Friday, 7 January 2022

                                                              सत्यमेव.......

(तीन अंकों में समाप्य  लंबी कहानी का पहला अंक)

आज शाम को क्या कर रहे हो?”

“कुछ ख़ास नहीं, सर.”

“तो आज की शाम हमारे साथ बिताओ. आठ बजे जिमखाना पहुँच जाना. इधर काम में मैं इतना व्यस्त रहा कि कहीं बाहर जाना न हो सका. तुम आओगे तो मुझे भी बहाना मिल जाएगा. सुधा को अभी फोन करके बता दो. वह कोई अपना प्रोग्राम न बना ले.....और उसके बिना तो तुम कहीं जाओगे नहीं.”

सुधा की बात रैना साहब ने जानबूझ कर छेड़ी थी. वह जानते थे कि सुधा मायके बैठी थी. जिस दिन उसने कहा था कि हीरों का हार सहानी  को लौटाना होगा, उसी दिन वह मायके चली गई थी.

उसने सुधा को समझने का एक असफल प्रयास किया था.

“तुम जानती हो कि सहानी  ने हार क्यों दिया है?”

‘क्यों दिया है? ज़रा मैं भी तो सुनूँ.”

“उसका केस मेरे पास है है, मैंने बताया था तुम्हें. उसके विरुद्ध अनुशासनिक कार्यवाई होनी तय है. वह किसी तरह इस मामले से झुटकारा पाना चाहता है. वह चाहता है कि मैं केस को दबा दूँ. मुझ पर कई प्रकार से दबाव डाला जा रहा है. यह उपहार भी उसने इसी वजह से दिया है. अन्यथा हमारा उसके साथ क्या लेना-देना है. वह मुझे खरीदना चाहता है पर मैं बिकाऊ नहीं हूँ.” उसने यह बात जिस लहजे से कई उससे वह स्वयं भी चौंक गया था.

“तुम अपने को इतना महत्व क्यों देते हो? यह उपहार उसने मुझे दिया है.मुझे अपनी बहन समान मानता है. मेरा इतना आदर करता है. तुम्हारे कारण वह कितनी मुसीबत में है, मुझे सब पता है. फिर भी उसने मुझे यह उपहार दिया तो तुम्हें बुरा लग रहा है.”

“बात वह नहीं है जो तुम समझ रही हो. उसने मुझे कह दिया था कि दस लाख का हार वह तुम्हें दे चुका है. सिर्फ यह सोच कर कि मैं केस को बंद करने की अनुशंसा करूँगा. अगर मैंने ऐसा न किया तो हार हमें लौटाना होगा. इतना ही नहीं उसने धमकाया था कि अगर मैंने उसका कहा न मन तो वह ब्याज सहित हार वापस लेना जानता है.”

“तो मान लो उसकी बात. इतना भी नहीं कर सकते तुम मेरे लिए? सोने की एक चेन तो तुम ने आजतक लेकर दी नहीं. अब बिना मांगे किसी ने हीरों का हर दिया है तो तुम लौटाने के लिए कह रहे हो?.........तुम किस प्रकार के प्राणी हो?”
“हार तो तुम्हें लौटाना ही होगा. तुम्हें अच्छा लगे या बुरा, मैं कुछ नहीं कर सकता.”

मन ही मन वह कुढ़ भी रहा था. वह जानता था कि बात बिगड़ती जा रही थी और उसने ऐसा नहीं चाहा था. वो जानता था कि सुधा उसके निर्णय को सरलता से स्वीकार नहीं करेगी लेकिन वह यह भी अनुमान न लगा पा रहा था कि वह क्या करेगी. शायद फिर मायके जाकर बैठ जाए.

और सुधा उसी समय मायके चली गई. इतना ही नहीं उसने फोन करके सहानी  की सब कुछ बता भी दिया. और सहानी  ने तुरन्त रैना साहब को सूचित कर दिया था.

रैना साहब का काम करने के अपनी अलग शैली थी. कार्यालय में घट रही  हर बात की जानकारी तो वह रखते ही थे, हर किसी की व्यक्तिगत बातों की जानकारी रखना भी वह अनिवार्य समझते थे. उनका विश्वास था कि हर जानकारी कभी न कभी सफलता की सीढ़ी बनाई जा सकती है.

“सर, सुधा तो मायके गई हुई है,” न चाहते हुए भी वह कह बैठा. परन्तु रैना साहब के हावभाव में कोई परिवर्तन न आया. बोले, “कोई बात नहीं. मैं भी तो अकेला ही आऊँगा. लेकिन देर मत करना. तुम तो जानते ही हो, मैं ठीक नौ बजे डिनर लेना पसंद करता हूँ.”

