Tuesday, 5 May 2015

यूँ चलती सरकार
(सच्ची घटना पर आधारित)

बॉस (अधिकारी से) - कुछ समय पहली मंत्रालय से एक फाइल आई थी जिस में कैबिनेट सचिव ने कुछ जांच के आदेश दिए थे. वह फाइल कहाँ है?
अधिकारी – सर, मैंने तो ऐसे कोई फाइल नहीं देखी. किस विषय को लेकर थी वह फाइल, कुछ याद है आपको?
बॉस – शायद तुम्हारे ज्वाइन करने से पहले आई होगी, पर एक फाइल आई तो थी और कैबिनेट सचिव के कुछ आदेश थे. ज़रा सभी बाबुओं से पूछो
अधिकारी ने अपने अधीन सब बाबुओं से पूछताछ की. किसी बाबू को ऐसी किसी फाइल की जानकारी न थी जिस पर कैबिनेट सचिव ने जांच के आदेश दिए हों. उसने बॉस को सुचना दे दी. बॉस संतुष्ट न हुए. उन्हें विश्वास था कि ऐसी कोई फाइल मंत्रालय से आई थी. परन्तु फाइल किस विषय को लेकर थी यह याद न होने के कारण कोई रास्ता भी न सुझा पाये.
तीन माह के बाद. एक क्लर्क एक फाइल लेकर अधिकारी के पास आया.
क्लर्क – सर, कमांड से एक लैटर आ रखा है. इस का क्या करना है मुझे समझ नहीं आ रहा. जरा बता दें. अगर आप उत्तर डिक्टेट कर दें तो ठीक होगा.
अधिकारी – अभी मैं थोड़ा व्यस्त हूँ, तुम फाइल रख दो, मैं बाद में देख कर सब लिखा दूंगा.
अधिकारी को जब समय मिला तो फाइल देखने लगा. एक फाइल न थी, छह-सात फाइलों का एक बंडल था. अधिकारी अभी नया-नया भर्ती हुआ था. कुछ करने को उत्सुक था, अतः बंडल में बंद एक-एक फाइल को देखने लगा. एक पतली-सी फाइल देख कर उसके होश उड़ गये. यह वही फाइल थी जिसकी चर्चा बॉस ने कुछ माह पहले की थी.
फाइल में बस एक पन्ना था, एक मामले को लेकर जांच के आदेश थे. हस्ताक्षर किये थे भारत सरकार के उच्चतम अधिकारी ने, स्वयं कैबिनेट सचिव ने.
बंडल में बंद सारी फाइलें देखने पर ज्ञात हुआ की किसी यूनिट में एक ग्रुप डी कर्मचारी (शायद मजदूर) की मृत्यु उसके कार्यकाल के दौरान ही हो गई थी. एक नियम के अनुसार उसके शोक संतप्त परिवार को भारत सरकार से थोड़ी-सी वित्तीय सहायता दी जा सकती थी.
स्वर्गवासी कर्मचारी की पत्नी की अर्जी पर एक केस बना, जो यूनिट से कमांड, वहां से मुख्यालय फिर मंत्रालय पहुँचाना था. अंतत अर्जी कैबिनेट सचिवालय पहुंचनी थी, वहीं से आवेदन को मंजूरी मिलनी थी.
पर फाइल यूनिट, कमांड, मुख्यालय और मंत्रालय की बीच ही चक्कर लगाती रही, और वह भी कुछ सप्ताह नहीं, कुछ माह नहीं, कुछ वर्ष नहीं, पूरे ग्यारह वर्षों तक.
यहाँ से वहां तक के कई चक्कर लगाने के बाद जब फाइल कैबिनेट सचिवालय पहुंची तो वहां किसी की आत्मा को चोट लगी. एक ग्रुप डी कर्मचारी के परिवार को थोड़ी से मदद के लिये ग्यारह वर्षों तक प्रतीक्षा करनी पड़ी थी, स्वयं कैबनेट सचिव इस देरी का कारण जानना चाहते थे. उन्होंने आदेश दिया की मामले की तुरंत जांच हो और रिपोर्ट उन्हें दिखाई जाये.
इस आदेश पर किसी तरह की कोई भी कार्यवाही नहीं हुई, न ही किसी ने उस आदेश की खोज-खबर ली.
अधिकारी फाइल लेकर अपने बॉस के पास पहुंचा
बॉस – कैसे मिल गई यह फाइल?
अधिकारी – फाइलों के एक बंडल में बंद थी. अब क्या किया जाये? इस फाइल को हमारे यहाँ आये छह माह से ऊपर हो गये हैं?
बॉस – जरा सोचना होगा कि क्या किया जाये.
अधिकारी – सर, एक बात समझ नहीं आई. कैबिनेट सचिव के इस आदेश की किसी ने भी निगरानी नहीं की. उनके कार्यालय ने, या मंत्रालय ने, या फिर चीफ़ के कार्यालय ने. किसी ने भी अपने पास कोई रिकॉर्ड नहीं रखा यह देखने के लिए कि नीचे कोई इस आदेश का पालन करता भी है या नहीं?
बॉस – अभी तुम नये-नये आये हो, धीरे-धीरे सब समझ आने लगेगा.
अधिकारी – सर, अब तो इस बात की भी जांच होनी चाहिये कि कैबिनेट सचिव के आदेश का पालन क्यों न हुआ.
बॉस –  क्या मुझे नौकरी से हटवाने का विचार है? उठाओ यह फाइल, और जाओ यहाँ से.
अधिकारी फाइल लेकर अपने कार्यालय लौट आया. उसे कुछ-कुछ समझ आने लगा था कि कैसे चलती है सरकार.

कैबिनेट सचिव के आदेश का अंतत क्या हुआ वह बात फ़िलहाल रहने ही देते हैं.
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