिरोध एक अच्छा विकल्प है जिसके द्वारा वह, बिना कोई चर्चा किये, चर्चा में रह सकता है.
क्या हमें निराश हो जाना चाहिये कि हमारी संसद उस भांति कार्य नहीं कर पाती जिस भांति इंग्लैंड में करती है. अभी हमारी संसद की आयु सत्तर वर्ष भी नहीं हुई. इंग्लैंड के संसद का इतिहास बहुत लंबा है. अतः यह अपेक्षा करना गलत होगा कि हमारी संसद इंग्लैंड की  संसद के समान कार्य करेगी.
चिंता का विषय यह हो सकता है कि आज के कई राजनेताओं में संसद को सुचारू रूप से चलाने की इच्छा-शक्ति दिखाई नहीं दे रही. हम सब पर निर्भर करता है कि स्थिति के बदलने के लिए कुछ करें. हमें ही अपने चुने हुए सांसदों से पूछना होगा कि उनकी संसदीय प्रणाली में कितनी आस्था है और सिर्फ उन नेताओं को अगले चुनाव में वोट दें जिन नेताओं में  संसद को सुचारू रूप से चलाने की योग्यता और दृड़ इच्छा-शक्ति है.

4 comments:

  1. Even if parliament is not so old,the MPs are al adults,they should have better sense.

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    1. so let's put sense in them by holding them accountable.

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