वो अच्छी तरह जानता था कि रैना साहब उसे जिमखाना क्लब क्यों बुला रहे थे. सहानी  को हार लौटा कर उसने स्पष्ट कर दिया था कि उसके विरुद्ध कार्यवाई रोकी या दबाई नहीं जायेगी. रैना साहब को यह बात चुभ गई थी. उन्होंने मंत्री जी को आश्वासन दे रखा था कि मामला रफा-दफा कर दिया जाएगा और उन पर कोई आंच नहीं आएगी. “सर, मैंने तो पहले भी कई बार सहानी  को फटकार लगाईं थी,” रैना साहब ने मंत्री जी से कहा था. “इसने अपनी लापरवाही से हम सब को मुसीबत में डाल दिया है. लड़का मेहनती पर थोडा ना-समझ है. वास्तव में अनुभव की कमी है. धीरे-धीरे सब सीख जाएगा. आप निश्चिन्त रहें. मैं सब संभाल लूंगा.”

मंत्री जी के गले से एक ऐसी आवाज़ निकली थी जिसका कुछ भी अर्थ लगाया जा सकता था. रैना साहब चौकस हो गए थे.

“क्या लोगे?” रैना साहब ने बैठते ही पूछा. वह अभी जिमखाना क्लब का सदस्य न बना था. बनना भी नहीं चाहता था, अन्यथा जिस पद पर वह था, तुरंत सदस्यता पा सकता था.

“जूस, सर.”

“अरे यहाँ तो औरतें भी जूस नहीं पीतीं.”

“मुझे पता है, पर आप मुझे क्षमा करें.”

“जीवन में इतनी अनम्यता भी अच्छी नहीं होती. हमारा व्यवहार समय और वातावरण के अनुकूल होना चाहिए. इतने अड़ियल बने रहोगे तो पीछे छूट जाओगे या फिर....” उन्होंने रुक कर उसे घूर कर देखा और फिर कहा, “टूट जाओगे. थोडा समझबूझ से काम लेना सीखो.”

“आपकी नसीहत समझने का प्रयास करूँगा, पर सर, अभी तो जूस से संतोष करूँगा.”

“यही तो सारी समस्या है. तुम कहते तो कि तुम प्रयास  करोगे, परन्तु तुम्हारा व्यवहार तो वैसा ही रहता है.  अब सहानी  की बात ही लो. तुम जानते हो वह मंत्री जी के भाई का साला है, मंत्री जी तो उसे अपना छोटा भाई ही समझते हैं. पर तुम हो कि अपनी ज़िद पर अड़े हो.उसके विरुद्ध कार्यवाही हो भी गई तो देश में कौन सी क्रान्ति आ जायेगी? एक बात समझ लो, इस देश में जैसा होता रहा है, वैसा ही होता रहेगा. मान लो मंत्री जी ने त्यागपत्र दे भी दिया तो क्या बदल जायेगा? इस मंत्री की जगह कोई दूसरा आ जायेगा. उसके भाई का साला न होगा तो उसका अपना साला होगा या फिर बेटा या भतीजा.  यह मंत्री जी तो भले इंसान है अगला मंत्री क्रिमिनल बैकग्राउंड का भी हो सकता है. तब क्या करोग?”

“आप शायद गलत समझ रहे हैं. मैं कोई क्रांति नहीं करना चाहता. बस नियमों के अनुसार अपना कम करना चाहता हूँ. ऐसे ही संस्कार मुझे अपने पिता से मिले हैं. इस केस में आप जैसा चाहते हैं मैं वैसा करूँगा, बस आप लिखित आदेश दे दें.”

रैना साहब ने उसे घूर कर देखा और कहा, “मेरी उमर के हो जाओगे तो तुम्हें समझ आएगा कि हम तो बस कठपुतलियाँ हैं. आदेश कोई देता है, हुक्म किसी और का चलता है. तुम्हें क्या लगता है, मैं विभाग का अध्यक्ष हूँ तो सब कुछ मेरे कहने से होता है? नहीं श्रीमान, ऐसा बिलकुल भी नहीं है. यहाँ हम सब प्यादे हैं. वास्तव में हमारी स्थिति तो शतरंज के प्यादों से भी बुरी है, शतरंज का प्यादा आखिरी घर पहुँच कर वज़ीर तो बन जाता है. हम वज़ीर बन कर भी प्यादे ही रहते हैं. तुम भाग्यशाली हो, नियमों की बात कर सकते हो, ईमानदारी का डंका पीट सकते हो. मंत्री जी का सामना तो मुझे करना पड़ता है. जवाबदेही तो मेरी है.”

“...............”

“अब चुप रहने से बात खत्म हो जायेगी क्या? मैंने मंत्री जी को आश्वासन दिया है कि सहानी  के विरुद्ध कोई कार्यवाई नहीं होगी. अब निर्णय तुम्हारे हाथ में है. हाँ, तुम चाहो तो मैं बीस  में बात तय कर सकता हूँ.”

“आपको कितने देगा?” वह आवेश में कह तो बैठा पर उसी पल उसे लगा कि उसने बहुत बड़ी भूल कर दी थी. रैना साहब से शत्रुता मोल लेकर उसने अपनी मुसीबत बड़ा दी थी.

“देगा नहीं, दे दिए हैं-एक करोड़!” रैना साहब ने बिना हिचकिचाहट के कहा.

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