खाली बँगला-एक कहानी (अंतिम भाग )
“मेरे मन में एक योजना है,” गोविंदा बोला.
“हम किसी धनी व्यक्ति के बच्चे का अपहरण करेंगे. क्या तुमने वह महलनुमा घर देखा है
जो इस सड़क के अंतिम छोर पर है?”
“हाँ.....शायद,” सचीन और गब्बर एक साथ बोले.
“वह महल पी कुमार का है.”
“वही जो प्रसिद्ध गर्म मसालों का शहंशाह
है?” सचीन ने पूछा.
“हाँ, और पिछले सप्ताह ही उसने पाँच करोड़ की
एक शानदार कार खरीदी है. बहुत पैसा है उसके पास. उसका एक लड़का है, सात-आठ साल का
होगा. उस लड़के की सुरक्षा को लेकर सब खूब लापरवाह हैं. हम उस लड़के का अपहरण कर
सकते हैं. पी कुमार अपने बच्चे से बहुत प्यार करता है. वह फिरौती में कोई भी रकम देने
को तैयार हो जाएगा, शायद एक करोड़ भी.”
गोविंदा के मित्रों को उसकी योजना अच्छी लगी.
उन्होंने बच्चे को भूत बंगले में रखने का पूरा बन्दोबस्त कर लिया. उन्होंने अपहरण
का दो बार रिहर्सल भी की. अपनी योजना पर खूब चर्चा की. और जितनी भी खामियाँ उन्हें
दिखाई दीं उन्हें सुधारने का पूरा प्रयास किया.
जब वह पूरी तरह संतुष्ट हो गये तो उन्होंने
एक शाम बच्चे का अपहरण कर लिया और गुप्त दरवाज़े से उसे भूत बंगले के अंदर ले आये.
बंगले के अंदर उन्होंने बच्चे को सुला कर रखने
की बात सोच राखी थी. इसी कारण उन्होंने फ्रूट जूस के पैकेट में नींद की दवा मिला
दी थी. गब्बर ने सचीन से कहा कि झटपट फ्रूट जूस के एक पैकेट लेकर आये. लेकिन जब
सचीन ने किचन की अलमारी खोली तो डर कर वह पीछे हट गया. अलमारी के अंदर दो मरी हुई
गिलहरियाँ थीं जिन पर सिंदूर लगा था.
वह भाग कर गब्बर के पास आया. “यह क्या हो
रहा है? अलमारी में मरी हुई गिलहरियाँ किसने रखीं?” उसने चीखते हुए पूछा.
गब्बर हैरान हुआ. “क्या बकवास कर रहे हो?
हटो, मुझे देखने दो.”
गब्बर ने अलमारी खोली वहाँ सिर्फ खाने-पीने
का सामान था, जूस के पैकेट और चॉकलेट और बिस्कुट.
अलमारी में कोई मरी हुई गिलहरियाँ न थीं. उसने सचीन को घूर कर देखा. सचीन
को अपनी आँखों पर विश्वास न हो रहा था.
“मसखरापन छोड़ो और जो काम दिया जाता है उसे
ठीक से करो. अगर हम ने ज़रा सी भी गलती कर दी तो जीवन भर जेल में सड़ना पड़ेगा,
तुम्हें भी और हमें भी.” गब्बर ने गुर्रा कर कहा.
सचीन को कुछ समझ न आया. उसे पक्का विश्वास
था कि उसने अलमारी में मरी हुई गिलहरियाँ देखी थीं. जब गब्बर जूस का पैकेट लेकर
चला गया तो उसने अलमारी में सब चीज़ें हटा कर तलाशी ली. पर गिलहरियाँ कहीं न थीं.
वह भयभीत हो गया. पर उसने अपने मित्रों को यह जानने न दिया कि वह डरा हुआ था.
अगली सुबह गोविंदा ने पी कुमार को फोन करना
था. इसके लिए बहुत सवेरे ही वह पचास मील दूर उत्तर में स्थित एक रेलवे स्टेशन गया और
एक पीसीओ से फोन किया. जैसे उसने सोचा था, पी कुमार फिरौती की रकम देने के लिए
तुरंत तैयार हो गया. उसने पी कुमार से कहा कि जब एक करोड़ रुपयों का बंदोबस्त हो
जाए तो अपने घर की तीसरी मंजिल की खिड़की से लाल रंग का तौलिया लटका दे. उसने रकम
सौ-सौ के रुपयों में मांगी थी.
