Wednesday, 26 January 2022

 

राष्ट्रीय  समर स्मारक

“यह जो राष्ट्रीय समर स्मारक बनाया गया है इस को लेकर कई लोग परेशान हैं. पर मुझे तो किसी महानुभाव का तर्क समझ नहीं आया. यह सब क्या है?” मुकन्दी लाल जी ने पूछा.

“किस को परेशानी है? उन्हीं लोगों को परेशानी है जिन्हें यह स्मारक बासठ या पैंसठ की लड़ाई के बाद ही बना देना चाहिए था. उन्होंने तो इकहत्तर के बाद भी नहीं बनाया. अब अपनी विफलता छिपाने का इससे बेहतर उपाय क्या हो सकता है कि जो कुछ हो रहा है उसे पर संदेह करो, प्रश्न चिन्ह लगाओ. .”

“आश्चर्य है, हमारे नेता लोग अपने लिए तो गली-गली में स्मारक खड़े कर देते हैं, जहाँ देखो किसी न किसी नेता की मूर्ति दिखाई दे जायेगी. कहीं किसी नेता के सम्मान में कोई स्टेडियम तो कहीं कोई अस्पताल है. किसी के नाम पर यूनिवर्सिटी, किसी के नाम पर कोई संस्थान,” मुकन्दी लाल बोले.

“श्रीमान, हमारे नेता तो अपने आप को भारत रत्न दे देते हैं.’

“सच में? मुझे इस बात का पता न था,” मुकन्दी लाल जी आश्चर्यचकित थे.

“ पर यही सच है.”

“लगता है सेना का सम्मान करने में थोड़ी हिचक थी. नहीं?” मुकन्दी लाल ने कहा.

“शायद. आपको पता है, बाहर किसी देश में सेना का अपमान कर कोई व्यक्ति राजनीति में नहीं टिक सकता, एक दिन भी नहीं. क्या कोई अमरीकी या अँगरेज़ राजनेता अपने सेना अध्यक्ष को सड़क का गुंडा कहने का साहस कर सकता है?”

“अरे, वहाँ तो ऐसी बात कहने की कोई कल्पना भी नहीं कर सकता.”

“पर हमारे नेता कर सकते हैं.”

“मुझे लगता है, इसे मुद्दा न बनाते और चुप रहते तो बेहतर होता. नहीं?” मुकन्दी लाल ने कहा.

“श्रीमान, कुछ कहने के लिए जितनी समझ चाहिए उससे अधिक समझ चाहिए चुप रहने के लिए.”

मेरी बात सुन कर मुकन्दी लाल खिलखिला कर हँस पड़े.

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