अखिलेश जी का जिन्ना प्रेम
अखिलेश यादव जी के कहना है कि जिन्ना
भी महात्मा गाँधी और सरदार पटेल समान ही महान स्वतंत्रता सेनानी थे.
और अब उनका यह भी कहना है कि जो लोग यह
बात कहने के लिए उनकी आलोचना कर रहे हैं, उन लोगों को इतिहास का ज्ञान नहीं.
देखा जाए तो यह भी चर्चा का विषय हो
सकता है. अखिलेश जी ने शायद भारत के इतिहास का अध्ययन किया हो, पर विचार करने वाली
बात यह है कि उन्होंने किसके द्वारा गढ़ित भारत का इतिहास पढ़ा है.
अखिलेश जी के जिन्ना प्रेम से हम यह
निष्कर्ष तो निकाल ही सकते हैं कि आज भी इस देश में हमारे नेता (और कई
लेफ्ट-लिबरल) यह मानते हैं कि भारत के मुसलमानों के मन में जिन्ना के लिए बहुत आदर
और सम्मान है. इसलिए जिन्ना का गुणगान कर, वह ऐसे मुसलमानों का विश्वास (और आने
वाले चुनाव में उनके वोट) जीत सकते हैं.
अब इन लोगों की समस्या यह है कि २०१४
से कई हिन्दू वोटर जातिगत राजनीति से ऊपर उठ कर वोट देने लगे हैं. अभी तक सेक्युलर
पार्टियों और लेफ्ट-लिबरल लोगों की रणनीति रही है कि एक ओर मुसलमानों को एक जुट
में वोट देने के लिए प्रेरित करें, दूसरी ओर हिन्दुओं को जाति, भाषा, क्षेत्र,
रंग, आर्थिक स्थिति वगेरह वगेरह के आधार पर बांटा जाए. यू पी और बिहार के चुनावों
में जाति बहुत महत्वपूर्ण रही है. इसलिए इन लोगों की यह रणनीति लंबे समय तक कारगर
रही.
पर २०१४ के बाद से कई लोग जाति से हट
कर वोट देने लगे हैं. यह परिवर्तन इनके लिए खतरे की घंटी है, क्योंकि अगर दस
प्रतिशत वोटर भी जातिगत राजनीति को ठुकरा देते हैं तो यह एक बड़ा स्विंग होगा जिससे
आने वाले राजनीति पूरी तरह बदल सकती है.
शायद इसी आशंका के कारण जिन्ना का
महिमामंडन करना पड़ा होगा.
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