गब्बर और गोविंदा बहुत प्रसन्न थे. उन्हें
आशा न थी कि सारी योजना इतनी सरलता से सफल हो जायेगी. उन्होंने फिल्मों में देखा
था कि अपहरणकर्ताओं को बहुत मुसीबतों का सामना करना पड़ता था तब जाकर कोई एक योजना
में उन्हें सफलता मिलती थी. उन्हें पूरा विश्वास था कि शाम तक पी कुमार के महल की
किसी खिड़की पर लाल रंग का तौलिया लटक रहा होगा.
पर उन्हें इस बात का अहसास न था कि कई बार सुहावने,
उजले दिन में भी अचानक भयंकर ओलावृष्टि होने लगती है, कि जीती हुई बाज़ी भी कई बार
पलट जाती है.
सचीन इस बात को लेकर लगातार सोच रहा था कि
अलमारी में वह गिलहरियाँ कहाँ से आई थीं और कहाँ गायब हो गईं. वह बहुत बेचैन था और
डरा हुआ भी था. इस कारण वह अपहृत बच्चे की पूरी तन्मयता से निगरानी न कर रहा था.
उसे पता ही न चला कि बच्चा नींद से जाग रहा था. लेकिन गब्बर सावधान था. उसने धीमी
आवाज़ में सचीन को धमकाते हुए कहा, “क्या हो गया है तुम्हें? होश में आओ और इसके
लिए चॉकलेट और जूस लेकर आओ. अगर इसे तुरंत सुलाया नहीं गया तो मुसीबत आ पड़ेगी.”
सचीन अलमारी से चॉकलेट और जूस लाने से कतरा
रहा था. लेकिन वह स्वीकार न करना चाहता था कि वह भयभीत था. उसे यह भी नहीं पता था
कि वह किस बात से डर रहा था. हिचकते हुए वह उठा और धीरे-धीरे अलमारी के निकट आया. आहिस्ता
से उसने दरवाज़ा खोला. दरवाज़ा खुलते ही ‘खटाक’ बंद हो गया, जैसे किसी ने भीतर उसे
खींच कर बंद कर दिया हो.
“यह क्या हो रहा है? ऐसा लगता है जैसे किसी ने
दरवाज़ा अंदर से पकड़ रखा है.” उसने मन ही मन सोचा. उसने फिर पूरी ताकत लगाकर दरवाज़ा
खोलने की कोशिश की. दरवाज़ा खुल गया. पर अगले ही पल एक कंकाल के दो हाथ अलमारी से
थोड़ा से बाहर आये और पल्लों को भीतर खींच कर दरवाज़ा बंद कर लिया.
सचीन डर कर चीखा. जो कुछ उसने देखा था उस पर
उसे विश्वास ही न हुआ. यह कैसे संभव था? भीतर कौन था? वह हाथ किसके थे? किसी इंसान
के हाथ न थे, किसी कंकाल के हाथ थे.
गब्बर ने उसकी चीख सुन ली थी. वह भाग कर
आया. सचीन पत्थर की मूर्ति सा चुपचाप खड़ा था.
“अब क्या हुआ? मूर्ति बन कर क्यों खड़े हो?”
वह गुस्से से पर धीमी आवाज़ में चिल्लाया. उसने सचीन को पीछे धकेला और अलमारी का
दरवाज़ा खोल कर कुछ चॉकलेट और एक जूस का पैकेट निकाला. उसके जाते ही सचीन थरथर
कांपने लगा. फिर बड़ा प्रयास कर उसने अपने को सँभाला और अलमारी का दरवाज़ा धीरे से
खोला. दरवाज़ा खुल गया. उसने अलमारी के भीतर झाँका. जो कुछ उन्होंने अलमारी में रखा
था उसके अतिरिक्त वहाँ कुछ न था. वह भौंचक्का हो गया. उसे कुछ समझ न आया कि क्या
हुआ था.
शाम के समय गोविंदा सुखद समाचार लाया.
