खाली बँगला-एक कहानी (भाग 1)
तीनों के जीवन की शुरुआत एक समान ही हुई थी. तीनों ने एक साथ एक ही
स्कूल में प्रवेश लिया था. फिर दो साल बाद ही उन्होंने स्कूल जाना छोड़ दिया था,
यद्यपि स्कूल छोड़ने का निर्णय उनका अपना निर्णय न था. तीनों में से किसी के पिता
कभी स्कूल न गए थे. उन्हें लगता था कि शिक्षा समय और पैसे दोनों की बरबादी का कारण
थी. तीनों के पिताओं ने उन्हें स्कूल जाने से एक दिन रोक दिया था और परिवार के लिए
कुछ पैसे कमाने के लिए उन्हें बाध्य किया था.
तीनों कचरा इकट्ठा करने के काम में लग गये थे. परन्तु खूब मेहनत करने
के बावजूद उन्हें हर बार अच्छे पैसे न मिलते थे, इसलिए घर पहुँचते ही डांट खाने को
मिलती थी. इस स्थिति से बचने के लिए वह धीरे-धीरे वह छोटे-मोटे अपराध करने लगे थे.
कभी किसी बच्चे से कोई मूल्यवान चीज़ छीन लेते थे, कभी किसी दूकान या फेरीवाले का
कोई सामान चुरा लेते थे. शुरू-शुरू में वह अकसर पकड़े जाते थे और उनकी खूब पिटाई
होती थी. पिता की गालियाँ भी सुनने को मिलती थी, माँ भी पीटती थी. लेकिन धीरे-धीरे
वह कुशल होते गये और बारह-तेरह के
होते-होते पक्के चोर बन गये थे..
सोलह पार करते-करते वह बहुत महत्वाकांक्षी हो गये थे. अब छोटे-मोटे
अपराध करना उन्हें अच्छा न लगता था. उतने पैसे भी न जुटा पाते थे जिन से वह अपनी
सारी ज़रूरतें पूरी कर पाते. इधर आयु के साथ उनकी ज़रूरतें भी बढ़ गई थी. तीनों की
गर्ल-फ्रेंड्स भी थीं और उन लड़कियों पर भी उन्हें बहुत खर्चा करना पड़ता था.
“हमें अपने लिए एक अलग जगह चाहिए. दस लोगों के साथ उस एक कमरे के घर
में मैं अब नहीं रह सकता,” यह बात उसने कही जिसने अपना नाम गब्बर रख लिया था. उसने
शोले फिल्म बीस बार देखी थी.
“मैं सहमत हूँ. कब तक माँ-बाप की गोद में बैठे रहेंगे. अब हमें अलग
रहना चाहिए. हमें किसी पर निर्भर नहीं रहना चाहिए,” यह वह लड़का था जो एक प्रसिद्ध
खिलाड़ी का प्रशंसक था और उसने अपना नाम सचीन रख लिया था.
“तो क्या सोचा है तुम लोगों ने? या हमेशा की तरह तुम समझ रहे हो कि
मैं ही कोई उपाय ढूँढ़ निकालूँगा,” यह वो था जिसने कई माह गोविंदा की चाल-ढाल की
नकल करने की कोशिश की थी. उसने अपने प्रिय अभिनेता समान नृत्य करने की भी बहुत
कोशिश की थी, पर बिना किसी सफलता के. उसके मित्र उसे गोविंदा बुलाने लगे थे.
“कोई सुझाव दे सकते हो?” गब्बर ने पूछा.
“मैं भी कई दिनों से सोच रहा था कि हमें कोई अच्छी जगह ढूँढ़ कर वहाँ
रहने का प्रबंध करना चाहिए. अब हमें बड़ा सोचना और बड़ी योजनायें बनानी चाहिए
और इसके लिए ज़रूरी है कि हम बड़े लोगों की तरह किसी बड़े घर में रहें,” गोविंदा
हमेशा बड़े सपने देखता था.
“क्या सोचा है तुमने?” सचीन ने बेताबी से
कहा.
“मार्क्स रोड पर एक बँगला. वह कई सालों से
खाली पड़ा है. उसका मालिक बूढ़ा है और किसी गाँव में रहता है. उसका बेटा कहीं विदेश
में है. बूढ़ा मकान बेचना चाहता है पर डरता है कि कोई उसे ठग न ले. घर का पिछला
दरवाज़ा एक गली में खुलता है जो आमतौर पर सुनसान रहती है. उस दरवाज़े को खोलने का तरीका
मुझे आता है. और ताक झाँक करने वालों से निपटने के लिए मैंने एक शानदार तरकीब सोची
है.”
“तुम्हें यह सब कैसे पता चला?” सचीन ने
पूछा.
“तुम्हारी तरह मैं अपना खाली समय व्यर्थ
नहीं गँवाता हूँ,” गोविंदा ने नाक सिकुड़ते हुए कहा.
“उस घर में कोई चौकीदार या कोई नौकर नहीं
है?” गब्बर ने पूछा.
“नहीं. लेकिन सड़क के दूसरी ओर स्थित घर के
मालिक के पास बंगले की चाबी है. लेकिन वह भी बूढ़ा है और कभी-कभार ही बंगले को
देखने आता है.”
“और तुम्हारी शानदार तरकीब क्या है?” गब्बर ने पूछा.
