Tuesday 5 May 2015

एक सूफ़ी कहानी

रात का समय था. एक चोर एक घर में घुसने की कोशिश करने लगा. चोर खिड़की के रास्ते घर के भीतर घुस रहा था. अचानक खिड़की टूट कर चोर के हाथ पर आ गिरी. चोर का हाथ टूट गया.

चोर ने क़ाज़ी के सामने शिकायत कर दी. उसका आरोप था कि उस घर का मालिक दोषी था, उसके कारण ही चोर का हाथ टूट गया था.

घर का मालिक क़ाज़ी के सामने उपस्थित हुआ. उसने क़ाज़ी से कहा, “हुजूर,  दोष मेरा नहीं उस बढ़ई का है जिसने यह खिड़की बनाई थी. बढ़ई ने खिड़की बनाने में अवश्य कोई गलती की होगी जो खिड़की टूट कर गिर गई और इस आदमी का हाथ टूट गया.”

क़ाज़ी के आदेश पर बढ़ई आया. उसने क़ाज़ी से कहा, “हुजूर, मैंने तो खिड़की बनाने में कोई गलती नहीं की. गलती मिस्त्री की है. उसने खिड़की सही ढंग से नहीं लगाई थी. उसे ही सज़ा मिलनी चाहिए.”

अब मिस्त्री को बुलाया गया. मिस्त्री ने कहा, “हुजूर, मैं तो बहुत अच्छा कारीगर हूँ और अपने काम में कभी कोई गलती नहीं करता. पर जब में खिड़की लगा रहा था तो एक औरत वहां से गुज़र रही थी. मैं उस औरत को देखने लगा और खिड़की सही ढंग से न लगी. गलती मेरी नहीं उस औरत की है, अगर वह उस समय वहां से न गुज़रती तो मुझसे कोई गलती न होती.”

औरत को भी क़ाज़ी के सामने उपस्थित होना पड़ा. उसने क़ाज़ी से कहा, “ मैं तो एक साधारण-सी औरत हूँ. कोई मुझे नहीं देखता. लोग तो मेरे सुंदर सतरंगी दुपट्टे को देखते हैं. दोष मेरा नहीं उस रंगरेज़ का है जिसने मेरा दुपट्टा रंगा था.” 

क़ाज़ी ने रंगरेज़ को बुलवाया. पर रंगरेज़ तो वही आदमी निकला जो उस घर में चोरी करने गया था और जिसका हाथ टूट गया था. वह उस औरत का पति था और उसी ने क़ाज़ी के सामने शिकायत की थी.

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