“मित्रों, एक सुंदर महल की तीसरी मंजिल की एक
खिड़की से लाल रंग का तौलिया लटक रहा है. अर्थात पी कुमार ने पैसों का बन्दोबस्त कर
लिया है. अब मैं फोन करके उसे बताऊंगा कि पैसे कब और कैसे देने हैं. लेकिन तुम
दोनों सावधान रहना, यहाँ कोई गड़बड़ नहीं होनी चाहिए.”
“तुम्हें कैसे पता कि उसने पुलिस को नहीं
बताया?” सचीन ने पूछा.
“अगर उसने पुलिस को बताया भी है तो हमें
डरने की ज़रूरत नहीं. पुलिस हमें छू भी न सकेगी. पैसे लेने की मैंने ऐसी योजना सोची
है कि किसी को हमारे बारे में कुछ पता न चलेगा. लेकिन तुम दोनों को पूरी तरह चौकस
रहना पड़ेगा. किसी को संदेह नहीं होना चाहिए कि इस बंगले के अंदर कोई है.”
इस बार वह दक्षिण में पचास किलोमीटर दूर एक
रेलवे स्टेशन गया और वहां से एक पी सी ओ से उसने पी कुमार को फोन किया. वह रात
ग्यारह बजे वापस लौटा.
गोविंदा को यह देखकर आश्चर्य हुआ कि सब सो
रहे थे. यद्यपि कमरे की खिड़कियाँ बंद थीं और उनके सामने मोटे-मोटे परदे लटक रहे थे
फिर भी उसने कमरे की लाइट जलाना उचित न समझा. वह कोई खतरा मोल न लेना चाहता था.
अपनी टॉर्च की धीमी रोशनी में उसने देखा कि
उसके दोनों साथ गहरी नींद में थे. अपहृत लड़का भी सो रहा था. उसे अपने साथियों पर
गुस्सा आया.
कम से कम एक को तो जागते रहना चाहिए था, वह
मन ही मन बुदबुदाया. दोनों कितने मज़े से सो रहे हैं. लापरवाही की भी हद होती है.
वह अपने विचारों में खोया हुआ था कि किसी
अनोखी, डरावनी चीज़ ने उसका ध्यान आकर्षित किया. उसने ध्यान से देखा तो उसके होश उड़
गये. सचीन के हाथों में एक इंसान की खोपड़ी थी.
इसके पहले कि वह कुछ सोच पाता या कह पाता,
खोपड़ी हँसने लगी. या ऐसा उसे लगा. उसे लगा कि खोपड़ी उससे कह रही थी, “यह अफवाह कि
यह एक भूत बँगला है तुमने फैलाई? क्या यह सच नहीं है?”
गोविंदा को समझ न आ रहा था कि कौन बोल रहा
था. उसे लगा कि सचीन बोल रहा था. फिर उसे लगा कि खोपड़ी बोल रही थी. नहीं, वहाँ कोई
और भी था. गोविंदा की टांगें कांपने लगीं. उसे लगा कि वह किसी भी पल मूर्छित हो
जाएगा.
“चुप क्यों हो? तुम तो कितने दिनों से इस घर
में रह रहे हो, क्या तुमने कभी कोई भूत देखा है यहाँ?” एक कर्कश आवाज़ सुनाई दी.
गोविंदा बोलने और हिलने-डुलने की शक्ति जैसे
खो बैठा था.
“मैं कई वर्षों से इस बंगले में रह रहा हूँ,
मैंने तो कभी कोई भूत नहीं देखा. मैं तुम्हें कह रहा हूँ, इस घर में कोई भूत नहीं
है. और जब तक मैं यहाँ हूँ
कोई भूत इस घर में आने का साहस नहीं कर सकता. तुमने एक झूठी अफवाह फैला दी है. यह
बहुत गलत है. तुम्हें इसकी सज़ा मिलेगी.” वही कर्कश आवाज़ फिर सुनाई दी.
लेकिन गोविंदा को कुछ सुनाई न दे रहा था. वह
होश गंवा बैठा था और नीचे फर्श पर लुढ़क गया था.
