Thursday 6 January 2022

 भूत-बँगला

“तुम यही घर क्यों लेना चाहते हो? पत्नी ने थोड़ा गुस्से से कहा.

“क्योंकि यह एक बहुत अच्छा घर है. घर क्या, यह तो एक बँगला है. इतने कम दाम में ऐसा घर इस नगर में फिर कभी न मिलेगा, पति ने समझाते हुए कहा.

“सब कहते हैं कि इस घर में भूतों का वास है. कोई यहाँ रहना नहीं चाहता, इसी कारण कब से खाली पड़ा है. पर तुम हो कि अपनी ही बात पर अड़े हो.

“सब कोरी बकवास है. भूत-वूत कुछ नहीं होते. लोग मन में एक वहम पाल लेते हैं और सब उसी पर विश्वास करने लगते हैं.

“तो घर का मालिक हमारे साथ क्यों नहीं आया? उसे साथ आ कर स्वयं हमें यह घर दिखलाना चाहिये था. जानते हो क्यों? उसे भी यहाँ आने में डर लगता होगा. बस चाबी भिजवा दी.”

“अरे, उसे किसी काम से अचानक बाहर जाना पड़ गया है. अब तुम अपना मन ख़राब मत करो. यह बहुत सुंदर घर है. हम यही घर लेंगे, मैंने निर्णय ले लिया है.

इतना कह पति ने घर का दरवाज़ा खोला.

घर बहुत सुंदर था. बच्चे तो ख़ुशी से उछल पड़े. पत्नी भी प्रशंसा करने से अपने को रोक न पाई. घर देख कर भूत-प्रेतों वाली बात वह भूल ही गई.

पति प्रसन्नता से खिल उठा. उसे विश्वास था कि सब को घर बहुत पसंद आयेगा और पत्नी भी उसकी बात मान जायेगी. 

लगभग एक घंटा वह उस घर में रुके.जब वापस चलने लगे तो बेटे ने कहा, “पापा, घर कितना साफ़ है, जैसे आज ही किसी ने झाड़ू-पोछा किया हो.”

“अरे, इस ओर तो मेरा ध्यान ही नहीं गया. पर अच्छा है घर साफ़ है. तुम्हारी अम्मा को भी लगता है पसंद आ गया है,” पति ने कहा और फिर पत्नी से पूछा, “तो क्या हाँ कर दूं या अभी कुछ और सोच-विचार करना है?

“तुम कह रहे थे कि तुम ने निर्णय ले लिया है तो मैं क्या कह सकती हूँ, वह मुस्कराते हुए बोली.

पति दरवाज़ा बंद करने लगा. पत्नी और बच्चे बाहर लॉन में उसकी प्रतीक्षा करने लगे.

पति ताला बंद कर रहा था कि अचानक उसे भीतर से कुछ आवाजें सुनाई दीं. उसे लगा कि भीतर कोई बातें कर रहा था.

“लगता है यह लोग यहाँ रहने आ जायेंगे. अच्छा किया जो पूरा घर मैंने आज सुबह ही साफ़ कर दिया था.”

“आना ही चाहिये. वर्षों से यहाँ अकेले रह रहे हैं. मन उकता गया है.”

“अब की बार तुम कोई गड़बड़ नहीं करना, पिछली बार तुम ने बच्चों को इतना डरा दिया था कि वह लोग रातों-रात ही घर छोड़ कर भाग गये थे.

“मैं तो उन बच्चों का थोड़ा मनोरंजन करना चाहता था. न जाने क्यों वह भयभीत हो गये.”

“लोग नहीं जानते कि हम कितने सीधे-साधे हैं. वह तो सब भूतों को एक जैसा ही समझते हैं.

ताला बंद करते हुए पति के हाथ कांप रहे थे. किसी तरह उसने ताला बंद किया. लॉन में आकर उसने पत्नी से कहा, मैं सोच रहा था की क्यों  न हम एक-दो घर और देख लें, आखिर इतना पैसा लगाना है, थोड़ा सोच लें............”

पत्नी ने अनुभव किया कि पति की आवाज़ थरथरा रही थी और बात करते समय वह उसके बजाय घर के दरवाज़े की ओर देख रहा था.

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2 comments:

  1. पढ़ते हुए भूतनाथ मूवी याद आ गयी ।
    फॉलोवर का गेजेट लगाने का शुक्रिया । अब आपका ब्लॉग मेरी रीडिंग लिस्ट में आ गया है । इस ब्लॉग तक आपने " आपका ब्लॉग " पर जो पोस्ट डाली थी उससे पहुंची थी । शुक्रिया ।

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    1. धन्यवाद . भूतनाथ मूवी देखी नहीं, पर एक कहानी पढ़ी चार्ल्स डिकन्स की, उससे प्रेरित हो कर यह छोटी कहानी रची थी.

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