“हम अफवाह फैला देंगे कि उस बंगले में भूतों
का वास है. किसी अँधेरी रात में हम उस बंगले के अंदर जायेंगे, खूब हो-हल्ला करेंगे
और किसी के आने से पहले ही वहाँ से नौ दो ग्यारह हो जायेंगे. अगर कोई उसी समय या
दिन के समय जांच करने आया तो उसे वहाँ ऐसी चीज़ें मिलेंगी जिसे देख कर वह भयभीत हो
जाएगा.”
“कैसी चीज़ें?” सचीन ने पूछा.
“किसी इंसान की खोपड़ी या बिना सिर के मुर्गे
या खून से भरा हुआ कटोरा. यहाँ सब वहमी लोग हैं. ऐसी चीज़ें देखकर लोग समझेंगे कि
वह भूत-बँगला है. एक बार यह अफवाह फ़ैल गई तो कोई उधर आने की हिम्मत न करेगा और हम
मज़े से उस बंगले में रहना शुरू कर देंगे.”
“यह तो अद्भुत योजना है. चलो, अब देरी नहीं
कर सकते. आज से ही काम पर लग जाते हैं,”
यह बात गब्बर ने कही थी. वह हमेशा ऐसे व्यवहार करता था कि जैसे वही उनका लीडर था.
“चार दिन बाद अमावस्या है. उसी रात हम
गृह-प्रवेश करेंगे. गृह प्रवेश!.” गोविंदा ने कहा और अपनी बात पर स्वयं ही खिलखिला
कर हँस दिया .
कुशल जासूसों की तरह तीनों ने अलग-अलग जाकर बंगले
के अड़ोस-पड़ोस की खूब छानबीन की. सभी
रास्तों को अच्छे से पहचान लिया. बंगले के पीछे की गली उन्हें हमेशा सुनसान ही
मिली, इस बात से वह बहुत उत्साहित हुए.
अमावस्या की रात बारह बजे वह बंगले के अंदर
आये. खूब हो-हल्ला किया और किसी के आने से पहले ही वहाँ से खिसक गये. जाने से पहले
घर के अंदर वह एक बकरी का सिर छोड़ गये. बकरी के सिर पर सिन्दूर लगा था और जिस जगह
सिर रखा था वहाँ भी सचीन ने सिंदूर से कुछ अनोखी आकृतियाँ बना दी थीं.
बातूनी नौकरों, भोले-भाले फेरीवालों और
लापरवाह चौकीदारों से जानकारी पाना गोविंदा के लिए बहुत सरल था. वह इस काम में खूब
माहिर था और बिना संदेह पैदा किये वह सब बातें जान लेता था. उसे पता चला कि खाली
बंगले को लेकर कई अफवाहें फैल रही थी. कोई कह रहा था कि वहाँ लंबे समय से भूतों का
डेरा था. किसी ने कहा कि पिछली अमावस्या की रात वहाँ भूत नाच रहे थे. सिंह साहब ने
(जिनके पास घर की चाबी थी) जब भीतर जाकर देखा था तो उन्हें बिना सिर का एक बड़ा, काला
मुर्गा मिला था.
“गोविंदा, तुम्हारी योजना तो पूरी तरह सफल
हुई,” गब्बर ने उसकी पीठ ठोंकते हुए कहा.
“लेकिन हम तो वहाँ बकरी का सिर रख कर आये
थे,” सचीन ने कहा.
“लोगों के मन में जो आता है वह कह देते हैं.
कोई बंगले के अंदर थोड़ा गया था देखने के लिये. सब सुनी-सुनाई बातों पर विश्वास कर
लेते हैं,” गब्बर बोला.
कुछ दिनों बाद एक अँधेरी रात में वह फिर घर
के अंदर गये. इस बार भी उन्होंने खूब हो-हल्ला किया और मरी हुई गिलहरियाँ वहाँ छोड़
आये.
बंगले के आस-पड़ोस में सबको विश्वास हो गया
कि वह एक भूत बँगला था. इस बार लोगों ने गोविंदा को बताया कि बंगले के अंदर खून से
लथपथ बकरी का सिर पाया गया था.
“आश्चर्य है, हम पिछली बार बकरी का सिर वहाँ
रख कर आये थे. वह इस बार पाया गया. मरी हुई गिलहरियों का क्या हुआ?” सचीन ने कहा.
“क्या फर्क पड़ता है? बकरी का सिर पिछली बार
मिला या इस बार मिला, मिला तो सही. सब कुछ हमारी योजना के अनुसार हो रहा है. अब हम
उस घर में रहने के लिए जा सकते हैं.” गब्बर ने बड़े घमंड से कहा.
कुछ दिनों बाद वह उस बगले में रहने के लिए
चले आये. यह एक आलिशान बँगला था पर उसका रख-रखाव अच्छा न था. महीनों से वहाँ सफाई
भी न हुई थी. उन्होंने पूरे घर की छानबीन की. उनकी प्रसन्नता और आश्चर्य की सीमा न
रही जब उन्हें एक गुप्त दरवाज़ा मिला जो एक पार्क की ओर खुलता था. रात के समय वह
पार्क पूरी तरह सुनसान हो जाता था.
“यह तो कमाल हो गया. अंदर-बाहर जाने के लिए
यहाँ गुप्त रास्ता भी है. धन्य है बंगले का मालिक,” गब्बर बोला.
“सच में, कितनी अनोखी बात है,” सचीन ने कहा.
“अब कौन सी बड़ी योजना तुम दोनों ने सोच है?”
गब्बर ने आदेश सा देते हुए कहा.
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