स्टैंड-अप कमेडियन
“यह वीरदास ने क्या कह दिया? आश्चर्य
होता है कि लोग किस हद तक गिर सकते हैं. जब स्वामी............” मुकन्दी लाल बिना रुके बोले
जा रहे थे. मैंने बीच में टोका, “रुकिए, आप यह क्या कहने जा रहे हैं? आप किस की
तुलना किस के साथ करने जा रहे हैं.”
“क्या मतलब?” मुकन्दी लाल जी की त्योरी
चढ़ गई.
“कभी सिंह की तुलना लकड़बग्घे के साथ की
जा सकती है?”
मुकन्दी लाल जी ने अपनी जीभ काट ली,
“भयंकर भूल होने जा रही थी.”
“जी......और एक बात कहूँ, मुझे तो लगता
है कि दोष इस जोकर का नहीं है, दोष हम सब का है. हमें न अपनी सभ्यता पर गर्व है न
अपने सनातनी संस्कारों में आस्था. यह आदमी भी तो इस समाज का ही तो हिस्सा है, कोई
हम से भिन्न थोड़ा ही है. परन्तु इतना तो स्वीकार करना पड़ेगा कि जो उसका उद्देश्य
था वह तो उसने पूरा कर ही लिया.”
“क्या उद्देश्य था उसका?”
“वही जो हर उस आदमी का होता है जो कभी
राम को अपशब्द कहता है तो कभी गांधी को, सस्ते में प्रसिद्धि पाना. अब देखिए, कल
तक गिने-चुने लोग ही उस जोकर के बारे में जानते थे, आज बड़े-बड़े महानुभाव उसके
समर्थन में खड़े ही गये हैं. और हम दोनों भी तो उसी की चर्चा कर रहे हैं.”
“बात तो आप सही कह रहे हैं,” मुकन्दी
लाल जी बोले. “सच कहूँ तो मैंने भी उसका नाम न सुना था पर अब यु-ट्यूब पर उसके
दो-चार विडियो देख चुका हूँ. यह उसके अपशब्दों का ही तो करिश्मा है.”
“उसकी कॉमेडी कैसी लगी?” मैंने पूछा
क्योंकि मैंने भी उसका कोई विडियो नहीं देखा है.
“कॉमेडी? मुझे तो उन लोगों पर तरस आया
जो उसकी वाहियात बातों पर हँस रहे थे. या फिर मजबूरी में हँसने का ढोंग कर रहे
थे.”
“मुझे लगता है जिस आदमी में न लेखक
बनने की योग्यता होती है और न एक्टर बनने की, वह स्टैंड-अप कमेडियन बन जाता है.”
“सही कहा आपने,” मुकन्दी लाल जी ने
हँसते हुए कहा.
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