क्यों आई ऐसी स्तिथि?
कुछ दिन पहले तेलगु देशम पार्टी के अध्यक्ष
श्री चन्द्र बाबू नायडू विधान सभा से बाहर आये. उन्होंने एक प्रेस कांफ्रेंस बुलाई
और लोगों से बात करते-करते फूट-फूट कर रोने लगे.
उनके जैसे वरिष्ठ राजनेता का इस प्रकार
अश्रुपूर्ण हो जाना सब के लिए चिंता का विषय होना चाहिए पर लगता नहीं है कि देश के
अधिकाँश राजनेताओं ने इस ओर कोई ध्यान भी दिया है.
नायडू जी का कहना था कि विधान सभा के
कुछ सदस्यों के व्यवहार ने उन्हें बहुत आहत किया था, क्योंकि उनकी पत्नी को लेकर अपशब्द
कहे गये थे. उनका यह भी कहना था कि उनके साथ तो अभद्र व्यवहार लंबे समय से हो रहा
था.
प्रश्न यह है कि ऐसी स्तिथि क्यों आई
और इसके लिए उत्तरदायी कौन है.
मेरा मानना है कि इस स्थिति के लिए
राजनेता स्वयं उत्तरदायी हैं. वह किसी और को दोष नहीं दे सकते. कम से कम जनता को
दोषी नहीं ठहरा सकते.
अगर राजनितिक पार्टियाँ परिवारों की
बंधक बन कर रह गई हैं तो राजनेताओं का दोष है. अगर वह अपराधिक छवि के लोगों को
चुनाव में उतारती हैं तो उसका परिणाम भी उन्हें ही भुगतना पड़ेगा. अगर परिवार को,
जाति को, धर्म को, क्षेत्र को, भाषा को देश से अधिक महत्व दिया जाता है तो वैसी ही
राजनीति के लिए उन्हें तैयार रहना होगा.
सच तो यह है कि राजनीति में कई लोग ऐसे
हैं जिन्हें राजनीति से कोसों दूर होना चाहिए था. परन्तु आज की राजनीति में ऐसे
लोग खूब फलफूल रहे हैं क्योंकि आज की राजनीति का उद्देश्य किसी भी तरह सत्ता पाने
और भोगने का है.
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