Sunday, 3 May 2015

किस्सा दो समितियों का
(भाग 2)

(लेख का पहला भाग यहाँ है)

प्रकृति के उस नियम का तो आप को भी ज्ञान होगा जिस नियम के आधार पर इस संसार में जहां राजा होता है वहां रंक भी होते हैं, जहां दुःख होते हैं वहां सुख भी होता है, जहां रात होती वहां दिन भी होता है.

रात और दिन, मित्र और शत्रु, प्रकाश और अंधकार, जीवन और मृत्यु, सच और झूठ, आप किसी बात की भी कल्पना करें आप पायेंगे कि प्रकृति में विरोधी भाव व् तत्व से रहित कुछ भी नहीं है. हर भाव व् वस्तु का सृजन अपने साथ ही विरोधी भाव व् वस्तु को जन्म दे देता है. प्रकृति के इस अटल नियम से सुखीलाल और उनकी समिति कैसे मुक्त रहते?

जिस दिन उन्होंने मानवों की कुत्तों से रक्षा करने का प्रण लिया उसी दिन कुत्तों पर हो रहे अत्याचार ने चुन्नीलाल के हृदय में एक तूफ़ान पैदा कर दिया था.

कुछ आवारा बच्चों द्वारा पिटा एक पिल्ला चुन्नीलाल के सामने से गुज़र गया और उनके समक्ष कई प्रश्न खड़े कर गया. क्या आवारा कुत्ते और उनके पिल्ले इस समाज में इस तरह ही एक उपेक्षित जीवन जीते रहेंगे? क्या मनुष्य का कोई कर्तव्य नहीं है इस प्राणी की ओर जो पाषाण युग से उसका साथी रहा है? क्या कोठियों में पलते कुत्ते ही सुख के अधिकारी हैं? क्या आवारा कुत्तों को सदा अत्याचार ही सहना होगा?
चुन्नीलाल ने आवारा बच्चों को डपट दिया और एक-दो बच्चों को चपत रसीद कर उस आवारा पिल्ले को उन आवारा बच्चों के अत्याचार से मुक्त कराया. 

उसी दिन, म्युनिसिपेलिटी के दो चुनाव जीते पर पिछ्ला चुनाव हारे, चुन्नीलाल ने आवारा कुत्तों की मानवों से रक्षा का बीड़ा उठा लिया. आनन-फ़ानन में चुन्नीलाल ने एक समिति का गठन कर दिया.

दोनों समितियों ने बड़े उत्साह और जोश के साथ अपना कार्य आरंभ किया. सुखीलाल की दौड़ धूप के फलस्वरूप म्युनिसिपेलिटी वाले कुछ आवारा कुत्तों को पकड़ कर ले गये. सारे नगर में सनसनी फ़ैल गयी. इतिहास में ऐसा कभी न हुआ था. अब तक आदमी, गाय, भैंस, गधे, कुत्ते अर्थात सब प्राणी बड़े मेलजोल के साथ यहाँ रहते आये थे. कुत्तों का पकड़ा जाना एक आश्चर्यजनक घटना थी.  


सीना तान, सुखीलाल एक गली से दूसरी गली घूम रहे थे. उनकी तीसरे नंबर की बालिका भी खुशी से फूली न समा रही थी.


(लेख का अंतिम  भाग यहाँ पर है)

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