किस्सा दो समितियों
का
(भाग 1)
(कई वर्षों से हमारे देश में कई प्रकार के सक्रियतावादी कई प्रकार के
मुद्दों के लेकर सक्रिय हैं. इन सक्रियतावादियों के अथक परिश्रम से प्रेरित है यह
लेख)
हमारे मोहल्ले में दो समितियां हैं, एक समिति ने मानवों की कुत्तों से
रक्षा का बीड़ा उठा रखा है तो दूसरी ने कुत्तों की मानवों से रक्षा का. दोनों
समितियों की जन्मगाथा का किस्सा भी काफ़ी रोचक है.
सुखीलाल हमारे मोहल्ले के उन जाने माने व्यक्तियों में से एक हैं जो
समाज की हर समस्या पर अपनी समझ और बुद्धि का प्रकाश व् प्रभाव डालना अपना
जन्मसिद्ध अधिकार समझते हैं. कहीं पिता-पुत्र में अनबन हो या म्युनिसिपेलिटी के
चुनाव, सफ़ाई कर्मचारियों की हड़ताल हो या दहेज़ का अभिशाप, हर जगह हर समस्या का
समाधान ले कर उपस्थित हो जाते हैं हमारे सुखीलाला.
इन्हीं सुखीलाला ने एक दिन कुत्ता विरोधी समिति के गठन का बीड़ा उठा
लिया. हुआ यूँ कि एक रात उनकी चौदह वर्ष की बालिका पड़ोस की मौसी जी से एक कटोरा
चीनी उधार लेने गई. लगभग सभी पड़ोसियों से उनका ऐसा लेन-देन लगा ही रहता है. किसी
घर से कटोरा भर चीनी, किसी घर से डिब्बा भर आटा, किसी घर से....खैर वह एक अलग
किस्सा है, किसी और दिन उसकी चर्चा करेंगे. उस दिन चीनी की आवश्यकता थी, उनकी
श्रीमती जी ने अपनी तीसरी नंबर की बालिका को पड़ोस की बिमला मौसी के घर भेजा.
बालिका चीनी की कटोरी हाथ में लिए घर लौट रही थी कि न जाने कहाँ से एक
कुत्ता आ धमका, न जाने कि उसे क्या सूझा और उस बालिका पर झपटा. इस अप्रत्याशित आफत
से बालिका इतना घबरा गई कि एक दिल दहला देने वाली चीख उसके मुख से निकल गई और गली
के एक छोर से दूसरे छोर तक फ़ैल गई. गली में रहने वाले लोग सन्न रह गये. कई खिड़कियाँ दरवाज़े
एक साथ खुल गये. कई चेहरे विभिन्न भाव लिये खिडकियों, दरवाजों से बाहर आये. सबने
देखा कि सुखीलाल की कन्या बदहवास भागी जा रही है और एक कुत्ता उसके पीछे भाग रहा
है. दृश्य अत्यंत मार्मिक, सबके दिल को दहला देने वाला था.
तभी अपेक्षानुसार सुखीलाल जी वहां आ पहुंचे. पर इससे पहले कि अपनी समझ
व् ज्ञान का प्रकाश इस घटना पर डाल पाते, बालिका उनसे आ टकराई. एक घबराई, सहमी सी
हिरणी सामान वह अपने पिता के अंक में समा गई. उसकी सांस धौंकनी के सामान चल रही
थी. कटोरी और चीनी का कहीं अता-पता न था. आश्चर्य, भय और क्रोध में डूबे सुखी लाला
ने उसी क्षण प्रण ले लिया कि अपने नगर को कुत्तों से छुटकारा दिला कर ही दम लेंगे.
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(लेख का अगला भाग
यहाँ पर है)
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