जब गोविंदा को होश आया तब तक सुबह हो चुकी
थी. उसके साथी अभी भी गहरी नींद में थे. अपहृत लड़का भी सो रहा था. उसने सचीन की ओर
देखा. उसके हाथों में कुछ न था. लेकिन जैसे ही उसे रात की डरावनी घटनाओं का ध्यान
आया वह भय से कांपने लगा.
वह अपने को रोक न पाया और उसने गब्बर और
सचीन को जगाया. उनके उठते ही वह सहमी से आवाज़ में बोला, “भूत हैं...यहाँ भूत
हैं...मैंने देखा...सुना...भाग चलो यहाँ से...अभी...इसी समय.”
“हाँ...हाँ! यह सच कह रहा है. मुझे पता है इस
घर में भूत हैं. रात में मेरे हाथों......”इतना कह कर सचीन ने अपने दोनों हाथ
झटके. वह भी डर से कांप रहा था.
“तुम क्या बकवास कर रहे हो? यहाँ कोई
भूत-वूत नहीं हैं. तुम जानते हो. हमने ही तह अफवाह उड़ाई थी कि इस घर में भूतों का
वास है. पर वह झूठी अफवाह थी. तुम जानते हो...हम सब जानते हैं. अब मूर्खों की तरह
व्यवहार न करो,” गब्बर ने उन्हें झिड़कते हुए कहा.
“मैं एक पल भी यहाँ रुकने वाला नहीं, मैं जा
रहा हूँ, अभी,” गोविंदा और सचीन एक साथ बोले.
गब्बर हैरान हो गया पर वह उन दोनों को रोक न
पाया. उसे समझ न आ रहा था कि उसके इन दोनों साथियों को क्या हुआ था. वह
आश्चर्यचकित था.
एक अपहृत बच्चे के साथ उस विशाल बंगले में
गब्बर बिलकुल अकेला और असहाय था. उसे डर भी लग रहा था कि कहीं किसी ने उसके
साथियों को बंगले से बाहर जाता देख न लिया हो. वह दोनों बहुत डरे और घबराए हुए थे.
निश्चय ही बाहर निकलते समय उन्होंने पूरी सावधानी न बरती होगी. अब इस घर में रहना सुरक्षित
न था. उसे यह भी निश्चित करना था कि घबराहट में उसके मित्र कोई मूर्खता न कर
बैठें. अगर उन्होंने ऐसा किया तो तीनों के
लिए मुसीबत खड़ी हो सकती थी. न चाहते हुए भी अपने साथियों के पीछे-पीछे वह भी उस
बंगले से बाहर चल दिया.
जैसे ही वह कमरे से बाहर निकला उसका पाँव
किसी चीज़ से टकराया. उसने नीचे देखा और कांप गया. एक इंसान की खोपड़ी फर्श पर
फिसलती हुई जा रही थी. और उसे लगा कि खोपड़ी दर्द से करहा रही थी.
“क्या तुम अंधे हो? मुझे ठोकर क्यों मारी?
चैन से सोने भी नहीं देते!” एक कर्कश आवाज़ सुनाई दी. गब्बर स्तब्ध हो गया. उसे समझ
न आया कि वह क्या सुन रहा था. उसे विश्वास न हुआ कि फर्श पर लुढ़कती खोपड़ी ने यह सब
कहा था. वह इतना डर गया कि वहाँ से भाग खड़ा हुआ, बिना किसी एहतियात के. उसे इस बात
का अहसास ही न रहा कि कोई उसे बाहर जाते देख सकता था. उसे पता ही न था कि वह किस
ओर भागा जा रहा था.
किसी ने फोन कर पी कुमार को बताया कि उसका
बेटा एक खाली बंगले में सोया पड़ा था. पी कुमार ने तुरंत पुलिस को सूचित किया. पुलिस
ने उस बंगले की तलाशी ली. लड़का मिला गया, वह उसी समय नींद से उठा था और रो रहा
बता.
घर की पूरी छानबीन के बाद भी पुलिस को अपहरण
करने वालों का कोई सुराग न मिला. किचन की एक अलमारी में उन्हें फ्रूट जूस और
बिस्कुट और चॉकलेट के कुछ पैकेट मिले.
और मिली एक खोपड़ी जिस पर बहुत सारा सिंदूर
लगा हुआ था.
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